By अजय कुमार | Jul 31, 2023
क्या ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद विवाद का नतीजा आने से पूर्व भारतीय जनता पार्टी ने मांइड गेम शुरू कर दिया है। सवाल उठ रहा है कि कहीं बीजेपी इस विवाद के निपटारे का श्रेय अदालत की जगह अपने आप को देने के लिए तो उतावली नहीं है? ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि जब तीन अगस्त को ज्ञानवापी विवाद निपटारे के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला आने वाला हो, उससे पूर्व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि यह कहें कि ज्ञानवापी प्रकरण में एतिहासिक गलती को सुधारने के लिए मुसलमान आगे आएं तो साफ है कि योगी एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें सीएम की कुर्सी पर रहते ऐसे बयानो से बचना चाहिए। खैर, यह सच है कि योगी अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं, लेकिन ज्ञानवापी पर उनका बयान साफगोई तक सीमित नहीं है। योगी के बयान की टाइमिंग पर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं। कुछ उनके साथ हैं तो काफी लोग उनके बयान की मुखालफत भी कर रहे हैं। सवाल तो यहां तक उठ रहे हैं कि यूपी सरकार के मुखिया ज्ञानवापी मुकदमे का फैसले को प्रभावित करने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं या फिर योगी का फोकस अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पर है? वह हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने जिसे दृष्टि दी है वो देखे ना। त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है। हमने तो नहीं रखे न। ज्योतिर्लिंग हैं देव प्रतमिायें हैं। पूरी दीवारें चिल्ला चिल्ला के क्या कह रही हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा कि उन्हें (योगी) लगता है ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की ओर से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है। उसके लिए हम चाहते हैं समाधान हो। गौरतलब है कि ज्ञानवापी विवाद में याचिका अंजुमन इस्लामिया मस्जिद कमेटी (एआईएमसी) द्वारा दायर की गई थी, जो मस्जिद का प्रबंधन करती है। समिति ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला देते हुए मामले की स्थिरता पर सवाल उठाया है। अधिनियम के अनुसार, 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन निषिद्ध है। 1991 पूजा स्थल अधिनियम की तरह, इस मामले की जड़ें भी वर्ष 1991 में हैं। मामले में पहली याचिका स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर ने 1991 में वाराणसी अदालत में दायर की थी। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने के अधिकार की मांग की गई थी।
बहरहाल, योगी के ज्ञानवापी विवाद पर बयान के बाद इसका विरोध भी शुरू हो गया है। सीएम योगी के बयान पर अब विपक्ष की ओर से भी प्रतिक्रिया आने लगी है। मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद डॉ. एसटी हसन का बड़ा बयान इस मुद्दे पर आया है। हसन का कहना है ज्ञानवापी विवाद के जरिए उन्होंने देश की 3000 मस्जिदों पर चल रहे विवाद का मुद्दा छेड़ दिया। सपा सांसद ने सीएम योगी को सलाह दी कि यह मुद्दा ठहरा हुआ पानी है। अगर इसमें लाठी मारी गई तो हलचल होगी। देश के हित में इस प्रकार के विवादों से बचने की सलाह देते सपा सांसद दिखे।
उधर संभल से सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने दावा किया है कि मुसलमानों से कोई गलती नहीं हुई और ज्ञानवापी पर कानूनी हक भी उन्हीं का है। उन्होंने आरोप लगाया कि जबरदस्ती ज्ञानवापी को मंदिर बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वहां कोई त्रिशूल नहीं था, न तो ऐसा कुछ मिला है और न ही हम ऐसा मानते हैं। शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि मुसलमानों से कोई गलती नहीं हुई और न ही मुसलमानों ने झगड़े किए। इन्हीं लोगों ने छेड़छाड़ करके जबरदस्ती मंदिर कहना शुरू कर दिया लेकिन आज हम अपनी आस्था के हिसाब से मस्जिद मानते हैं तो इन्हें क्या ऐतराज है। उन्होंने यह भी दावा किया कि ज्ञानवापी में कोई त्रिशूल नहीं था, हम तो ऐसा नहीं मानते और न ही वहां ऐसा कुछ मिला है। शफीकुर्रहमान ने आगे कहा कि देश के अंदर कानून मौजूद है, लोकतंत्र है, देश में सबको हर मजहब वाले को अपने अपने मजहब पर रहने और अपनी बात कहने का हक दिया गया है। दूसरों को भी जीने का मौका दीजिए। उनके साथ इस किस्म का जुल्म ज्यादती करना गलत है। कुल मिलाकर योगी के ज्ञानवापी विवाद पर बयान के बयान दो पक्ष आमने समाने आ गए हैं, एक योगी की साफगोई से खुश है तो दूसरा वर्ग इसे कोर्ट में दखलंदाजी मान रहा है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि जब मोदी टीम और बीजेपी मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने के लिए स्नेह यात्रा जैसे कार्यक्रम चला रही है। पार्टी में मुस्लिम नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जा रहा है। मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए उनको तमाम सरकारी योजनाओं में बराबर की भागेदारी दी जा रही है, ऐसे समय में योगी का बयान कहीं दिल्ली का खेल बिगाड़ तो नहीं देगा। राजनीति के कुछ जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि योगी के इस बयान से 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदे की जगह नुकसान ही उठाना पड़ेगा। इस तरह के बयानों से मुसलमान वोटों का एक बार फिर से बीजेपी के खिलाफ किसी भी एक पार्टी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। अब देखना यह है कि केन्द्र और संघ योगी के बयान को किस तरह से लेता है। वैसे कुछ लोगों को यह भी लगता है कि योगी प्रदेश में बिगड़ती काननू व्यवस्था से परेशान हैं, विकास के कार्य भी गति नहीं पकड़ पा रहे हैं, सड़कों का बुरा हाल है, बेरोजगारी और महंगाई सुरसा की तरह मुंह फैलाए हुए हैं, इसलिए लोगों का ध्यान इन सब समस्याओं से हटाने के लिए यह बयान दिया गया है।
-अजय कुमार