By अभिनय आकाश | Jan 23, 2022
अलग अंदाज, जबरदस्त अकड़, जोशीला भाषण, बोलने में बेबाक। जिनके परिचय का पताका आज भी ये बताने के लिए काफी है कि उनके नाम के बगैर मुंबई का नाम ही अधूरा रह जाएगा। मराठी गौरव के प्रतीक के तौर पर खुद की छवि को गढ़ने वाले बाला साहब ठाकरे कभी कॉर्टून बनाकर प्रभावी संदेश देते थे। लेकिन अंदाजे हनक ने सियासत में उन्हें शिवसैनिको का भगवान बना दिया। ठाकरे को किसी ने सियासत में सवा शेर माना तो किसी ने सांस्कृतिक आदर्शवाद के अगुवा के तौर पर स्वीकार किया। जबकि सच तो यही है कि इस चमक के आगे विरोधियों की कहानी के पहले पन्ने भी नहीं लिखे गए।
जय महाराष्ट्र के बोध वाक्य के साथ शिवसेना का गठन
महाराष्ट्र की राजनीति में बाला साहब ठाकरे उगते हुए सूरज की तरह थे। मराठी-मानुष की राजनीति ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। वो सरकार बना भी सकते थे, सरकार गिरा भी सकते थे। अपनी दिल की बात को तुरंत जमीन पर उतार देने में बाल ठाकरे कभी वक्त नहीं लेते थे। 23 जनवरी 1926 को पुणे के सदाशिवपिड इलाके के गाड़गिल रोड के पास एक घर हुआ करता था अब वो नहीं है। इसी घर में केशव प्रबोधन ठाकरे और रमाबाई केशव ठाकरे के परिवार में एक बच्चे ने जन्म लिया। उसका नाम रखा गया बाल ठाकरे। बाद में इसी बच्चे को दुनिया बाला साहेब ठाकरे के नाम से जानने लगी। बाला साहेब पर बचपन से अपने पिता का प्रभाव पड़ा। भाईयों में सबसे बड़े होने की वजह से वो अपनी उम्र से ज्यादा समझदार समझे गए। 19 जून 1966 को छत्रपति शिवाजी के आदर्श, हर हर महादेव के नारे और जय महाराष्ट्र के बोध वाक्य के साथ शिवसेना का गठन हो गया।
शिवसेना को कभी कांग्रेस नहीं होने दूंगा
कांग्रेस और एनसीपी हमेशा से शिवसेना सुप्रीमो रहे बाला साहब ठाकरे के निशाने पर रहते थे। सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर भी उन्होंने कई बार कटाक्ष किया था। एक टीवी इंटरव्यू में बाला साहब ने कहा था कि मैं अपनी शिवसेना को कभी कांग्रेस नहीं होने दूंगा, कभी नहीं। उन्होंने इंटरव्यू में कहा था कि जब मुझे मालूम होगा कि शिवसेना कांग्रेस हो रही है तो मैं अपनी दूकान बंद (पार्टी को ही समाप्त) कर दूंगा। लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमा की सबकुछ पलट गया। उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने न सिर्फ कांग्रेस से हाथ मिलाया बल्कि उसके सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हासिल की।