By प्रिया मिश्रा | Mar 21, 2022
सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो नवरात्रि साल में चार बार आती है - पहली चैत्र नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि। इसके अलावा दो दो गुप्त नवरात्रियां होती हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है। चैत्र नवरात्रि की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से विशेष लाभ होता है। नवरात्रि में जप, तप और पूजा-आराधना करने से माता भक्तों पर प्रसन्न होती हैं और उन्हें सुख-वैभव का आशीर्वाद देती हैं। इस बार नवरात्रि 02 अप्रैल 2022 (शनिवार) से शुरू हो रहे हैं और 11 अप्रैल 2022 (सोमवार) को नवमी मनाई जाएगी। आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि 2022 शुभ मुहूर्त और घटस्थापना विधि -
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त - 2 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त - 2 अप्रैल को दोपहर 12 बजे से 12 बजकर 50 मिनट तक
घट स्थापना के लिए सामग्री
कलश, कलश के नीचे रखने के लिए मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, लाल रंग का आसन, जौ, मौली, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, चावल, अशोका या आम के 5 पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, माता का श्रृंगार और फूलों की माला।
घट स्थापना विधि
घट स्थापना करने से पहले मंदिर को गंगा जल से साफ किया जाता है। कलश में सात तरह की मिट्टी, सुपारी और मुद्रा रखी जाती है इसके अलावा आम के पांच या फिर सात पत्तों से कलश को सजाया जाता है, कलश के बीच में नारियल को लाल चुनरी में लपेट कर रखा जाता है। कलश के नीचे जौ बोए जाते हैं और इन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है। माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर मंदिर के मध्य में स्थापित की जाती है इसके बाद व्रत का संकल्प लिया जाता हैं। व्रत के संकल्प के बाद मिट्टी की वेदी बना कर उसमें जौ बोए जाते हैं। इस वेदी पर कलश स्थपित किया जाता है। इसके बाद माँ दुर्गा का ध्यान करें और इस श्लोक का जाप करें-
सर्व मंगल मांगल्यै, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्यै त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
नवरात्रि की पूजा के पहले दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। पूजा पाठ के समय अखंड दीप भी जलाया जाता है जो नवरात्रि के व्रत पूरे होने तक जलता रहना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद श्री गणेश जी और माँ दुर्गा की आरती की जाती है और नौ दिनों के व्रत या नौ में से कुछ दिनों के व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- प्रिया मिश्रा