राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) क्या है? इससे किसको और क्या फायदा होगा?

By कमलेश पांडे | Nov 26, 2024

भारत गांवों का देश है। यहां की 80 प्रतिशत आबादी गांवों में ही रहती है। उनका मुख्य पेशा कृषि यानी खेती-बाड़ी है। इसके सहायक धंधे के रूप में पशुपालन और कुटीर उद्योग का काम भी वो कर लेते हैं। 1970 के दशक की हरित क्रांति ने पैदावार तो बढ़ा दिया, लेकिन रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं के बढ़ते प्रयोग से अनाज व सब्जियों की खाद्य गुणवत्ता प्रभावित हो गई, जिसका मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर महसूस किया गया। 


यही वजह है कि अब देश में प्राकृतिक खेती/जैविक खेती को बढ़ाना देने की योजना के मद्देनजर केंद्र में तीसरी बार सत्तारूढ़ हुई मोदी सरकार ने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को लागू किया। गत दिनों किसानों को मोदी सरकार ने एक बड़ी सौगात दी और ₹ 2481 करोड़ के राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को मंजूरी प्रदान की। बता दें कि हरित क्रांति से पहले भारत में प्राकृतिक खेती ही होती थी। जहां सभी उत्पादों के बीज घरेलू होते थे। कम्पोस्ट खाद भी घर पर ही तैयार किये जाते थे। जोताई-कोड़ाई के साधन भी हल-बैल या कुदाल थे। सिंचाई के लिए भी कुएं या तालाब का प्रयोग किया जाता था।

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लेकिन पहले हरित क्रांति और फिर नई आर्थिक नीतियों के बाजारू सरोकार ने किसानों को एक बाजार के रूप में तब्दील कर दिया, जहां कृषि उपयोग की चीजें तो महंगी बेची जाती थीं, लेकिन कृषि उत्पादों को काफी कम मूल्य पर खरीद कर काफी मुनाफा कमाया जाता है। जुताई के लिए ट्रैक्टर, पटवन के लिए डीजल पंप और बोरिंग, बाजारू बीज, रसायनिक खाद और कीटनाशक के अलावा कृषि के हरेक क्षेत्र में बुवाई और कटाई के आधुनिक मशीनों का उपयोग होने लगा। सरकारी सब्सिडी के चलते भी इनकी लोकप्रियता बढ़ती गई। लेकिन जब इसके साइड इफेक्ट्स को समझा गया, तब सरकार ने पुनः प्राकृतिक खेती की ओर ही लौटने का निश्चय किया।


गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गत  25 नवम्बर 2024 दिन सोमवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में कई बड़े फैसले लिए गए, जिसमें कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) को शुरू करने की मंजूरी दी गई। बताया गया है कि इस योजना पर 2481 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें राज्य सरकार की भी हिस्सेदारी होगी। खास बात यह है कि इस मिशन के तहत किसान अपने पूर्वजों से विरासत में मिले पारंपरिक ज्ञान के आधार पर खेतों में उर्वरक यानी खाद डालेंगे। इससे किसानों को रसायन मुक्त खेती करने की आदत बनेगी।


बताते चलें कि प्राकृतिक खेती परंपरागत तरीके से होती है, जिसमें स्थानीय जानकारों और स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के हिसाब फसल उगाए जाते हैं। दरअसल, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन का उद्देश्य सभी के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिए कृषि गत परंपरागत कार्य प्रणालियों को बढ़ावा देना है। इस मिशन का उद्देश्य किसानों को खेती में आने वाली लागत को कम करना और कम से कम बाहरी संसाधनों का इस्तेमाल करना है, जिसका जिक्र हम पहले कर चुके हैं। कुलमिलाकर प्राकृतिक खेती एक हेल्दी इकोसिस्टम का निर्माण और रखरखाव करेगी। इससे जैव विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा।


बताया गया है कि अगले दो वर्षों में राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन को इच्छुक ग्राम पंचायतों के 15,000 समूहों में लागू किया जाएगा। इस मिशन के तहत एक करोड़ किसानों के 7.5 लाख हेक्टेयर खेतों में प्राकृतिक तरीके से खेती को बढ़ावा दिया जाएगाा। इसके तहत, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन से जुड़े खेती करने वाले किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा, किसानों के लिए उपयोग के लिए तैयार राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन लागत की आसान उपलब्धता और पहुंच प्रदान करने के लिए आवश्यकता-आधारित 10,000 जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (बीआरसी) स्थापित किए जाएंगे।


यही नहीं, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके), कृषि विश्वविद्यालयों (एयू) और किसानों के खेतों में लगभग 2000 एनएफ मॉडल प्रदर्शन फार्म स्थापित किए जाएंगे। जिन्हें अनुभवी और प्रशिक्षित किसान मास्टर प्रशिक्षकों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।इस मिशन के स्वप्न  को साकार करने के इच्छुक किसानों को उनके गांवों के पास केवीके, एयू और एनएफ खेती करने वाले किसानों के खेतों में एनएफ पैकेज ऑफ प्रैक्टिस, एनएफ इनपुट की तैयारी आदि पर मॉडल प्रदर्शन फार्मों में प्रशिक्षित किया जाएगा।


खास बात यह है कि इस मिशन के तहत 18.75 लाख प्रशिक्षित किसान अपने पशुओं का उपयोग करके प्राकृतिक उर्वरक तैयार करेंगे। वहीं, उनमें जागरूकता पैदा करने, उन्हें इस मिशन की प्राप्ति हेतु एकजुट करने और समूहों में इच्छुक किसानों की मदद करने के लिए 30,000 कृषि सखियों को तैनात किया जाएगा। इससे स्थानीय रोजगार को भी कई नए आयाम मिलेंगे। कुलमिलाकर ये तरीके उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के संपर्क में आने से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को भी कम करते हैं और किसानों के परिवार को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन प्रदान करते हैं। यही वजह है कि इस विधि के अपनाने से आने वाली पीढ़ियों को रसायन मुक्त फसल और एक स्वस्थ धरती माता मिलेगी। प्राचीन भारत की कृषि प्रणाली भी ऐसी ही थी। इसलिए मोदी सरकार का यह निर्णय सराहनीय है। इससे ग्रामांचलों में भारतीय संस्कृति की जड़ें और गहरी होंगीं।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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