क्या है Roe vs Wade मामला जिसे पलट सकता है सुप्रीम कोर्ट, अमेरिका में खत्म होगा गर्भपात का अधिकार, भारत में अबॉर्शन लॉ की क्या स्थिति है?

By अभिनय आकाश | May 05, 2022

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट गर्भपात के संवैधानिक अधिकार से संबंधित पांच दशक पुराने फैसले को पलटने की तैयारी में है। जिसको लेकर अमेरिका में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। गर्भपात के अधिकारों के समर्थक और विरोधी महिलाओं ने हजारों की संख्या में देशभर में रैली निकाली। व्हाइट हाउस और अमेरिकी संसद के सामने प्रदर्शन भी हुए। न्यूयॉर्क के फोली स्क्वायर के खिलाफ हजारों लोगों ने ड्राफ्ट के खिलाफ नारेबाजी कर सड़कों पर प्रदर्शन किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से भी इसको लेकर प्रतिक्रिया आ गई। इन्होंने ड्राफ्ट रूलिंग की निंदा की। ऐसे में आज हम पूरे मामले से जुड़े पांच सवालों का एमआरआई स्कैन करेंगे-

1. अमेरिका में किस बात को लेकर लोग प्रदर्शन कर रहे हैं? 

2. रो बनाम वेड फैसला क्या है?

3. अमेरिकी सरकार का रूख क्या है?

4. सुप्रीम कोर्ट का फैसला कैसे लीक हो गया?

5. भारत में गर्भपात कानून को लेकर क्या स्थिति है?

अमेरिका में क्यों हो रहे हैं प्रदर्शन?

अमेरिका में पिछले 50 सालों से गर्भपात कानून को लेकर विवाद बना हुआ है और अमेरिकी समाज भी गर्भपात करवाने के लिए कानून की जरूरत को लेकर दो मतों में बंटे हैं। हालिया दौर में भी सुप्रीम कोर्ट में गर्भपात कानून से जुड़े मामले की सुनवाई चल रही है। कुछ ही दिनों में इसको लेकर फैसला भी आने वाला है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही ये लीक हो गया। अमेरिका की पोलिटिको नाम की एक वेबसाइट ने अमेरिकी जजों के फैसले को लीक कर दिया। जिसके बाद ये मुद्दा सुलग उठा। अमेरिका में एक फैसले का मसौदा लीक हुआ है जिसके अनुसार वहां की सर्वोच्च अदालत 1973 के रो बनाम वेड के ऐतिहासिक फैसले को पलट सकती है। पोलिटिको वेबसाइट के अनुसार अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच में से 5 जजों ने रो बनाम वेड केस में दिए गए अधिकार को पलटने के फैसले पर सहमत हैं। संविधान में कहीं भी गर्भपात को लेकर अधिकार नहीं दिए गए हैं। ड्राफ्ट के अनुसार फैसला आने के बाद अलबामा, जॉर्जिया, इंडियाना  अमेरिका के 24 राज्य गर्भपात को बैन करने जैसे कदम उठा सकते हैं। अमेरिकी की एक बड़ी आबादी का मानना है, कि गर्भपात करवाना उनका मौलिक अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट उनसे यह अधिकार नहीं छीन सकता है। 

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रो बनाम वेड क्या है?

साल 1973 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के अधिकार पर एक फैसला सुनाया था। इस केस को रो बनाम वेड के नाम से जाना जाता है। अमेरिका के टेक्सिस में रहने वाली लड़की नॉर्मा मैककॉर्वी की छोटी उम्र में ही शादी हो गई और 16 साल की उम्र में वो पहली बार प्रेग्नेंट हुई। लेकिन बच्चे के जन्म से पहले ही उसका तलाक हो गया और उसने अपने पहले बच्चे की कस्टडी अपनी मां को दे दी। 20 साल की उम्र में उसे दूसरा बच्चा हुआ जिसे उसने अडॉप्शन के लिए दे दिया। ठीक दो बरस बाद वो तीसरी बार मां बनने वाली थी। लेकिन इस बार उसे ये बच्चा नहीं चाहिए था। नॉर्मा गर्भपात कराना चाहती थी। लेकिन टेक्सिस में ऐसी  कोई व्यवस्था नहीं थी। राज्य में गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में मिलती थी जिसमें मां की जान को खतरा हो। नॉर्मा इसको लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसे लगा कि इस पर फैसला जल्द ही आएगा। लेकिन जब तक कोर्ट का फैसला आता तब तक उसकी तीसरी संतान पैदा हो चुकी थी। नॉर्मा ने उसे भी अडॉप्शन के लिए दे दिया। केस तब भी चल रहा था। जून 1970 में निटली अदालत का फैसला आया। तीन जजों की बेंच ने टेक्सिस के गर्भपात विरोधी कानून को असंवैधानिक बता दिया। टेक्सिस सरकार ने इसके खिलाफ अपील की। सबकुछ तो सही है आप कह रहे होंगे की रो बनाम वेड का क्या चक्कर है। तो बता दें कि जिस वक्त ये सारा मामला चल रहा था उस वक्त नॉर्मा मैककॉर्वी का असली नाम छिपा लिया गया था। उन्हें जेन रो के रूप में एक सांकेतिक पहचान दी गई थी। जबकि हेनरी वेड उस दौर में टेक्सिस के डलास काउंटी के जिला अटार्नी हुआ करते थे। इसलिए केस को रो बनाम वेड के नाम से जाना गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और जनवरी 1973 में इस पर फैसला आया। कोर्ट ने 7:2 के अंतर से जेन रो के पक्ष में फैसला सुनाया। इसमें कहा गया कि गर्भवती महिला एक तय समय तक गर्भपात करा सकती है। इसमें राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। तय समय मतलब जब भ्रूण गर्भ से बाहर सर्वाइव करने में सक्षम हो जाए। 1973 में फैसले के समय ये अवधि गर्भधारण से 28 हफ्ते की थी। फिलहाल असे 22-24 हफ्ते के बीच रखा गया है। 1992 के साल में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में थोड़ा संशोधन करते हुए जब भ्रूण गर्भ से बाहर सर्वाइव करने में सक्षम होने वाला नियम लागू किया। यानी गर्भधारण करने के 24 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता था। 

अब क्या हुआ

ये विवाद आज चर्चा में इसलिए है क्योंकि इसकी बुनियाद 2018 में ही रख दी गई थी। 2018 में मिसिसिपी राज्य के रिपब्लिकन-बहुमत विधायिका ने 15 सप्ताह के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया। ये 1973 के फैसले को एक सीधी चुनौती थी। राज्य में आकिरी शेष गर्भपात क्लिनिक जैक्सन महिला स्वास्थ्य संगठन में 16 हफ्ते तक की गर्भव्यवस्था में  गर्भपात किया जाता था। उसने स्टेट के फैसले को कानूनी चुनौती दी। नवंबर 2018 में अमेरिकी जिला न्यायाधीश कार्लटन रीव्स ने स्टेट लॉ को खारिज कर दिया और कहा कि ये महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है। 19 मार्च 2019 को तत्कालीन रिपब्लिकन गवर्नर फिल ब्रायंट ने तथाकथित "हार्ट बिट" गर्भपात कानून पर हस्ताक्षर कर दिए। जिसके तहत जब भ्रूण की हृदय गतिविधि दिखने लगे तो गर्भपात नहीं किया जा सकता। आम तौर पर ये अवधि गर्भाव्यस्था के छह हफ्ते बाद की होती है। इस कानून को भी जिला जज ने ब्लॉक कर दिया था और फरवरी 2020 में न्यू ऑरलियन्स में 5वीं सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने इसे रद्द करने का फैसला सुनाया। फिर 15 हफ्ते वाला केस  सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। इस केस का फैसला अभी भी लंबित है और रिपोर्ट के अनुसार ये जून या जुलाई में आने वाला था। 

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क्यों अहम है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

गर्भपात के मुद्दे ने दशकों से अमेरिका में रूढ़िवादियों और उदारवादियों के बीच राय को तेजी से विभाजित किया है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा तीन न्यायाधीशों के नामांकन के बाद रूढ़िवादियों के वर्चस्व वाली नौ सदस्यीय अदालत के जून तक मिसिसिपी मामले में फैसला जारी करने की उम्मीद है। पोलिटिको ने अदालत के विचार-विमर्श से परिचित एक व्यक्ति का हवाला देते हुए कहा कि चार अन्य रूढ़िवादी न्यायाधीशों - क्लेरेंस थॉमस, नील गोरसच, ब्रेट कवानुघ और एमी कोनी बैरेट - ने बहुमत की राय के पहले मसौदे के लेखक अलीटो के साथ मतदान किया था। पोलिटिको ने जोर देकर कहा कि उसे जो दस्तावेज प्राप्त हुआ है वे एक मसौदा है और न्यायाधीश कभी-कभी अंतिम निर्णय से पहले अपने वोट बदलते हैं।

क्या होगा अगर रो बनाम वेड फैसला पलटा जाता है?

अमेरिका में गर्भपात के अधिकार की रक्षा करने वाला कोई संघीय कानून नहीं है, इसलिए रो के पलटने से गर्भपात कानून पूरी तरह से राज्यों के अधिकार का विषय हो जाएगा। रूढ़िवादी राज्य उन प्रतिबंधात्मक कानूनों को वापस ला सकते हैं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1973 में भ्रूण व्यवहार्यता मानक निर्धारित करने से पहले गर्भपात को प्रतिबंधित करते थे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया कि 22 राज्यों में विधायिका गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाएगी, और ज्यादातर मामलों में गरीब महिलाओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 और 2016 के बीच टेक्सास में गर्भपात क्लीनिकों के बंद होने के प्रभावों के आधार पर अनुसंधान का हवाला देते हुए बताया है कि अमेरिका में वैध गर्भपात क्लिनिक की संख्या में कम से कम 14% की गिरावट आ सकती है। 

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राजनीतिक असर और आगामी चुनाव से कनेक्शन 

रिपब्लिकन पार्टी के सांसद गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने का कानून बनाने को लेकर रणनीति बना रहे हैं, जिसमें देशभर में छह हफ्ते के बाद गर्भपात कराने पर पाबंदी होगी। वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस बात पर जोर दिया है कि मूल निष्पक्षता और हमारे कानून की स्थिरता की मांग है कि अमेरिकी उच्चतम न्यायालय 1973 के रो बनाम वेड मामले को नहीं पलटे जिसने देशभर में गर्भपात को वैध बना दिया था। बाइडन ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मसौदे को न्यायाधीशों द्वारा अंतिम रूप नहीं दिया जाएगा। अमेरिका में गर्भपात एक संवेदनशील मुद्दा माना जाता है। महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दिया जाए या नहीं इसमें धार्मिक कारक भी शामिल हैं और यह अमेरिकी राजनीति में एक बड़ा मुद्दा होने वाला है क्योंकि इसी साल नवंबर में कॉन्ग्रेस की सभी सीटों और सीनेट की सौ में से 25 सीटों पर चुनाव होना है। गर्भपात का मुद्दा अमेरिकी कंजरवेटिव्स और लिबर्स को दो स्पष्ट भागों में बांट देता है।

ऑस्ट्रेलिया पर क्या होगा असर?

अमेरिका में गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने का असर ऑस्ट्रेलिया में भी देखा जा सकता है, जिसे कभी-कभी अमेरिका का 51वां राज्य भी कहा जाता है। गर्भपात के मामले में हमारे यहां की राजनीति और कानून बिल्कुल अलग हैं। ऑस्ट्रेलियाई जनता किसी की पसंद की समर्थक मानी जाती है और दशकों से इसका यही मिजाज रहा है। ऑस्ट्रेलिया में गर्भपात को लेकर राज्य और क्षेत्रीय कानून हैं और 21वीं सदी में आम राय गर्भपात को कानूनी अधिकार के रूप में स्थापित करने की रही है। 2021 में, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया गर्भपात को अपराध मुक्त बनाने वाला अंतिम क्षेत्र बन गया था। ऐसे में मोटे तौर पर देखा जाए तो गर्भपात को लेकर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों देश विपरीत दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं। एक ओर जहां अमेरिका में गर्भपात पर पाबंदी लगाने की तैयारी चल रही है, तो दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया इसे लेकर उदार रवैया अपना रहा है। ऐसे में आने वाले वक्त में इस बात पर सबकी नजर रहेगी कि अमेरिका में होने वाले बदलावों का ऑस्ट्रेलिया में क्या असर होगा।

भारत में गर्भपात कानून की स्थिति

भारत का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है। 2021 में एक संशोधन के माध्यम से, गर्भपात की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया था, लेकिन केवल विशेष श्रेणी की गर्भवती महिलाओं जैसे कि बलात्कार या अनाचार से बचे लोगों के लिए, वह भी दो पंजीकृत डॉक्टरों की मंजूरी के साथ। भ्रूण की अक्षमता के मामले में, गर्भपात की समय सीमा की कोई सीमा नहीं है, लेकिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों द्वारा स्थापित विशेषज्ञ डॉक्टरों के एक मेडिकल बोर्ड द्वारा इसकी अनुमति दी जाती है।

 

-अभिनय आकाश 


 

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