क्या आप सेक्युलर का सही अर्थ जानते हैं

By अभिनय आकाश | Dec 02, 2019

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे शिवाजी पार्क के खचाखच भरे स्टेडियम में हिन्दू हृदय सम्राट बाला साहब की तस्वीर के सामने सीएम पद की शपथ लेते हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद उद्धव ठाकरे ने मंत्रियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सरकार के फैसलों की घोषणा की। इस दौरान उद्धव ठाकरे से एक पत्रकार ने सवाल किया कि क्या शिवसेना सेक्युलर हो गई। ये सवाल सुनते ही उद्धव ठाकरे भड़क गए। उन्होंने कहा कि सेक्युलर का मतलब क्या है? उद्धव ठाकरे ने कहा कि संविधान में जो कुछ लिखा है, वही सेक्युलर है। वहीं साथ ही उद्धव ये भी दावा करते हैं कि भगवा मेरा पसंदीदा रंग है और किसी लॉन्ड्री की धुलाई से ये रंग नहीं जाएगा। 

 

वैसे तो संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है लेकिन देश की संसद के बाहर ‘सेक्युलर’ शब्द पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। लेकिन देश में ऐसे भी कई दौर रहे हैं जब देश की संसद में भी सेक्युलरिज्म की चर्चा जोरो-शोरों पर रही है। 26 नवंबर 2015 को देश की संसद में तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि देश में अगर किसी शब्द का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ है। तो वो शब्द सेक्युलर है। वहीं यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने भी राजनाथ का जवाब दिया था। 

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संविधान में सेक्युलर शब्द अथवा किसी अन्य शब्द पर बहस का रास्ता हमेशा खुला रहता है, क्योंकि वस्तुत: यह संविधान ‘वी द पीपुल’ द्वारा ‘फॉर द पीपुल’ ग्रहण किया गया है। लिहाजा इस बहस को ज्यादा विस्तृत और तर्कसंगत बनाने की जरूरत है क्योंकि 1950 में संविधान बन कर तैयार होने के बाद से 1976 के 42वें संशोधन तक (‘सेक्युलरिजम’ शब्द को शामिल किया गया था) से लेकर अब 21वीं सदी में पूरी दुनिया ग्लोबलाइजेशन के सूत्र में पिरोई जा चुकी है।

 

संविधान के मुताबिक भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है लेकिन आजाद भारत के इतिहास में ऐसे कई मौके आए, जब धर्म ने राजनीति और सरकारों के फैसलों को प्रभावित किया है। ऐसे भी दावे किए जाते रहे कि भारत की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल न उठे इसलिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के नवीनीकरण और पुनर्स्थापना का काम देख रही कमेटी से खुद को अलग कर लिया था। पंडित नेहरू ने सौराष्ट्र (गुजरात राज्य के गठन से पहले सौराष्ट्र संविधान के तहत राज्य था) के तत्कालीन मुख्यमंत्री को मंदिर के निर्माण और उदघाटन में सरकारी पैसा खर्च न करने का निर्देश दिया था। रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब 'इंडिया आफ्टर गांधी' में लिखा है, प्रधानमंत्री (नेहरू) सोचते थे कि सरकारी अधिकारियों को सार्वजनिक जीवन में धर्म या धर्मस्थलों से नहीं जुड़ना चाहिए। वहीं राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद मानते थे कि उन्हें सभी धर्मों के प्रति बराबर और सार्वजनिक सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए।

 

धर्म के राजनीति पर असर का एक बडा़ उदाहरण शाहबानो केस भी है। मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को सुप्रीम कोर्ट में केस जीतने के बाद भी अपने पति से हर्जाना नहीं मिल सका। कारण था मुस्लिम मामलों को लेकर हुई राजनीति।

 

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। इसके बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए। दिल्ली समेत देश के कई इलाकों में हुए इन दंगों में हजारों सिखों की हत्या कर दी गई थी।

 

छह दिसंबर 1992 को विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और शिवसेना जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों के कारसेवकों ने अयोध्या की भूमि पर 16वीं शताब्दी से खड़ी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया।

 

सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी पर हमेशा सांप्रदायिक होने के आरोप लगते रहे हैं। 1996 में बीजेपी की तेजतर्रार नेत्री दिवंगत सुषमा स्वराज ने बीजेपी के साम्प्रदायिक होने और अन्य दलों के विचारधारा पर प्रहार करते हुए जोरदार भाषण दिया था। सुषमा ने कहा कि हां, हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम वन्दे मातरम् गाने की वकालत करते हैं। क्योंकि हम राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम धारा 370 को खत्म करने की बात करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की बात करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम कश्मीरी शरणार्थियों को जुबान देने की बात करते हैं।’’ सुषमा ने देवेगौड़ा सरकार के सेकुलरिज्म पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए अपना भाषण जारी रखा। सुषमा ने कांग्रेस पर हमला करते हुए पूछा, ‘‘क्या दिल्ली की सड़कों पर सिखों का कत्लेआम करने वाली कांग्रेस सेक्युलर है?’’ इसके बाद स्पीकर नीतीश कुमार से मुखातिब होकर सुषमा ने पूछा कि ‘‘आप बिहार के साक्षी हैं। क्या मुस्लिम और यादव का MY समीकरण बनाकर राजनीति करने वाले ये जनता दल के नेता सेक्युलर हैं?’’

इसी बीच कांग्रेस और जनता दल के नेता भड़क उठे और हंगामा करने लगे। फिर खड़े हुए चन्द्रशेखर।

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दबंग आवाज में चंद्रशेखर स्पीकर की ओर देख कर कहते हैं ‘‘अध्यक्ष जी मैं ये नहीं जानता कि आपके अलावा कितने और अध्यक्ष हैं। लेकिन मैं आपसे ये निवेदन करना चाहूंगा कि अगर कोई सदस्य बोल रहे हैं तो हमे ये अनुमति मिलनी चाहिए कि हम सुन सकें। मैं ये नहीं जानता कि ये किस रोष में बोल रहे हैं, आप ये रोष मत दिखाइए मैंने आपसे बहुत से रोष वालों को देखा है। जब सुषमा जी बोल रहीं है तो उनको बोलने देना चाहिए।’’

 

जिसके बाद सुषमा स्वराज ने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा कि ‘एक हिन्दू, अच्छा हिन्दू हो। एक मुसलमान, अच्छा मुसलमान हो। एक सिख, अच्छा सिख हो और एक ईसाई, अच्छा ईसाई। ये है हमारा सेक्युलरिज्म। भंगड़े से भरत नाट्यम तक, सारे नृत्य भारतवर्ष के नृत्य हैं, इसे कहते हैं भारतीयता। मैसूर का एक व्यक्ति उतने ही चाव से राजमा-चावल खाता है जितने चाव से पंजाब का एक सरदार इडली-डोसा खाता है। भारतीयता का अर्थ यही है कि अमरनाथ से लेकर रामेश्वरम तक सभी तीर्थ भारत के तीर्थ हैं। इसे कहते हैं भारतीयता! एक शिवभक्त अमरनाथ का जल लेकर हजारों किलोमीटर दूर जाता है और रामेश्वरम के पैर पखारता है। इसे कहते हैं भारतीयता। जब पश्चिम बंगाल में निर्मल चटर्जी के घर पुत्र का जन्म होता है तो उसका नाम रखा जाता है सोमनाथ, इसे कहते हैं भारतीयता।

 

बहरहाल, वर्तमान दौर की बात करें तो आज की राजनीति सैद्धांतिक तौर पर नेताओं को पूर्ण समभाव रखने के लिए कहती है। अपनी संस्कृति, अपने समाज की कीमत पर यह पूर्ण समभाव का मार्ग दिखाती है। भारत का राजनैतिक सेकुलरिज्म न तो इसके वास्तविक स्वरुप को दर्शाता है और न ही इसके भारतीय स्वरुप को। यह सिर्फ आरोप प्रत्यारोप का एक खेल है जिससे एक साधारण भारतीय को बहकाने का प्रयास होता है। यहाँ कोई समभाव नहीं रखता। सबके अपने हित हैं और सेकुलरिज्म कुछ के हाथों का खिलौना या हथियार बन के रह गया है।

 

- अभिनय आकाश

 

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