पिछले दिनों शाम को मैं शर्मा जी के घर गया, तो पता लगा वे बाजार गये हैं। प्रायः बाजार के काम वे दिन में ही निबटा लेते हैं। मैंने सोचा शायद मैडम ने कोई अर्जेंट काम बता दिया होगा। शर्मा जी एक बार भगवान की बात टाल सकते हैं; पर मैडम की नहीं। आखिर पेट का सवाल जो ठहरा।
परसों फिर गया, तब भी वे बाजार गये हुए थे। मैंने तय किया कि चाहे जो हो, पर आज मिलकर ही जाऊंगा। इसलिए मैं वहीं बैठ गया। दो घंटे बाद वे लौटे। तब तक मैं एक गिलास ठंडाई और दो कप चाय पी चुका था।
- क्या बात है शर्मा जी, आजकल बाजार बहुत जा रहे हैं ?
- हां, एक किताब ढूंढ रहा हूं।
- इस आयु में किताब की क्या जरूरत पड़ गयी ? बच्चे सब अपने काम-धंधे में लग चुके हैं। आप पूरा अखबार ही नहीं पढ़ पाते। ऐसे में नयी किताब..?
- हां, बात ही कुछ ऐसी है।
- शर्मा जी, पहेली बुझाना बंद कर पूरी बात बताइये। शायद वह किताब मेरे पास हो।
- ऐसा है वर्मा कि मैं हिन्दी का शब्दकोष ढूंढ रहा हूं।
- हिन्दी तो आपकी ठीक ही है। फिर शब्दकोष का क्या करेंगे। क्या कविता, कहानी या उपन्यास लिखने की योजना है ?
- नहीं वर्मा, आजकल नेता लोग बिना सोचे-समझे न जाने क्या-क्या बोल जाते हैं ? इसके बाद मीडिया वाले उस शब्द को तब तक घिसते रहते हैं, जब तक उसकी चटनी न बन जाए। चार-छह दिन बाद कोई नयी बात आ जाती है, तो पुरानी कहानी बंद और नयी शुरू। इसलिए मैं इन बड़बोले नेताओं को एक-एक शब्दकोष देना चाहता हूं, जिससे ये बोलते समय सावधान रहें।
- आप शायद कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित की बात कर रहे हैं, जिसने हमारे सेनाध्यक्ष को सड़क का गुंडा कहा है ?
- बात सिर्फ संदीप दीक्षित की ही नहीं है। अमित शाह ने भी तो गांधी जी को चतुर बनिया कहा है। संदीप दीक्षित तो चलो फ्यूज बल्ब है। उनके नेता को ही कोई गंभीरता से नहीं लेता, तो उन्हें कौन पूछेगा; पर अमित शाह तो भा.ज.पा. के अध्यक्ष हैं। उन्हें तो ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
- शर्मा जी, आप जानते हैं कि अमित शाह गुजराती हैं ?
- हां, जानता हूं।
- तो गुजराती में चतुर का क्या अर्थ होता है ?
- चतुर यानि चालाक, शातिर।
- जी नहीं, गुजराती में चतुर यानि अति बुद्धिमान। इसलिए गांधी जी से बात करते हुए अंग्रेज बहुत सावधान रहते थे। पता नहीं, ये ‘चतुर बनिया’ उन्हें कहां फंसा दे। तुलसी बाबा ने भी हनुमान जी को ‘अति चातुर’ कहा है।
- अच्छा.... ?
- जी हां। गुजराती में किसी को चतुर कहना अच्छा मानते हैं, खराब नहीं; पर इसे ठीक से समझे बिना किसी पत्रकार ने तिल का ताड़ बना दिया। इसलिए शर्मा जी, यह समस्या नेताओं की ही नहीं, पत्रकारों की भी है। आजकल जिसे देखो पत्रकार बना फिर रहा है ? कुछ लोग तो जब तक कोई और काम नहीं मिलता, तब तक यही करने लगते हैं। उन्हें न भाषा का ठीक ज्ञान होता है, न व्याकरण का। बस कागज-कलम उठाया और बन गये पत्रकार।
- हां, ये तो है।
- ऐसे कई शब्द और भी हैं। ‘संभ्रांत’ व्यक्ति का अर्थ है पूरी तरह भ्रमित; पर हम उसे प्रतिष्ठित व्यक्ति कहते हैं। ‘अनर्गल’ का अर्थ है धाराप्रवाह; पर इसका एक अर्थ बकवास भी है। इसलिए पत्रकार को भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है। अनुवादक का काम तो और भी कठिन है। केवल शब्दकोष देखकर मक्खी की जगह मक्खी रखने से काम नहीं चलता। उसे दोनों भाषा, बोली और स्थानीय आंचलिक शब्द भी पता होने चाहिए।
- और संदीप दीक्षित ने जो कहा ?
- उसने तो हमारे सेनाध्यक्ष ही नहीं, पूरी सेना का अपमान किया है। वो भूलते हैं कि सैनिक सीमाओं पर गोलीवर्षा के बीच रात भर जागते हैं, तब हम चैन से सो पाते हैं।
- लेकिन वर्मा, कहने के थोड़ी देर बाद ही उन्हें गलती समझ में आ गयी और उन्होंने माफी मांग ली।
- हां, ये अच्छा ही किया; पर बात यहां भी भाषा ज्ञान की ही है। बड़े नेताओं के बच्चे देश और विदेश के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि वे कॉन्वेंटी अंग्रेजी में जो बोल रहे हैं, उसका हिन्दी में ठीक अर्थ क्या होता है ? राजीव गांधी ने 15 अगस्त को लालकिले से ‘स्वतंत्रता दिवस’ को ‘गनतंत्र दिवस’ कह दिया था। उस बेचारे को गणतंत्र का ठीक उच्चारण भी नहीं पता था। ऐसे जमीन से कटे हुए नेताओं ने ही देश और भारतीय भाषाओं का बेड़ा गर्क किया है।
इस विषय पर लम्बी बातचीत के बाद मैं लौट आया। कल शाम को मैं फिर शर्मा जी के घर गया, तब भी वे गायब मिले। पता लगा अब वे केवल हिन्दी ही नहीं, अंग्रेजी और गुजराती के शब्दकोष भी तलाश रहे हैं।
- विजय कुमार