Matrubhoomi: प्राचीन काल में क्या थी महिलाओं की स्थिति, कितना था शिक्षा का अधिकार

By अंकित सिंह | Mar 30, 2022

हम अक्सर सुनते है- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता। अर्थात जहां पर नारी की पूजा होती है, वही देवता भी निवास करते हैं। भारतीय समाज में महिलाओं को देवी का दर्जा प्राप्त है। महिलाओं की पूजा होती है। हालांकि वर्तमान में महिलाओं की स्थिति को देखने के बाद यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर प्राचीन काल में इनके स्थिति क्या रही होगी? आज भी महिलाओं को लेकर समाज में कई तरह की बंधन हैं। सवाल यह भी है कि क्या महिलाओं की स्थिति प्राचीन काल में भी ऐसी ही होगी? आज हम इसी को जानने और समझने की कोशिश कर रहे हैं।

 

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महिलाओं की स्थिति में समय-समय पर परिवर्तन आते रहे हैं। कुल मिलाकर देखें तो सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान से ही महिलाओं की स्थिति को लेकर कुछ साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। हालांकि यह बात भी सच है कि अभी भी सिंधु घाटी से जुड़े साक्ष्य लिखित रूप में मौजूद नहीं है। लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान महिलाओं की स्थिति अच्छी थी। पुरातत्व से जो सामग्री मिले हैं उसके आधार पर यह दावा किया जाता है कि उस दौरान महिलाओं को स्वतंत्रता थी और श्रृंगार को प्राथमिकता दी जाती थी। पुरातत्व में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं जिससे कि इस बात का भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौरान भी महिला देवी देवताओं की पूजा करते थीं और उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता थी।


वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति 

वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति बेहतरीन हुआ करती थी। यह वही काल था जब ऋग्वेद को लिखा गया था। महिलाओं को समानता का अधिकार था। पुरुष वर्ग भी महिलाओं को सम्मान की दृष्टि से देखता था। धार्मिक अनुष्ठानों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्राप्त था। उदाहरण स्वरूप हम रामायण काल को देख सकते हैं। भगवान राम ने जितने भी अनुष्ठान किए उसमें सीता जी को अपने साथ रखा। जब सीता जी उपस्थित नहीं थीं तब भी उनकी प्रतिमा का इस्तेमाल किया गया। संपत्ति में महिलाओं को समान अधिकार था। शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं को बराबरी का हक प्राप्त था। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने, अपना भविष्य बनाने तथा शिक्षिका के रूप में काम करने का अधिकार प्राप्त था। ऋग्वेद में कई सारी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है जिसमें लोपामुद्रा, घोषा, अपाला इत्यादि शामिल हैं। 


हालांकि यह भी सत्य है कि वैदिक काल में समाज पुरुष प्रधान था। महत्वपूर्ण पदों पर पुरुष हुआ करते थे। अगर कन्या पिता की इकलौती संतान है तो वह उनके संपत्ति में हिस्सेदार थी। उस दौरान भी स्त्रियों का विवाह व्य्षक होने के बाद ही होता था। बाल विवाह का प्रचलन बिल्कुल भी नहीं था। स्त्रियों में पुनर्विवाह का प्रचलन भी था जो कि उस दौरान उनकी स्थिति को बेहतर बनाता है। वैदिक काल में शिक्षा प्रणाली बहुत ही विकसित थी और मुख्य रूप से वेद पढ़ाया जाता था। प्राचीन भारतीय ग्रंथ समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके प्रभाव का लगातार वर्णन करते हैं। महाभारत में जहां द्रौपदी का प्रभावी चित्रण है तो वहीं वाल्मीकि की रामायण में सीता के प्रभाव को भी बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है। सीता स्वयंवर इस बात का भी गवाह है कि प्राचीन काल में महिलाओं को स्वयं से पति चुनने की भी अनुमति प्राप्त था। वैदिक काल की महिला दार्शनिकों और बुद्धिजीवियों के महत्व को भी हासिल करती थी।


उत्तर वैदिक काल 

कहीं ना कहीं यह वह काल था जब महिलाओं की स्थिति में गिरावट देखने को मिलने लगी। इसी काल में  सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद की लिखी गई थी। महिलाओं के सम्मान में कोई कमी तो नहीं आई लेकिन सामाजिक बुराइयां हावी होने लगी। यह वह कालखंड था जब समाज में बाल विवाह, बहु पत्नी प्रथा, वेश्यावृत्ति प्रथा, देवदासी, भ्रूण हत्या, पर्दा प्रथा शामिल है। उत्तर काल के ही आखिर में सती प्रथा का भी प्रचलन समाज में आ गया था। बड़े घरानों में एक पुरुष की कई पत्नियां होती थी जोकि धीरे-धीरे छोटे घरानों के लिए आदर्श के रूप में काम करने लगा और यह प्रचलन समाज में बढ़ने लगा। इसी कालखंड के दौरान पैतृक संपत्ति में स्त्रियों के अधिकारों में कटौती होने लगी। इसी काल में गार्गी और मैत्रेयी जैसे महिला बुद्धिजीवियों का भी नाम उल्लेख में सामने आता है। उत्तर काल में ही महिलाओं की धार्मिक अधिकारों को सीमित कर दिया गया था।

 

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मौर्य काल में महिलाओं की स्थिति 

कुल मिलाकर देखें तो मौर्य काल में महिलाओं की स्थिति उत्तर वैदिक काल के अपेक्षाकृत थोड़ी संतोषजनक रही। इस काल में महिलाओं को काफी हद तक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इसके साथ ही उन्हें पुनर्विवाह और नियोग की भी अनुमति दी गई थी। हालांकि मौर्य काल में ही दहेज प्रथा का भी प्रचलन शुरू हुआ था। इस काल में स्त्रियां घरों में रहा करती थीं। इसके अलावा मौर्य काल में स्त्रियों को गुप्तचर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था और साथ ही साथ स्त्रियां सम्राट के अंगरक्षक का भी कार्य करती थीं। मौर्य काल में स्त्रियों को धार्मिक स्वतंत्रता तो थी ही साथ ही साथ उन्हें शिक्षा का अधिकार भी प्राप्त था।


मौर्य काल के बाद भी स्थिति 

मौर्य काल के बाद भारत में कई आक्रांता आए। इस दौरान महिलाओं की स्थिति पर काफी असर पड़ा। उनकी आर्थिक, सामाजिक और व्यावहारिक स्थिति काफी खराब होने लगी। महिलाओं को पुरुष के दासी के रूप में रखा जाता था। पुरुष के आदेश के बाद ही उन्हें कोई काम करने की स्वतंत्रता थी। मुगल काल आते-आते महिलाओं की दशा और खराब हो गई। उन्हें पर्दे और बंधनों में बंधकर जीना पड़ रहा था। भारत की स्वतंत्रता के बाद महिलाओं को संविधान में पुरुषों के बराबर ही अधिकार दिए गए हैं। परंतु आज भी वह समाज में काफी पीछे दिखाई देती हैं। सरकार की ओर से महिलाओं के उत्थान के लिए कई कार्य किए जा रहे हैं। राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और विज्ञान सहित कई अहम क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना दबदबा दिखाया है।

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