सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले नुकसानों को पढ़ लीजिये, तब समझेंगे मोदी क्यों इसे हटा रहे हैं

By नीरज कुमार दुबे | Sep 19, 2019

देश को दशकों पुरानी समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब सिंगल यूज प्लास्टिक से निजात दिलाने का फैसला कर लिया है। प्रधानमंत्री ने इसी महीने देशव्यापी 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान का शुभारम्भ करते हुए जनता से सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को खत्म करने की अपील की थी और अब 2 अक्तूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती से सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्णतया प्रतिबंध होगा। हालांकि अधिकांश लोगों के बीच यह भ्रम है कि प्लास्टिक की सभी चीजें बंद हो रही हैं या कुछ ही चीजें। कई लोग तो यह भी नहीं जानते की सिंगल यूज प्लास्टिक होता क्या है और अन्य प्लास्टिक से कैसे अलग है ? तो कई लोग ऐसे भी हैं जो यह जानना चाहते हैं कि प्लास्टिक हमारे लिए और प्रकृति के लिए कैसे और कितना नुकसानदायक है। तो आइए आपके मन में उमड़-घुमड़ रहे सभी सवालों के जवाब आज दिये देते हैं।

 

सबसे पहले समझते हैं कि यह सिंगल यूज प्लास्टिक है क्या- चालीस माइक्रोमीटर (माइक्रॉन) या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक कहते हैं। इसका मतलब प्लास्टिक से बनी उन चीजों से है जो एक बार ही उपयोग में लायी जाती हैं और उसके बाद फेंक दी जाती हैं। मसलन आप जब बाजार में सब्जी या फल लेने जाते हैं तो आपको जो प्लास्टिक की पन्नी दी जाती है वह सिंगल यूज प्लास्टिक है। आप चाय वाले की दुकान पर जिस प्लास्टिक के कप में चाय की चुस्कियां लेते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है, आप चाट वाले की दुकान पर जिस प्लास्टिक की प्लेट में गोलगप्पे या पापड़ी खाते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है, आप बाजार से जो पानी की बोलत खरीद कर पीते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है, आप शीतल पेय को जिस स्ट्रा के जरिये फटाफट गटक जाते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है, आप जिस प्लास्टिक के चाकू से बर्थडे केक काटते हुए लंबी उम्र की कामना करते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है, आप जिस प्लास्टिक के चम्मच से केक के स्वाद का लुत्फ उठाते हैं वह सिंगल यूज प्लास्टिक है। इसी तरह ऐसी ही अनेकों प्लास्टिक की चीजें हैं जो हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी हुई हैं और उन्हें हम एक बार ही उपयोग में लाकर फेंक देते हैं। फेंक कर हम सोच लेते हैं कि हमारा तो इस कूड़े से पीछा छूटा लेकिन यहीं हम गलती कर जाते हैं यह सिंगल यूज प्लास्टिक हमारा पीछा छोड़ता नहीं है।

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बेहद कम खर्चे पर बनने वाले यह प्लास्टिक उत्पाद बहुत ज्यादा खतरनाक रसायन लिये होते हैं जिसका बुरा प्रभाव इंसान और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ता है। यही नहीं इस सिंगल यूज प्लास्टिक के कचरे की सफाई पर होने वाला खर्च भी बहुत आता है। वो इसलिए कि आप जिस पन्नी में सब्जी खरीद कर लाते हैं वह आसानी से फट तो जाती है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होती। जब इस सिंगल यूज प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट करने की कोशिश की जाती है तो यह नष्ट होने की बजाय छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाता है और विषैला रसायन पैदा कर भूमि की उर्वरक क्षमता को नुकसान पहुँचाता है। मिट्टी में घुलमिल चुका यह विषैला रसायन जैसे ही खाद्य पदार्थों और पानी में पहुँचता तो उससे मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। आपने कई जगह पढ़ा होगा, देखा-सुना होगा कि कैंसर जैसी बीमारी फैलती जा रही है। आपको आश्चर्य तब होता होगा जब आप देखते होंगे कि बहुत सफाई से रहने वाले और कोई गलत आदत नहीं पालने वाले व्यक्ति कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। मन में सवाल आता होगा कि वह तंबाकू या गुटखा तो खाता नहीं था फिर ऐसा क्यों हो गया। तो इसका जवाब है वह विष जो हमारी धरती, हमारे पाने, हमारे खाद्य उत्पादों में धीरे-धीरे फैलता जा रहा है। इसे जहर को खत्म करना है तो सिंगल यूज प्लास्टिक के विरोध में उठ खड़ा होना होगा। यह सही है कि शुरू में हमें दिक्कत होगी लेकिन अपनी और आने वाली पीढ़ियों, जानवरों और प्रकृति से जुड़ी हर चीज की कुशलता के लिए यह जरूरी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को जड़ से खत्म किया जाये। इंग्लैंड के शोधकर्ताओं की ओर से किया गया एक अध्ययन बताता है कि एक इंसान हर साल औसतन 70 हजार माइक्रोप्लास्टिक का सेवन करता है।

 

सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले और नुकसानों के बारे में आपको बतायें उससे पहले यह जान लीजिये कि यह प्लास्टिक कास्नोजेनिक होता है और इसमें कैंसरकारक रसायन होते हैं। आपने बहुत बार देखा होगा कि सड़कों पर गाय, कुत्ते या अन्य छुट्टा जानवर कचरा खा रहे होते हैं। इस कचरे में सिंगल यूज प्लास्टिक भी होता है जोकि इन जानवरों के पेट में जाने के बाद इकट्ठा होता रहता है क्योंकि यह पच नहीं सकता। कुछ दिनों बाद यह जानवर बीमार होने लगते हैं और तड़पते हुए दम तोड़ देते हैं। जमीन पर जानवरों के सिंगल यूज प्लास्टिक से परेशान होने तक ही बात सीमित नहीं रह गयी है बल्कि इससे समुद्री जीव भी प्रभावित हो रहे हैं। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में फैला हुआ है। यह अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि सिर्फ एक प्रतिशत प्लास्टिक कचरा हमें समुद्र तल पर दिखाई देता है जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में या समुद्र तल में जा चुका है। प्लास्टिक से नदियों, झीलों, तालाबों के जीवों को बहुत नुकसान होता है। एक और हालिया रिपोर्ट बताती है कि प्लास्टिक की वजह से हर साल लगभग 11 लाख समुद्री पक्षियों और जानवरों की मौत होती है, यही नहीं 90 फीसदी पक्षियों और मछलियों के पेट में प्लास्टिक मिला है। दरअसल जब समुद्र के अंदर समुद्री जीव भोजन की तलाश में निकलते हैं तो अनजाने में प्लास्टिक का सेवन कर जाते हैं। और यही एक बड़ा कारण है कि आज लगभग 700 समुद्री जीव लुप्त होने की कगार पर पहुँच गये हैं। यहाँ यह आंकड़ा गौर करने लायक है कि जितने प्लास्टिक का उपयोग होता है उसका करीब 91 फीसदी रिसाइकल नहीं होता यानि समस्या कितनी विकराल है यह अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

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सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ भारत ही उठ खड़ा हुआ है ऐसा नहीं है बल्कि दुनिया भर के देश इस बड़ी समस्या से निजात पाने के लिए रणनीतियां बनाने में जुट गये हैं। भारत सरकार जहाँ सभी राज्यों को यह निर्देश दे चुकी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पाद बनाने वाली इकाइयों को बंद कराया जाये वहीं अब जल्द ही सरकारी दफ्तरों में प्लास्टिक की बोतलों की बजाय मिट्टी और धातु के बर्तन आपको दिखेंगे। केंद्र सरकार का पूरा प्रयास है कि प्लास्टिक थैलियों, प्लास्टिक की कटलरी और थर्माकॉल से बनी कटलरी का उत्पादन और बिक्री पूरी तरह बंद हो जाये। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी दिशानिर्देश में भी कहा गया है कि सरकारी और निजी कार्यालयों में कृत्रिम फूल, बैनर, फूल लगाने वाले पॉट और प्लास्टिक स्टेशनरी आइटम खासकर प्लास्टिक फोल्डर उपयोग में नहीं लिये जाएं। खाद्य नियामक FSSAI ने कहा है कि उसने प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें होटलों को प्लास्टिक बोतलों के स्थान पर पेपर-सील वाली कांच की बोतलों का उपयोग करने को कहा गया है। नियामक ने प्लास्टिक के ‘स्ट्रॉ’, प्लेट, कटोरे और कटलरी के विकल्प के रूप में बांस के उत्पादों की अनुमति दी है। यही नहीं रेल यात्रियों को जल्दी ही 400 रेलवे स्टेशनों पर चाय, लस्सी और खाने-पीने का सामान मिट्टी से बने कुल्हड़, गिलास और दूसरे बर्तनों में मिलने लगेगा। इस कदम से जहां एक तरफ स्थानीय और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा, प्लास्टिक के उपयोग पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी तरफ कुम्हारों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी।

 

जहाँ तक बाजार में बिकने वाली पानी की बोतलों का सवाल है तो इनका कोई प्रभावी विकल्प फिलहाल नजर नहीं आ रहा है इसीलिए शायद यह बोतलें अभी कुछ समय दिखें। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने कहा भी है कि सरकार सही विकल्प मिलने तक पानी की प्लास्टिक बोतलों पर रोक नहीं लगाएगी। इन कंपनियों को विकल्प कब मिलेगा इसकी चिंता छोड़ कर आप खुद स्टील, तांबे की बोतलों को रखना शुरू कर दीजिये। देखिये हमारे फिल्म उद्योग ने तो इस संबंध में पहल भी कर दी है। अभिनेता विक्की कौशल ने कहा है कि एक बार इस्तेमाल वाली प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद प्रत्येक फिल्म के सेट पर इस बात पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया जाए। फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों ने स्टील की बोतलों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है जिसे प्रधानमंत्री ने सराहा भी है।

 

हालांकि जब हम सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान आगे बढ़ा रहे हैं तो हमें व्यापारियों की चिंता पर भी गौर कर लेना चाहिए। खुदरा कारोबारियों ने बड़ी कंपनियों को एकल इस्तेमाल के प्लास्टिक का उपयोग करने से रोकने के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश की भी मांग की है। इन कारोबारियों का कहना है कि बड़े विनिर्माताओं द्वारा इस तरह के प्लास्टिक में पैक सामानों को बेचने के लिये कारोबारी बाध्य हैं। वैसे इस मुद्दे पर किसी को भी राजनीति करने से बचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि पर्यावरण मंत्री रहते हुए उन्होंने एक बार प्रयोग में आने वाले प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध का विरोध किया था। उनका कहना है कि प्लास्टिक उद्योग से लाखों लोग जुड़े हैं और असल समस्या यह है कि हम प्लास्टिक के कचरे का किस तरह निस्तारण और पुनर्च्रकण करते हैं। जयराम रमेश कह रहे हैं कि ''यह प्रतिबंध देश विदेश में सुर्खियां बटोरेगा और मोदी शासन के वास्तविक पर्यावरण रिकॉर्ड को छिपाने का काम करेगा।’’

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बहरहाल...जहां तक इस अभियान की सफलता और असफलता की बात है तो प्रधानमंत्री ने जब लाल किले की प्राचीर से 2014 में शौचालय एवं स्वच्छता की बात की थी, उस समय की देश की स्थिति और माहौल में ऐसी बात करना अभूतपूर्व था लेकिन पिछले पांच वर्षों में इसकी सफलता की कहानी पूरे विश्व को आकर्षित कर रही है। स्वतंत्रता आंदोलन को याद कीजिये। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन और उसके बाद 1947 में देश को मिली आजादी केवल भारत के लिये ही महत्वपूर्ण नहीं थी बल्कि पूरे विश्व के लिये अनुकरणीय थी। भारत की आजादी के 25 वर्ष के भीतर दुनिया के अधिकांश देश आजाद हो गए थे। इसी तरह एक बार उपयोग में आने वाले प्लास्टिक के उपयोग के खिलाफ अब भारत ने जो खड़ा होने की बात ठानी है उसमें सभी भारतीयों को सहयोग करना चाहिए ताकि हम एक बार फिर विश्व के लिए अनुकरणीय बन सकें। 

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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