सर्दी की जल्दी उतरती शाम में सैर के कुछ शौक़ीन बंदे अभी पार्क में टहल रहे थे। साथ घूम रही पत्नी ने मुझे दिखाया, दूर क्यारी में खड़ी एक गाय पौधे खा रही है। गाय के पास खड़े व्यक्ति मोबाइल से फोटो खींच रहे हैं, कुछ जाने पहचाने लगे, हमें नज़दीक आते देखकर कहने लगे, ‘हम अभी वह्ट्सैप करते हैं, यहां का चौकीदार सही तरीके से अपनी ड्यूटी नहीं कर रहा है’। सर, वह्ट्सैप पर तो लोग मज़े ही लेंगे, तब तक गाय काफी पौधे चर लेगी मैंने कहा। जवाब आया आप पहले चौकीदार को ढूंढिए फिर घूमिए। वे वह्ट्सैप ही निपटाने लगे, इस बीच मैंने गाय को क्यारी से बाहर हांक दिया और कोशिश की तो चौकीदार भी मिल गए। वे भी अपने कमरे में मोबाइल पर खेल खेल रहे थे, बंद करते करते बोले, अभी थोड़ी देर पहले पूरे बाग़ का चक्कर लगा कर आया हूं, गाय यहां नहीं थी। किसी सैर करने वाले ने गेट ज्यादा खोल दिया होगा। उन्होंने ड्यूटी करते हुए गाय को पार्क से निकाल बाहर किया।
घूमते हुए वह्ट्सैप मैन फिर मिल गए हमने कहा, सर, गाय को आप ही बाहर निकाल देते। यह शब्द मुंह से निकल तो गए मगर अगले क्षण लगा माहौल के मुताबिक गलत कह दिया हमने। उन्होंने बुरा न मानते हुए फ़रमाया, हम जैसा आदमी गाय कैसे बाहर निकाल सकता है, हम तो सिर्फ़ वह्ट्सैप कर सकते हैं वो हमने कर दिया। गाय हमें नुकसान पहुंचाती तो उसका हम कुछ नहीं कर सकते थे। फिर हमारे पास इतना महंगा फ़ोन है हम वह्ट्सैप क्यूँ न करें। जान पहचान के लोगों को बताना भी तो ज़रूरी है कि पार्क में गाय है। यहाँ जो चाहे, जहां चाहे, घुस जाता है। अब तो जानवर भी इंसानों की तरह करने लगे हैं। चलो वह्ट्सैप तो हमने कर दिया। जनाब के चेहरे की आभा बता रही थी कि अपनी पत्नी समेत पंद्रह बीस लोगों को वह्ट्सैप ज़रूर किया होगा। बोले, हम कोई छोटे मोटे आदमी नहीं हैं वो अलग बात है कि हम पी डब्ल्यू डी में काम नहीं करते। हम बड़े दफ़्तर में ऊँचे पद पर दायित्व निभा रहे हैं। हमें कोई भी सार्वजनिक कार्य करते हुए अपने सरकारी पद की गरिमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। हरे भरे पौधे खाती गाय को पार्क से निकालना हमारी गरिमा के अनुकूल नहीं था। हम बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करते।
हमने उनसे कहा, बड़े लोगों की बड़ी बातें, ज़्यादा बड़े लोगों की ज्यादा बड़ी बातें और से सबसे बड़े लोगों की केवल बातें ही बातें। हमारी बातों से वे खुश हो गए बोले, वह्ट्सैप ईष्टपूजा का नया रूप है, हम तो ब्रह्म मुहर्त में ही ‘क्या क्या’ करना शुरू कर देते हैं और रात के बारह बजे तक प्रसाद बांटते रहते हैं। एक व्यक्ति कितनी ही जगह बतिया सकता है। वह्ट्सैप ने बातचीत में जान डाल रखी है। आपने सामने बैठकर बतियाना फ़िज़ूल हो गया है। तरक्की की जय हो, वह्ट्सैप की ज्यादा जय हो।
- संतोष उत्सुक