By अनन्या मिश्रा | Jul 06, 2024
भगवान शिव को भोलेनाथ, महादेव, शिव-शंभू आदि कई नामों से संबोधित किया जाता है। माना जाता है कि जब इस संसार में कुछ भी नहीं था। तब भी भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में इस धरती पर विद्यमान थे। लेकिन भगवान शिव के शिवलिंग स्वरूप की कैसे उत्पत्ति हुई, इस बारे में कई पुराणों में अलग-अलग कहानियां मिलती हैं।
शिवलिंग की उत्पत्ति की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन अगर भगवत पुराण की बात की जाए, तो इस पुराण में भगवान शिव के शिवलिंग स्वरूप की उत्पत्ति से जुड़ी एक कहानी मिलती है। तो आइए जानते हैं इस पौराणिक कथा के बारे में और जानते हैं शिवलिंग की उत्पत्ति के बारे में...
पौराणिक कथा
भागवत पुराण की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु औऱ सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी में बहस छिड़ गई कि दोनों में कौन अधिक श्रेष्ठ है। दोनों ही देवता खुद अधिक शक्तिशाली सिद्ध करने की होड़ में विवाद करने लगे। तब आकाश के एक विशालकाय शिवलिंग उपस्थित हुआ, जोकि भगवान शंकर का प्रतिनिधित्व करता था। इसके बाद आकाश से आवाज आई कि विष्णु और ब्रह्माजी में से जो भी देव इस दिव्य चमकीले पत्थर का छोर पा लेगा, वह अधिक शक्तिशाली माना जाएगा।
तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी उस शिवलिंग के छोर को ढूंढने लगे, लेकिन उनको इसका अंत नहीं मिला। इसके बाद श्रीहरि विष्णु ने हार मान ली, लेकिन ब्रह्माजी ने झूठ का सहारा लेकर खुद को श्रेष्ठ साबित करने का प्रयास किया। ब्रह्मा जी ने कहा कि उनको इस दिव्य पत्थर का छोर मिल गया है, लेकिन अंत में ब्रह्मा जी का झूठ पकड़ा औऱ महादेव स्वयं प्रकट हुए। तब उन्होंने बताया कि यह शिवलिंग उनका स्वरूप है। भगवान शंकर ने कहा कि यह शिवलिंग वहीं हैं और न तो उनका अंत है और न आरंभ।
शिवलिंग का अर्थ
बता दें कि महादेव की शिवलिंग को एक दिव्य ज्योति मानी जाती है। मान्यता के अनुसार, जीव, बुद्धि, आसमान, वायु, मन, चित्त, आग, पानी और पृथ्वी से शिवलिंग का निर्माण हुआ है और यह पूरे ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है कि शिवलिंग की उत्पत्ति संसार में सबसे पहले हुई थी। वहीं शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। जो भी जातक पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से महादेव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।