राजा बनने के बाद प्रिंस चार्ल्स के पास कौन सी होंगी शक्तियां, ब्रिटिश क्वीन एलिजाबेथ-II की विरासत में क्या-क्या मिला?

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 09, 2022

लंदन। पूरी जिंदगी ब्रिटेन की राजगद्दी संभालने की तैयारी करने के बाद अंतत: 73 साल की उम्र में प्रिंस चार्ल्स को ‘महाराज चार्ल्स तृतीय’ के रूप में देश की राजगद्दी पर बैठने का अवसर मिला है। ब्रिटेन की राजगद्दी पर बैठने वाले चार्ल्स सबसे अधिक उम्र के राजा होंगे। बृस्पतिवार को अपनी मां महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद वह देश के अगले महाराज बने हैं। ब्रिटिश राजशाही के अधिकारियों के मुताबिक, चार्ल्स ‘किंग चार्ल्स थर्ड’ (महाराज चार्ल्स तृतीय) के नाम से राजगद्दी संभालेंगे। हालांकि अभी तक चार्ल्स की ताजपोशी की तारीख तय नहीं हुई है। जन्म के साथ ही देश की राजगद्दी के उत्तराधिकारी चार्ल्स ने ब्रिटिश राजशाही के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

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चार्ल्स पहले ऐसे शाही उत्तराधिकारी हैं जिनकी शिक्षा घर में नहीं हुई है, साथ ही वह विश्वविद्यालय डिग्री पाने वाले और राजपरिवार और सामान्य जनता के बीच की कम होती दूरियों के दौर में मीडिया की पैनी नजरों के बीच जिंदगी गुजारने वाले भी पहले उत्तराधिकारी हैं। बेहद लोकप्रिय प्रिंसेस डायना के साथ काफी विवादित तलाक के बाद वह काफी अलग-थलग भी पड़े। उन्होंने राज परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक मामलों में हस्तक्षेप करने से रोकने वाले नियम की भी कई बार अनदेखी की। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और वास्तुकलाओं के संरक्षण जैसे मुद्दों पर खुलकर चर्चा की।

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इतिहासकार एड ओवेन्स कहते हैं, ‘‘अब उन्होंने खुद को पाया है, अपनी जिंदगी के वसंत में अब उन्हें सोचना पड़ेगा कि सार्वजनिक हस्ती के रूप में खुद को कैसे पेश करें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह अपनी मां की लोकप्रियता के आसपास भी नहीं हैं।’’ ओवेन्स ने कहा, चार्ल्स को अपनी जनता का साथ और समर्थन पाने का रास्ता निकालना होगा। दूसरे शब्दों में बात करें तो क्या चार्ल्स को अपनी जनता का प्यार मिलेगा? यह एक ऐसा सवाल है जो पूरी जिंदगी चार्ल्स के सामने सूरसा की तरह मुंह बाये खड़ा रहा है। बेहद रोबीले पिता के शर्मीले बेटे चार्ल्स ऐसे व्यक्ति के रूप में बड़े हुए जिन्हें कभी-कभी खुद के विचारों पर भी भरोसा नहीं होता था। एक तरफ उनकी मां थीं जो अपने विचारों को सार्वजनिक नहीं करना चाहती थीं, वहीं दूसरी तरफ चार्ल्स हैं जिन्होंने उनके दिल को छूने वाले मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, हरित ऊर्जा और वैकल्पिक दवाओं के विषय पर ना सिर्फ लेख लिखे हैं बल्कि सार्वजनिक भाषण भी दिए हैं।

महाराज के रूप में चार्ल्स की ताजपोशी से ब्रिटेन की इस रस्मी राजशाही को लेकर फिर से बहस छिड़ने की संभावना है। ब्रिटेन की राजशाही को कुछ लोग जहां राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखते हैं, वहीं कुछ लोग इसे सामंतवादी इतिहास का अवशेष मानते हैं। ‘द फैमिली फर्म : मोनार्की, मास मीडिया एंड द ब्रिटिश पब्लिक, 1932-53’ के लेखक ओवन्स का कहना है, ‘‘हम राजा (महारानी) और पक्के तौर पर राजपरिवार को जानते हैं... उनसे राजनीतिक विचारधारा नहीं रखने की अपेक्षा होती है। उनका अपना कोई राजनीतिक विचार नहीं होना चाहिए। वास्तविकता है कि अगर उनका कोई झुकाव है, अगर आप चाहते हैं, तब भी उन्हें अपनी राजनीतिक विचार/बोली को लेकर बेहद सतर्क रहना होता है... वरना उन्हें असंवैधानिक व्यक्ति के रूप में देखा जाएगा।’’

ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और पापुआ न्यू गिनी सहित कुल 15 देशों के राजा के रूप में महाराज बनने वाले चार्ल्स ने हालांकि अपने कदमों का हमेशा से बचाव किया है। 2018 में बनी एक डॉक्यूमेंट्री ‘प्रिंस, सन एंड एयर : चार्ल्स एट 70’ (राजकुमार, पुत्र और उत्तराधिकारी : 70 की उम्र में चार्ल्स) में वह कहते हैं, ‘‘मैं हमेशा सोचता हूं कि हस्तक्षेप क्या है, मैंने हमेशा सोचा कि यह प्रेरक है।’’ इसमें चार्ल्स ने कहा, ‘‘मैं हमेशा इस उलझन में रहा कि क्या सुदूर/छोटे शहरों की चिंता करना हस्तक्षेप है, जैसा कि मैंने 40 साल पहले किया था और वहां क्या हो रहा था, या नहीं हो रहा था, लोग किस हालत में रह रहे थे। अगर यह हस्तक्षेप है तो मुझे ऐसा करने पर गर्व है।’’ इसी साक्षात्कार में हालांकि, चार्ल्स ने माना कि राजा के रूप में वह खुल कर नहीं बोल पाएंगे या फिर नीतियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकेंगे क्योंकि ‘ब्रिटेन के महाराज’ की भूमिका ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ से अलग है।

चार्ल्स ने कभी कहा था कि वे शाही परिवार के कामकाजी सदस्यों की संख्या कम करना चाहते हैं, खर्च घटाना चाहते हैं और आधुनिक ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। हालांकि, डायना से उनकी शादी टूटने के बाद राजगद्दी का उत्तराधिकारी होने को लेकर उन पर कई सवाल उठाए गए। इसके बाद जब उनकी उम्र ढलती गयी तो उनके जवान बेटों ने सारा ध्यान अपनी ओर खींच लिया। जीवनी लिखने वाली सैली बेडेल स्मिथ ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वे इसलिए निराश नहीं थे कि उन्हें राजगद्दी के लिए इतना इंतजार करना पड़ा है। मुझे लगता है कि उनकी मुख्य हताशा इस बात को लेकर थी कि उन्होंने इतना कुछ किया और उन्हें बहुत ज्यादा गलत समझा गया। वह अपनी मां और डायना के बीच की दोहरी जिंदगी में फंसे रहे।’’

ब्रिटेन में ‘‘लोगों की राजकुमारी’’ डायना की पेरिस में एक कार हादसे में 1997 में हुई मौत से पहले उनसे की बेवफाई की बात स्वीकार करने के लिए चार्ल्स को माफ करने में लोगों को कई साल लग गए। हालांकि, 2005 में कैमिला पार्कर से विवाह करने के बाद जनता का रुख थोड़ा नरम पड़ गया। कैमिला ने चार्ल्स को जनता के करीब पहुंचाने में काफी मदद की और चार्ल्स ने उद्घाटन समारोह में शामिल होने, प्रार्थना स्थलों पर जानेजैसे ऐसे कई काम किए, जिनमें उनकी दिलचस्पी नहीं थी और साथ ही वह राजगद्दी के लिए इंतजार करते रहे। प्रिंस चार्ल्स फिलिप आर्थर जॉर्ज का जन्म 14 नवंबर 1948 को बकिंघम पैलेस में हुआ। जब उनकी मां 1952 में राजगद्दी पर बैठीं तो तीन साल के प्रिंस ‘ड्यूक ऑफ कॉर्नवेल’ बने। वह 20 साल की उम्र में प्रिंस ऑफ वेल्स बने। चार्ल्स ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से इतिहास की पढ़ायी की और वह 1970 में ब्रिटिश शाही घराने के ऐसे पहले शख्स बने, जिसने किसी विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की।

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