By अभिनय आकाश | May 04, 2023
3 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी तीन जनसभाओं को संबोधित करते हुए 'जय बजरंग बली' का नारा लगाया। पीएम नरेंद्र मोदी ने जब जय बजरंग बली के नारे लगवाए तो जनता गदगद हो उठी। लोगों ने मोबाइल की लाइट जलाकर समर्थन किया। पीएम मोदी के हनुमान भक्ति को कांग्रेस द्वारा हाल ही में जारी अपने मेनिफेस्टो में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में क्या कहा है
कांग्रेस ने कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में कहा है कि वो जाति और धर्म के आधार पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ कड़ी और निर्णायक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। कांग्रेस ने घोषणापत्र में कहा है कि हमारा मानना है कि कानून और संविधान पवित्र है। कोई व्यक्ति या बजरंग दल, पीएफआई और नफरत एवं शत्रुता फैलाने वाले दूसरे संगठन बहुसंख्यकों के बीच के हों या अल्पसंख्यकों के बीच के वे कानून और संविधान का उल्लंघन नहीं कर सकते। हम ऐसे संगठनों पर कानून के तहत बैन लगाने समने निर्णायक कार्रवाई करेंगे। जिसके जवाब में विजयनगर जिले के होस्पेट में पीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध करने का मुद्दा उठाया और इसे भगवान हनुमान की पूजा करने वालों को ताले में बंद करने की कोशिश करने का कांग्रेस का प्रयास करार दिया।
क्या है बजरंग दल का इतिहास
बजरंग दल आमतौर पर विरोध प्रदर्शनों को लेकर सुर्खियों में रहता है। अपने अस्तित्व के लगभग 40 वर्षों में इस पर अवैध धर्मांतरण और लव जिहाद के मुद्दों पर ईसाइयों और मुसलमानों को टारगेट करने का कई बार आरोप लगाया गया है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि हमेशा प्रधानमंत्री इसके बचाव में उतरते हैं और अतीत में यहां तक कि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भी संघ परिवार से इसे रोकने के लिए आग्रह किया था। संगठन का एक संक्षिप्त इतिहास है और इसका आदर्श वाक्य सेवा, सुरक्षा और संस्कार है। बजरंग दल को लेकर लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ लोग इसे हिंदुत्ववादी संगठन को भारतीय संस्कृति के झंडाबदारों में से एक मानते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे एक आतंकी संगठन की संज्ञा देते हैं। ऐसे में आज का एमआरआई हमने प्रभुराम के अन्यन्य भक्त पवनपुत्र केसरीनंदन हनुमान के नाम पर बने संगठन बजरंग दल के ऊपर किया है। क्या है इसका इतिहास, कब और कैसे हुआ इस संगठन का गठन, क्यों ये लगातार सुर्खियों में रहा है और विरोधियों के निशाने पर भी।
बजरंग दल का गठन कब हुआ था?
बजरंग दल दक्षिणपंथी संगठन विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की युवा शाखा है। इसका गठन 1984 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन में युवा रक्त और बाहुबल को भरने के लिए किया गया था। संगठन की वेबसाइट के अनुसार बजरंग दल का जन्म 8 अक्टूबर, 1984 को हुआ था। जब कुछ हिंदू संत अयोध्या से राम-जानकी रथ यात्रा पर निकले थे। वेबसाइट का दावा है कि जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने जुलूस को सुरक्षा मुहैया कराने से इनकार कर दिया तो विहिप ने कुछ युवाओं से इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए कहा। सैकड़ों युवा अयोध्या में एकत्रित हुए। उन्होंने अपना कर्तव्य बहुत अच्छे से निभाया। इस प्रकार बजरंग दल का गठन यूपी के युवाओं को जगाने और राम जन्म भूमि आंदोलन में उनकी भागीदारी के एक अस्थायी और स्थानीय उद्देश्य के साथ किया गया था।
राम काज कीने बिना, मोहे कहां विश्राम
उसी महीने लखनऊ में आयोजित एक बैठक में वाराणसी महानगर प्रचारक रह चुके विनय कटियार ने विहिप प्रमुख अशोक सिंघल को सुझाव दिया कि विहिप का अपना युवा संगठन होना चाहिए। इस प्रकार औपचारिक रूप से बजरंग दल का निर्माण हुआ। इसका नाम राम मंदिर आंदोलन (बजरंगबली भगवान हनुमान के नामों में से एक है) के साथ इसके जुड़ाव को उजागर करने के लिए चुना गया था। इसका नारा "राम काज कीने बिना, मोहे कहां विश्राम'' है। बजरंग दल का राष्ट्रीय संयोजक विनय कटियार को बनाया गया। दिसंबर 1992 तक, बजरंग दल ने राम मंदिर के लिए समर्थन जुटाने और अंततः बाबरी मस्जिद के विध्वंस में प्रमुख भूमिका निभाई। हालाँकि, इसके तुरंत बाद के वर्षों में, जैसे ही अयोध्या का मामला अदालत में गया और भाजपा ने अपने राजनीतिक पदचिह्न का विस्तार करना शुरू किया। विहिप और बजरंग दल जैसे संगठन सुर्खियों से बाहर हो गए।
क्या बजरंग दल पर कभी प्रतिबंध लगा है?
हाँ, बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद नरसिम्हा राव सरकार द्वारा। हालांकि, एक साल बाद प्रतिबंध हटा लिया गया था। किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट, लंदन में भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र के प्रोफेसर और कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में अनिवासी विद्वान क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट की माने तो अपनी स्थापना के बाद से बजरंग दल में "अनुशासनात्मक व्यवस्था का अभाव था। 1993 तक बजरंग दल के पास वर्दी तक नहीं थी। बजरंग दल के लोग एक दूसरे को केवल एक चिन्ह से पहचानते थे। केसरिया रंग का मस्तक पट्टा जिस पर "राम" लिखा हुआ होता था।
1993 में संगठन को मिली वर्दी
इसलिए, 1993 में इस पर से प्रतिबंध हटाए जाने के बाद संघ परिवार ने निर्णय लिया कि बजरंग दल को और अधिक संरचना और नियंत्रण की आवश्यकता है। जैफ्रेलॉट ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख में बताया है कि 11 जुलाई, 1993 को बजरंग दल को एक वर्दी (नीली शॉर्ट्स, सफेद शर्ट और केसरिया दुपट्टा) प्रदान की गई थी और मुख्य रूप से प्रशिक्षण के प्रभारी लोगों के लिए एक पुस्तिका प्रदान की गई थी। इस पुस्तिका ने अनुशासन के महत्व पर जोर दिया। चाहे वह एक व्यक्ति हो या एक राष्ट्र, पूरा समाज या एक संगठन, अनुशासन जानने वाला ही सफलता, जागरूकता और उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है। बिना अनुशासन के सफलता नहीं मिल सकती है।
क्यों उठते रहे हैं सवाल?
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में बजरंग दल के लिए अनुशासन एक विशेषता नहीं रहा है, जिसकी वजह से वो लगातार खबरों में भी रहा है और मीडिया के एक वर्ग के निशाने पर भी। वेलेंटाइन डे पर प्रेमी जोड़ों को परेशान करने के लिए सुर्खियां बटोरना, पबों पर धावा बोलना, कलाकारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना तो आम है। वे मानते हैं कि वे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। दल को केवल एक बार प्रतिबंधित किया गया है, 2013 में बसपा नेता मायावती और 2008 में लोक जनशक्ति पार्टी के दिवंगत नेता रामविलास पासवान द्वारा पहले भी इसे प्रतिबंधित करने की मांग उठाई गई थी। 2008 में कांग्रेस ने भी बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। 2002 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बजरंग दल को शांत करने का आग्रह किया था, जिसे 2008 में लालकृष्ण आडवाणी ने दोहराया था। तटीय कर्नाटक क्षेत्र में अक्तूबर 2008 में चर्चों में हुए हमलों में संगठन का नाम आया था। इसके बाद, बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने हमलों की जांच के लिए न्यायमूर्ति बीके सोमशेखर की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था। सितंबर 2009 में तत्कालीन येदियुरप्पा सरकार के समक्ष रखी गई एक अंतरिम रिपोर्ट में आयोग ने बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी गुटों को शामिल होने के बात कही थी।
बजरंग दल का अपने फक्शन पर क्या है कहना?
वेबसाइट पर दिए गए विवरणों के अनुसार बजरंग दल का कहना है कि इसके कार्यों में रचनात्मक गतिविधियाँ शामिल हैं जैसे कि पूजा स्थलों का प्रबंधन और विकास, गौशालाओं के लिए घास इकट्ठा करना, धार्मिक सभाओं में व्यवस्था बनाए रखना, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तत्काल राहत गतिविधियाँ, आदि। वेबसाइट के अनुसार केंद्र द्वारा तय किए गए आंदोलन के अलावा, इस श्रेणी में निम्नलिखित में से किसी भी मुद्दे/मामलों (जो केवल विचारोत्तेजक हैं) पर आंदोलन का संचालन शामिल है। इन आंदोलनों के अलावा कुछ अतिरिक्त मुद्दे जैसे धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार, गाय-संरक्षण, सामाजिक कुरीतियाँ जैसे दहेज-अस्पृश्यता आदि और हिन्दू मान-बिन्दुओं, हिन्दू परम्पराओं, हिन्दू सम्मेलनों और विश्वासों आदि पर किये गये अपमान का विरोध, टेलीविजन विज्ञापनों और सौंदर्य प्रतियोगिताओं के माध्यम से प्रदर्शित अश्लीलता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, अवैध घुसपैठ का विरोध शामिल हैं।