बैड बैंक क्या है? सबसे पहले कब और किस देश में इसकी शुरुआत हुई?

By कमलेश पांडेय | Sep 18, 2021

क्या आपको पता है कि देश-दुनिया में एक ऐसा बैंक भी काम कर रहा है, जिसमें आपका ना तो खाता खुलेगा और ना ही आप इसमें अपना पैसा जमा कर सकेंगे? तो फिर यह सवाल उठना लाजिमी है कि तो फिर किस काम का है यह बैंक। जी हां, यही बैड बैंक है, जिसकी शुरुआत 1980 के दशक में अमेरिका में हुई थी, लेकिन यह 2020 के दशक में भारत में भी दबे पांव दाखिल हो चुका है। इसलिए सबके मन में यह सवाल उठ रहा है कि बैड बैंक क्या है? इससे किसको, क्या और कितना फायदा होगा?


बता दें कि बैड बैंक, एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नये बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। जब किसी बैंक की गैर निष्पादित संपत्ति सीमा से अधिक हो जाती है तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिए धारण कर लेता है। 1991-92  के दौरान स्वीडन में इस तरह की प्रक्रिया द्वारा आर्थिक चुनौतियों का सामना किया गया था। वहीं, 2012 में स्पेन ने भी आर्थिक संकट के दौरान ऐसे ही बैंकों का सहारा लिया है। इन बैड बैंकों को 10 से 15 वर्ष की समय सीमा दी गयी है। क्योंकि स्थानीय सरकार द्वारा इन बैंकों को निर्धारित अवधि में लाभ में लेकर आना होगा, अन्यथा राज्य का बड़ा नुकसान हो सकता है।

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भारत में आम बजट 2021-22 के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैड बैंक के गठन की घोषणा की है, जो लगातार खराब कर्ज को लेकर परेशान बैंकों के लिए किसी बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है। वित्त मंत्री ने द्वितीय तिमाही बीतते बीतते बैड बैंक को भौतिक स्वरूप भी दे दिया और इसके वास्ते एक भारी भरकम रकम दिए जाने की भी घोषणा कर दी हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कैसा बैंक हैं? बैड बैंक की शुरुआत सर्वप्रथम किस देश में और कैसे हुई। फिर, कहां कहां इसका विस्तार हुआ। आखिर इससे क्या होगा फायदा...यह जानना सबके लिए जरूरी है।


# बैड बैंक क्या है?


बैंड बैक एक किस्म की एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एसीआर) है। जिसका काम है बैंक से उनके बुरे कर्ज यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) को लेना। साफ शब्दों में कहें तो किसी भी बैंक के बैड एसेट को गुड एसेट में बदलना। दरअसल, बैंक किसी आदमी या संस्था को लोन देती है, लेकिन जब आदमी या संस्था इस लोन को चुकाने में असमर्थ हो जाती है या फिर वह लंबे समय से किस्त देने बंद कर देता है, तो बैंक द्वारा उसे बुरा कर्ज या एनपीए मान लिया जाता है। 


वास्तव में, कोई भी बैंक अपने पास ऐसा बुरा कर्ज रखना नहीं चाहती हैं, क्योंकि इससे उनकी बैलेंस शीट खराब होती है। ऐसे में बैंक नए कर्ज देने में भी सक्षम नहीं रह पाता है। लिहाजा, बैड बैंक इसी बुरे कर्ज को बैंकों से ले लेगा, जिसके बाद वह इनको वसूलने की कोशिश करेगा। हालांकि, सरकार ने बजट में बैड बैंक के फंक्शन को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहा है।

 

# क्या है बैंकों का एनपीए?


भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नियमों के मुताबिक, वह सम्पत्ति, जिससे बैंक की कोई आय नहीं होती है, उसे एनपीए कहा जाता है। इसके लिए 180 दिन की सीमा तय होती है। कहने का तातपर्य यह कि यदि कोई लोन 180 दिनों से अधिक बकाया (ओवरड्यू) है, तो वह एनपीए कहा जाता है। फिलवक्त, भारतीय बैंकिंग सिस्टम में कुल एनपीए करीब 12.5 फीसदी है।


# अमेरिका से आया है बैड बैंक का कॉन्सेप्ट?


गत दो दशकों से भारत-अमेरिका की दोस्ती की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। इसलिए वहां की कई मौलिक आर्थिक नीतियों को भारत भी अपना रहा है। बैड बैंक भी उन्हीं में से एक है, जिसकी शुरुआत अमेरिका में हुई थी। बताया जाता है कि 1980 के दशक में अमेरिकी बैंक खराब कर्ज की वजह से डूबने के कगार पर थे। ऐसे में पहली बार बैड बैंक के कॉन्सेप्ट को जमीन पर उतारा गया। उसके बाद तो  फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल में भी सालों से बैड काम कर रहे हैं। ऐसे में भला भारत पीछे कबतक रहता। उसने भी वर्ष 2021 में इसे अपना लिया।


# बैड बैंक से क्या होंगे फायदे?


अनुमान लगाया जा रहा है कि बैड बैंक आने के बाद बड़े पैमाने पर बैंक एनपीए से मुक्त हो जाएंगे। इससे उनकी कार्यप्रणाली में गति आएगी। इसके सीधे तौर पर दो फायदे हो सकते हैं। पहला यह कि इससे बैंक को नए लोन देने में आसानी होगी और नए निवेश को मौका मिलेगा। दूसरा यह कि बैंकों की बैलेंस शीट क्लियर हो जाएगी। ऐसे में अगर आगे सरकार को बैंकों का निजीकरण (प्राइवेटाइजेशन) करना होगा, तो आसानी रहेगी।

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# भारतीय बैड बैंक की सफलता-विफलता को रेखांकित करेंगे ये नौ प्रमुख सवाल


पहला सवाल है कि बैड बैंक को सरकारी गारंटी देने से क्या सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा? तो जवाब होगा कि नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एनएआरसीएल) बैंकों से मिलने वाले बैड लोन के लिए जो सिक्योरिटी रिसीट जारी करेगी, उसके लिए सरकार 30,600 करोड़ रुपए की सॉवरेन गारंटी देगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा है कि पिछले छह वित्त वर्षों में 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के बैड लोन की रिकवरी हुई है। बैंकों ने मार्च 2018 से अब तक 3 लाख करोड़ से ज्यादा रिकवरी की है। इसमें से 1 लाख करोड़ राइट-ऑफ किए गए लोन से आए हैं। उन्होंने बताया कि 2015 में बैंकों के लोन का रिव्यू किया गया था, जिसमें बहुत ज्यादा बैड लोन होने की बात का पता चला था। वहीं, 2018 में 21 पब्लिक सेक्टर बैंकों में सिर्फ दो प्रॉफिट में थे, लेकिन 2021 में सिर्फ दो बैंक लॉस में थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि इन सबके बीच बैड बैंक शुरू किया जाना बैंकिंग सिस्टम को भरोसा देने और सपोर्ट देने वाला एक बड़ा कदम है। बड़ी बात यह है कि गारंटी के लिए शॉर्ट टर्म में सरकार को अपने खजाने से एक भी पैसा नहीं निकालना पड़ेगा। 


दूसरा सवाल है कि सरकार बैड बैंक से कितने करोड़ के बैड लोन की 'सफाई' करेगी? जवाब होगा कि एनएआरसीएल कई फेज में लगभग दो लाख करोड़ रुपए के बैड लोन लेगी। उसे पहले चरण में 500 करोड़ रुपए से ज्यादा के कुल 90,000 करोड़ रुपए के बैड लोन दिए जाएंगे।एनएआरसीएल बैड लोन की कीमत 15 प्रतिशत नकदी और बाकी 85 प्रतिशत रिसीट के तौर पर चुकाएगी। सिक्योरिटी रिसीट की ट्रेडिंग भी हो सकेगी।


तीसरा सवाल है कि एनएआरसीएल क्या है? जवाब होगा कि बैंकों ने अपने सभी बैड लोन को इकट्ठा करके उसमें फंसी रकम निकालने के लिए एनएआरसीएल का गठन किया है। बैड बैंक यानी एनएआरसीएल ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) के लाइसेंस के लिए रिजर्व बैंक के पास एप्लिकेशन दी है, जिसमें पब्लिक सेक्टर बैंकों की मेजोरिटी यानी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी।


चौथा सवाल है कि इंडिया डेट रिजॉल्यूशन कंपनी (आईडीआरसीएल) क्या है? जवाब होगा कि सरकार ने आईडीआरसीएल नाम से एसेट मैनेजमेंट कंपनी बनाई है, जो डूबने के कगार पर पहुंची कंपनियों को मैनेज करेगी और उसके लिए मार्केट प्रोफेशनल और टर्नअराउंड एक्सपर्ट ढूंढेगी। इसमें पब्लिक सेक्टर बैंकों और वित्तीय संस्थानों की अधिकतम 49 प्रतिशत और बाकी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी प्राइवेट सेक्टर के लेंडर्स की होगी।


पांचवां सवाल है कि जब देश में 26 एआरसी हैं तो फिर एनएआरसीएल-आईडीआरसीएल की जरूरत क्यों महसूस हुई? जवाब होगा कि फिलहाल देश में 26 एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां हैं, जो खासतौर पर छोटे लोन हैंडल करती रही हैं। लेकिन जब बड़े और पुराने बैड लोन को मैनेज करने के लिए अतिरिक्त विकल्प की जरूरत थी तो एनएआरसीएल-आईडीआरसीएल के गठन के अलावा कोई दूसरा चारा ही नहीं बचा था। यही वजह है कि इस साल के बजट में सरकार ने इस सम्बन्ध में बैड बैंक बनाने का ऐलान किया था।


छठा सवाल है कि सरकारी गारंटी की जरूरी क्यों है और यह कितने साल की होगी? जवाब होगा कि बड़े पैमाने पर बैड लोन को क्लीयर करने के लिए सरकार का भरोसा मिलना जरूरी था। इस बात में कोई दो राय नहीं कि बैड लोन के निपटारे का काम समयबद्ध तरीके से हो सकेगा। इसके लिए सरकार ने सिक्योरिटी रिसीट पर गारंटी पांच साल के लिए दी है। यह गारंटी बैड लोन के रिजॉल्यूशन या लिक्विडेशन पर ही भुनाई जा सकेगी। वसूली फेस वैल्यू से जितनी कम होगी, एनएआरसीएल को गारंटी में उतने रुपए मिलेंगे।

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सातवां सवाल है कि एनएआरसीएल और आईडीआरसीएल किस तरह काम करेंगे? जवाब होगा कि बैड लोन के लिए एनएआरसीएल, लीड बैंक को ऑफर करेगा। ततपश्चात ऑफर मंजूर होने के बाद आईडीआरसीएल वैल्यू एडिशन और मैनेजमेंट संभालेगी। इससे बैड लोन का रिजॉल्यूशन जल्द हो सकेगा, जिससे उन्हें ज्यादा वैल्यू मिल सकेगी। वहीं, बैंक के ह्यूमन एसेट यानी वर्कफोर्स दूसरे प्रॉडक्टिव काम कर सकेंगे। लिहाजा, बैड लोन से उनकी कमाई बढ़ेगी और वैल्यूएशन में इजाफा होगा।


आठवां सवाल है कि गारंटी भुनाए जाने के आसार कितने ज्यादा हैं? जवाब होगा कि एआरसी को कई तरह के बैड लोन मिलेंगे। ऐसे में कई बैड लोन पर वैल्यूएशन से ज्यादा वसूली होने की भी संभावना होगी। संभव है कि बैड बैंक रिजॉल्यूशन में तेजी दिखाएं, जिसके लिए बैड लोन की वसूली को लेकर एआरसी को गारंटी फीस देनी होगी जो साल दर साल बढ़ेगी।


अंतिम सवाल है कि एनएआरसीएल पूंजी कैसे जुटाएगी और सरकार कितना देगी? जवाब होगा कि कंपनी में बैंकों और नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों का इक्विटी शेयर होगा और जरूरत पड़ने पर यह बाजार से कर्ज भी ले सकेगी। समझा जाता है कि सिक्योरिटी रिसीट को सरकारी गारंटी मिलने से कंपनी को शुरुआत में पूंजी की जरूरत कम होगी।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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