By अंकित सिंह | Oct 09, 2023
मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान हो गया है। मध्य प्रदेश में एक चरण में 17 नवंबर को वोट डाले जाएंगे जबकि इसके नतीजे 3 दिसंबर को पांचो राज्यों के साथ ही आएंगे। मध्य प्रदेश में मुख्य मुकाबले लगातार भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रही है। 2003 के बाद 2018 से 2020 के मार्च को छोड़ दिया जाए तो लगातार भाजपा की सरकार रही है। भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा प्रदेश की कमान वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संभाला है। हालांकि बड़ा सवाल यही है कि फिलहाल मध्य प्रदेश की स्थिति क्या है और यहां किसकी बाजी होती दिखाई दे रही है?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि 2018 में जो चुनाव हुए थे उसमें बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर थी। कांग्रेस ने 114 सीटे हासिल की वहीं भाजपा के खाते में 109 सीटें गई। हालांकि वोट प्रतिशत भाजपा के पक्ष में था। मध्य प्रदेश में बहुमत का आंकड़ा 116 है और कांग्रेस ने अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार बना ली। हालांकि, यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और 2020 के मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के बाद उनके समर्थकों ने कांग्रेस सिस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए। कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिर गई और भाजपा ने एक बार फिर से मुख्यमंत्री का पद शिवराज सिंह चौहान को सौंपा।
वैसे तो देखा जाए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान की जोड़ी होने के बाद भाजपा को एक तरफ बढ़त मिलनी चाहिए। लेकिन जिस तरीके से मध्य प्रदेश को लेकर ओपिनियन पोल आ रहे हैं, उसमें कांग्रेस को बढ़त दिखाई दे रही है। भाजपा को नुकसान सिंधिया के गढ़ में ही हो रहा है। यही कारण है कि बीजेपी मध्य प्रदेश में फिलहाल पूरी मेहनत और ताकत लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी लगातार चुनावी घोषणाएं कर रहे थे। महिलाओं को साधने के लिए उन्होंने लाडली बहन योजना को लागू किया और महिलाओं के खाते में हर महीने 1250 रुपए डाले जाते हैं। शिवराज ने यहां तक कह दिया है कि इसे 3000 रुपये तक बढ़ाया जाएगा। हालांकि राज्य में शिवराज सिंह चौहान की ही स्थिति फिलहाल असमंजस में है। मुद्दा यह भी बना हुआ है कि शिवराज सिंह चौहान खुद विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे या नहीं?
इसका बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा ने सात सांसदों को चुनावी मैदान में उतार दिया है जिसमें से तीन ताकतवर केंद्रीय मंत्री हैं। नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रहलाद सिंह पटेल फिलहाल केंद्र में जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। लेकिन उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा गया है। दूसरी ओर राज्य में शिवराज सिंह चौहान के कंपीटीटर माने जा रहे कैलाश विजयवर्गीय को भी टिकट दे दिया गया है। भाजपा कहीं से भी शिवराज सिंह चौहान को आगे करती दिखाई नहीं दे रही है। पार्टी की ओर से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि हम सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे। वर्तमान में जो देखने को मिल रहा है वह यह भी है कि पूरा का पूरा चुनाव दिल्ली से भाजपा की ओर से कंट्रोल किया जा रहा है। दिलचस्प बात यह भी है कि प्रधानमंत्री और केंद्रीय नेताओं की ओर से केंद्र और राज्य की योजनाओं की बात तो होती है लेकिन शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया जाता। उनकी ओर से साफ तौर पर कहा जाता है कि हमारी सरकार ने किया है। शिवराज सिंह चौहान 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 2008 और 2013 में उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा गया और भाजपा ने जीत हासिल की। 2018 में भी शिवराज सिंह चौहान ही भाजपा के चेहरे रहे। हालांकि, इस बार पार्टी कुछ सीटों से पीछे रह गई थी।
शिवराज सिंह चौहान भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। शिवराज ने डिंडोरी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि मैं अच्छी सरकार चला रहा हूं या खराब। तो क्या इस सरकार को आगे जारी रहना चाहिए या नहीं? क्या मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिए या नहीं? इस पर, उपस्थित लोगों ने इन सभी प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर दिया। चौहान को दरकिनार करने की अटकलें जोरों पर हैं। राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले चौहान को हाल ही में सार्वजनिक कार्यक्रमों और रैलियों के दौरान भावुक होते देखा गया है। हाल ही में अपने गृह क्षेत्र बुधनी में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में चौहान ने लोगों से पूछा कि क्या उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं। उज्जैन में आयोजित एक कार्यक्रम में चौहान ने कहा कि राजनीति की राह फिसलन भरी है और हर कदम पर फिसलने का डर है। सीहोर के लाड़कुई में कहा कि 'भैया चला जाएगा तो बहुत याद आएगा'। अपने बयानों से शिवराज सिंह चौहान कहीं ना कहीं केंद्रीय नेताओं को भी संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि मैं अब भी राज्य में लोकप्रिय हूं।
कांग्रेस की बात करें तो कहीं ना कहीं कमलनाथ के ही चेहरे पर वह चुनाव लड़ने की तैयारी में है। हालांकि, अब तक खुला ऐलान नहीं किया जा रहा है। कांग्रेस पिछले चुनाव में हारी हुई सीटों पर विशेष रूप से फोकस कर रही है। कांग्रेस राज्य में हिंदुत्व के मुद्दे को भी हवा देने की कोशिश में है। कांग्रेस की ओर से कर्नाटक की तरह राज्य में भी 5 गारंटी की बात कही गई है। हालांकि, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उसके भी काट की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की वकालत कर रही है। जाहिर सी बात है कि मध्य प्रदेश में भी यह मुद्दा उठेगा। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग है और यहां कांग्रेस किसी भी कीमत पर चुनावी लाभ हासिल करना चाहेगी।
फिलहाल चुनावी बिगुल बज चुका है। आचार संहिता भी लागू हो गया है। अब असली चुनावी समर शुरू होगा, आरोप प्रत्यारोप की बौछार होगी और जमकर चुनाव प्रचार देखने को मिलेगा। लेकिन आखिरी फैसला जनता को ही लेना है। यही तो प्रजातंत्र है।