सम्मान के सामने पदक क्या है (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Aug 26, 2021

पिछले दिनों ओलम्पिक में हारी टीम के सदस्यों ने मंत्रीजी से मुलाक़ात के दौरान कहा कि उन्हें दी जाने वाली सम्मान राशी बढाकर जीते हुए खिलाड़ियों के बराबर दी जाए। उन्हें प्लाट दिया जाए ताकि मकान का जुगाड़ हो। पदक तो नहीं ला सके लेकिन हार या जीत ज़्यादा मायने नहीं रखती। पदक मिले या नहीं अच्छा खेलना ज़रूरी होता है। अच्छा खेलकर सम्मान तो बरकरार रखा ही है। मंत्रीजी को न सही उनके दिमाग को लग रहा होगा कि उन्होंने सम्मान राशि देने की घोषणा क्यूं की। वैसे सम्मान के सामने पदक की क्या बिसात है।

इसे भी पढ़ें: जब ज़िंदगी में एटीएम आयो (व्यंग्य)

सम्मान की बात यह रही कि विश्वगुरुओं की धरती से पहली बार सबसे बड़ा एथलीट ग्रुप गया। यह ऐतिहासिक घटना याद रहेगी कि कोरोना युग में जब जापान जैसे कर्मठ काम करू देश ने ओलंपिक्स करवा ही डाले थे तो हमारा समूह शानदार था। ऐसा करने के मामले में हमसे बढ़कर दुनिया में कोई नहीं हैं लेकिन खराब वक़्त के कारण दुनिया में कुछ और गुरु  भी निकल आते हैं और हमारे लिए बने मैडल जीत ले जाते हैं । यह ठीक है कि हमारे सपने टूट जाते हैं लेकिन हम फिर से ख़्वाब देखना शरू कर देते हैं। सम्मान तो महसूस करने की चीज़ होती है। सम्मान का मूल्य स्वर्ण या किसी भी धातु के मैडल तो क्या हीरे जवाहरात से भी ज़्यादा होता है। प्रतिभा की भरमार है इसलिए प्रतिभा का सम्मान ज़रूरी है। प्रतिभा सम्मान के साथ जात पात को भी कितना सम्मान दिया जा रहा है। हम सब सम्मान के आसमान में हैं।


यह भी सम्मान है कि सरकार करोड़ों का ऑफर देती है। उसे लगता है इतने पैसे का ईनाम सुनकर खिलाड़ी का दिमाग, शरीर और भावना उसकी परफॉरमेंस में चमत्कार भर देंगी और पदक हाथ में होगा। इस बार अखिलाड़ियों के लिए नया सम्मान भी रखा गया, जो एथलीट अच्छा प्रदर्शन नहीं करेंगे उन पर कारवाई की जाएगी। संभवत यह चेतावनी ली नहीं गई। यहां तो ट्रायल भी फिटनेस के लिए रखे गए। क्या यह वैसा ही नहीं रहा जैसे चुनाव राजनेताओं की बुद्धि के राजनीतिक ट्रायल होते हैं। जिनका जातीय, आर्थिक, साम्प्रदायिक और धार्मिक प्रशिक्षण और अभ्यास बेहतर होता है वह जीत जाते हैं। खिलाड़ी कहते हैं कि उनका खान पान और अभ्यास बेहतरीन हुआ है लेकिन वोटर खा पीकर भी हरा देता है।

इसे भी पढ़ें: संकल्प एक योजना है (व्यंग्य)

राजनीति में भी तो हारे हुए खिलाड़ियों को किसी न किसी रंग व आकार की कुर्सी दी जाती है ताकि वे हारने की थकान उतार सकें। कुर्सी से चिपके रहने का मेहनताना भी मिलता है। जीत जाएं तो खुद को ओलंपियन से बेहतर खिलाड़ी समझने लगते हैं। हारे हुए राजनेता भी सम्मान को सामान समझकर पूरा हथिया लेते हैं। जनता ख़्वाब देखती रहती है कि इन्हें वापिस बुलाकर वापिसी सम्मान देने की रीत शुरू की जाए ताकि उन्हें समझ आए कि वे ठीक से खेल नहीं पाए। यह सम्मान शुरू हो जाए तो...


कहते रहो, लिखते रहो कि छोटे छोटे देश हमारे से कहीं ज़्यादा पदक ले गए हैं तो उचित जवाब यही रहेगा सम्मान के सामने पदक कुछ नहीं होता।


- संतोष उत्सुक

प्रमुख खबरें

PM Narendra Modi कुवैती नेतृत्व के साथ वार्ता की, कई क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत