उत्तराखण्ड का खूबसूरत शहर पिथौरागढ़ हर वर्ष बड़ संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। पिथौरागढ़ के बारे में कहा जाता है कि पहले इसका नाम सोरघाटी था। इस शहर के बारे में यह मान्यता है कि यहां सात सरोवर थे लेकिन समय के साथ-साथ वह सूख गये और यहां पर पठारी भूमि हो गयी। इसी पठारी भूमि के चलते बाद में इस शहर का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। इस शहर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह कभी राय पिथौरा (पृथ्वीराज चौहान) की राजधानी हुआ करता था इसीलिए इस शहर का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। हाल-फिलहाल तक पिथौरागढ़ में खस वंश का शासन रहा है, जिन्हें यहाँ के किले या कोटों के निर्माण का श्रेय जाता है। पिथौरागढ़ के इर्द-गिर्द चार किले हैं जिनका नाम भाटकोट, डूंगरकोट, उदयकोट तथा ऊँचाकोट है। खस वंश के बाद यहाँ कचूडी वंश (पाल-मल्लासारी वंश) का शासन हुआ तथा इस वंश का राजा अशोक मल्ला, बलबन का समकालीन था। इसी अवधि में राजा पिथौरा द्वारा पिथौरागढ़ स्थापित किया गया तथा इसी के नाम पर पिथौरागढ़ नाम भी पड़ा। इस वंश के तीन राजाओं ने पिथौरागढ़ से ही शासन किया तथा निकट के गाँव खङकोट में उनके द्वारा निर्मित ईंटों के किले को साल 1960 में पिथौरागढ़ के तत्कालीन जिलाधीश ने ध्वस्त कर दिया।
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सुंदर घाटी के बीच बसे पिथौरागढ़ का मौसम वैसे तो सदैव सुहावना रहता है लेकिन बरसात के दिनों में यहाँ आने से बचना चाहिए। पिथौरागढ़ में पर्यटकों के रहने-खाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। यहाँ कुमाऊं मंडल विकास निगम का 44 बेड वाला एक पर्यटक आवासगृह तो है ही साथ ही वन विभाग और जिला परिषद का विश्रामगृह भी है। इसके अलावा यहाँ आनन्द होटल, धामी होटल, सम्राट होटल, होटल ज्योति, ज्येतिर्मयी होटल, लक्ष्मी होटल, जीत होटल, कार्की होटल, अलंकार होटल, राजा होटल, त्रिशुल होटल ,डसीला होटल आदि कुछ ऐसे होटल हैं जहाँ सैलानियों के लिए हर प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
पिथौरागढ़ में शरद् काल में 'शरद कालीन उत्सव' मनाया जाता है। इस उत्सव मेले में पिथौरागढ़ की सांस्कृतिक झाँकी दिखाई जाती है और सुन्दर-सुन्दर नृत्यों का आयोजन किया जाता है। पिथौरागढ़ में स्थानीय उद्योग की वस्तुओं का विक्रय भी होता है। राजकीय सीमान्त उद्योग के द्वारा कई वस्तुओं का निर्माण होता है। यहाँ के जूते, ऊन के वस्त्र और किंरगाल से बनी हुई वस्तुओं की अच्छी मांग है। सैलानी यहाँ से इन वस्तुओं को खरीद कर ले जाते हैं। पिथौरागढ़ में सिनेमा हॉल के अलावा स्टेडियम और नेहरु युवा केन्द्र तो है ही साथ ही मनोरंजन के कई अन्य साधन भी हैं। यहाँ कई पिकनिक स्थल हैं यहाँ पर्यटक जाकर प्रकृति का आनन्द लेते हैं।
पिथौरागढ़ में हनुमानगढ़ी का विशेष महत्व है। यह नगर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहाँ से एक किलोमीटर की दूरी पर उल्का देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। लगभग एक किलोमीटर पर राधा-कृष्ण मन्दिर भी दर्शनार्थियों का मुख्य आकर्षण है। इसी तरह एक किलो मीटर पर रई गुफा और एक ही किलोमीटर की दूरी पर भाटकोट का महत्वपूर्ण स्थान है।
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पिथौरागढ़ सीमान्त जनपद है इसलिए यहाँ के कुछ क्षेत्रों में जाने के लिए परमिट की आवश्यकता होती है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी से परमिट प्राप्त कर लेने के बाद ही सीमान्त क्षेत्रों में प्रवेश किया जा सकता है। पर्यटक परमिट प्राप्त कर ही निषेध क्षेत्रों में प्रवेश कर सकते हैं। चम्पावत तहसील के सभी क्षेत्रों में और पिथौरागढ़ के समीप वाले महत्वपूर्ण स्थलों में परमिट की आवश्यकता नहीं होती।
कुमाऊँ, पिथौरागढ़ जनपद में कुछ उत्सव समारोह पूर्वक मनाये जाते हैं, हिलजात्रा उनमें से एक है। जनपद पिथौरागढ़ में गौरा-महेश्वर पर्व के आठ दिन बाद प्रतिवर्ष हिलजात्रा का आयोजन होता है। यह उत्सव भादो (भाद्रपद) माह में मनाया जाता है। मुखौटा नृत्य-नाटिका के रूप में मनाये जाने वाले इस महोत्सव का कुख्य पात्र लखिया भूत, महादेव शिव का सबसे प्रिय गण, वीरभद्र माना जाता है। लखिया भूत के आशीर्वाद को मंगल और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
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पिथौरागढ़ पहुँचने के लिए दो मार्ग मुख्य हैं। एक मार्ग टनकपुर से और दूसरा काठगोदाम-हल्द्वानी से है। पिथौरागढ़ का हवाई अड्डा पन्तनगर अल्मोड़ा के मार्ग से 249 किलोमीटर की दूरी पर है। अब पिथौरागढ़ को अपना हवाई अड्डा भी मिल गया है जिसका नाम नैनी सैनी हवाई अड्डा है, यहाँ से हिंडन हवाई अड्डे के लिए हवाई सेवा उपलब्ध है, भविष्य में इसे देश के अन्य हवाई अड्डों से भी जोड़ने की योजना है। समीप का रेलवे स्टेशन टनकपुर 151 किलोमीटर की दूरी पर है। काठगोदाम का रेलवे स्टेशन पिथौरागढ़ से 212 किलोमीटर का दूरी पर है।
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