क्या है दिशा कानून, जिसे पूरे देश में लागू करने की उठी मांग

By अभिनय आकाश | Dec 16, 2019

दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 की रात एक बस की पिछली सीट पर जो भी कुछ हुआ था उसने पहली बार बलात्कार जैसे संगीन मुद्दे पर देश को झकझोरा था। ये ऐसा दर्दनाक केस था जब जनता, सरकार और कानून बनाने वाले सभी रो पड़े थे। उसके बाद दावों और वादों का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ। कानून का खौफ दिखाकर सूरत बदलने तक का भरोसा दिखाया गया। लेकिन उसके बाद बस वक्त ही बीता बाकी कुछ भी नहीं है। वरना 16 दिसंबर जैसी रात हैदराबाद में सामने न आती। 

 

हैदराबाद की हैवानियत पर पूरा देश उबल गया। हर आवाज में आक्रोश, गुस्सा और गम। चीख कर बोल रही है अब और नहीं कभी नहीं। एक ऐसा विभत्स अपराध जिसने फिर झकझोर कर रख दिया। एक ऐसी दहलाने वाली घटना जिसने हिला कर रख दिया। निर्भया केस की तरह एक और भयानक कांड। एक बेटी के साथ हुए गुनाह की इंतहां जिससे पानी-पानी है हुसैन सागर का पानी। चार दरिंदो की हैवानियत और उनके भीतर की राक्षसी आग ने एक काबिल बेटी को राख में तब्दील कर दिया। मार डाला उस लड़की को जो पिता का गुरूर थी। उसने वो विज्ञान पढ़ा था जो समझ सके कि पशुओं की भाषा क्या होती है। उनके दर्द को महसूस करके उनका ईलाज करती थी। उसे कहां मालूम था कि इंसानी जानवर किसी भी जानवर से ज्यादा भयानक होते हैं। उन्हीं जानवरों ने पहले बिटिया का जिस्म उधेड़ा फिर किरोसिन डालकर उसे जिंदा डला दिया। हत्या की वो कलंक कथा है जिसे सुनने के लिए पत्थर का कलेजा चाहिए।

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हैदराबाद की दरिंदगी के बाद महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कड़े कानून का प्रावधान किया गया है। आंध्र प्रदेश में ऐतिहासिक महिला सुरक्षा बिल पास हो गया है। आंध्र प्रदेश की जगन मोहन सरकार ने विधानसभा में आंध्र प्रदेश दिशा बिल, 2019 को पास कर दिया है। विधेयक में दिशा नाम हैदराबाद रेप की पीड़िता को दिए काल्पनिक नाम की वजह से जोड़ा गया है। इस बिल के कानूनी प्रावधानों के बारे में आपको विस्तार से बताएंगे पहले चार लाइन में बिल के पहलुओं को समझा देते हैं।

 

- रेप के मामलों में पुख्ता सबूत होने पर अदालतें 21 दिन में दोषी को मौत की सज़ा सुना सकती हैं।

- पुलिस को सात दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी।

- स्पेशल कोर्ट को 14 दिनों के भीतर ट्रायल पूरा करना होगा।

- सारी प्रक्रियाओं को 21 दिन में पूरा करना होगा।

 

इस विधेयक ने फैसला सुनाने की समयसीमा को मौजूदा चार महीने से घटाकर 21 दिन कर दिया है। इस कानून में भारतीय दंड संहिता की धारा 354(ई) और 354 (एफ) को भी रखा गया है। 354 (एफ) धारा में बाल यौन शोषण के दोषियों के लिए दस से 14 साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर मामला बेहद गंभीर और अमानवीय है तो उम्र कैद की सजा भी दी जा सकती है। सोशल या डिजिटल मीडिया के जरिए होने वाले शोषण के मामले में आरोपी को पहली बार दो साल और दूसरी बार चार साल की सजा दी जा सकती है।


कैसे करेगा काम

दिशा विधेयक में राज्य सरकार एक रजिस्टर बनाएगी जो इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म होगा और इसे वूमेन एंड चिल्ड्रन ऑफेंडर्स रजिस्ट्री नाम दिया गया है। यह रजिस्ट्री सार्वजनिक होगी और कानूनी एजेंसियां इसे देख सकेंगी। इस विधेयक के तहत दुष्कर्म के मामलों में जहां पर्याप्त और निर्णायक सबूत होंगे उनमें अपराधी को मौत की सजा दी जाएगी। यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 में संशोधन करके दिया गया है।

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निर्भया अधिनियम, 2013 और आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसार फैसला सुनाने की समयसीमा चार महीने है। जिसमें दो महीने में जांच और दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। वहीं दिशा विधेयक के अनुसार दुष्कर्म के मामलों में जिनमें निर्णायक सबूत हों, उनमें अपराध की तारीख से 21 दिनों के कार्यदिवसों में फैसला सुनाया जाएगा।

देर से न्याय मिलना न्याय न मिलने के बराबर है। भारत की अदालतें समय पर न्याय देने में कितनी खरी उतरी हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में ही 50,000 से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं। हाई कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या 50 लाख को छूने वाली है। सारी अदालतों को मिला लें तो पेंडिंग मुकदमों की संख्या 3 करोड़ से ज्यादा है। कई बार मुकदमा करने वाले मर जाते हैं और मुकदमों का फैसला नहीं आता। कई बार ऐसा भी होता है कि फैसला आने से पहले ही लोग बरसों जेल में बिता चुके होते हैं और बाद में पता चलता है कि वे निर्दोष थे।

 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट कहती है कि 2017 में 46,984 पंजीकृत बलात्कार के मामलों में से 5,855 मामलों में अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया था। इसका मतलब है कि 86.6% बलात्कार के मामले में आरोप-पत्र साबित नहीं हो सके। NCRB के अनुसार, 2017 के अंत तक सजा की दर 32.2% ही थी, तब देश में बलात्कार के 14,406 मामले लंबित थे। अपर्याप्त सबूतों के कारण 1,012 दावों को खारिज कर दिया गया था। 30 मामलों को जांच के दौरान समाप्त कर दिया गया। भारत में सजा की दर सामान्य लगभग 45% है। चीन में 99.9 प्रतिशत, जापान और कनाडा में 97%, जबकि अमेरिका में लगभग 93% है। एक बात और गौर करने योग्य है कि बच्चों को यौन उत्पीड़न के 1,66,882 मामलों में से 96 प्रतिशत पोक्सो एक्ट अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।

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टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 36 हजार 8 मामले रेप और पाक्सो के तहत रजिस्टर्ड हैं। जिलके निपटारे के लिए 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट प्रस्तावित है। वहीं महाराष्ट्र में 22 हजार 775 मामलों के लिए 138 फास्ट ट्रैक कोर्ट, पश्चिम बंगाल के 20 हजार 221 रेप और पाक्सो के मामलों के लिए 123 फास्ट ट्रैक कोर्ट और मध्य प्रदेश के 11 हजार 51 मामलों के लिए 67 फास्ट ट्रैक कोर्ट। केरल के 9 हजार 370 रेप और पाक्सो के लंबित मामलों के लिए 56 फास्ट ट्रैक कोर्ट, बिहार के 8 हजार 878 लंबित मामलों के लिए 54, राजस्थान के 7 हजार 431 मामलों के लिए 45 फास्ट ट्रैक कोर्ट, ओडिशा के 7 हजार 292 लंबित रेप और पाक्सो के रजिस्टर्ड केस के लिए 45 फास्ट ट्रैक कोर्ट, गुजरात के 5 हजार 677 मामलों के लिए 35, तेलांगना के 5 हजार 598 लंबित मामलों के लिए 36 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे। 

 

दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) प्रमुख स्वाति मालीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पूरे देश में ‘दिशा विधेयक’ तत्काल लागू करने की मांग की है। रेप जैसे गंभीर मामलों के लिए कड़े कानून बनें और कानून के रास्ते जल्द से जल्द पीड़ितों को न्याय मिले यहीं आम जनमानस की भी इच्छी है।

 

- अभिनय आकाश

 

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