'नेहरू' जैसा बालमन समझने वाला चाहिए दूसरा ‘चाचा’

By डॉ. रमेश ठाकुर | Nov 14, 2024

आज खास दिन ‘बाल दिवस’ और चाचा नेहरू से तो ज़माना परिचित ही है। पर, लोग ये नहीं जानते कि नेहरू जी आखिर बच्चों के 'चाचा' कैसे कहलाए? इस रहस्य से अधिकांश अनभिज्ञ है। वैसे, ‘बाल दिवस’ आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस पर मनाया जाता है। उनका जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। जबकि, ये दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा अधिकृत 20 नवंबर को पूरे विश्व भर में मनाया जाता है। लेकिन साल 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, भारतीय संसद में उनके जन्मदिन को देश में आधिकारिक तौर पर ‘बाल दिवस’ के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव एकमत से जारी किया गया। क्योंकि वह बच्चों नितंत प्रिय हुआ करते थे। उनका बच्चों के प्रति लगाव देखने लायक होता था। उन्हें 'चाचा' क्यों कहा जाने लगा, ये एक दिलचस्प वाक्या है। चलिए बताते हैं नेहरू के चाचा बनने की कहानी। पंड़ित नेहरू एक मर्तबा इलाहाबाद में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। मौसम जाडे़ का था। सभा में एक बुजुर्ग महिला भी भाषण सुनने अपने दुधमुंह बच्चे के साथ पहुंची थी। जारी भाषण में बच्चा तेजी से रोने लगा।

  

पंड़ित नेहरू की जैसे ही नजर बच्चे के रोने पर पड़ी, उन्होंने अपना भाषण रूकवा दिया और तुरंत अपने अंगरक्षक को बच्चा और उसकी मां को मंच पर लाने को कहा, मां अपने बच्चे के साथ जैसे ही मंच पर चढ़ी, नेहरू ने आगे बढ़कर स्वंय बच्चे को अपने गोद में उठा लिया। बच्चा पंड़ितजी की गोद में जाते ही चुप हो गया और उनके जेब में लगे पेन से खेलने लगा। बच्चे के प्रति नेहरू के प्यार-स्नेह को देखकर सभा में उपस्थित लोग अचंभित हो गए और उसी समय से लोगों ने उन्हें ‘चाचा’ कहना शुरू कर दिया। बच्चों के प्रति उदारता, दयालुपन, स्नेहभाव और दीवानगी की ललक हम सभी में भी जगे, उसी मकसद को आज का ये खास दिवस पूरा करता है। हालांकि बच्चे से प्यार तो हर कोई करता है। लेकिन नेहरू का प्यार बेशकीमती, अद्भुत, चमत्कारी होता था। रोते हुए बच्चे भी उनके सन्मुख जाकर एकाएक चुप हो जाते थे। बच्चों को चुप कराने की उनके पास पता नहीं कौनसी अद्भुत कला थी, जो सभी आश्चर्यचकित करती थी।

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सालाना हिंदुस्तान में 'बाल दिवस' बड़े उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। ये दिवस बच्चों को ढेर सारा स्नेह, उपहार और लाड-प्यार देने को समर्पित होता है। जवाहरलाल नेहरू शुरू से बच्चों के अधिकारों और एक शिक्षा प्रणाली के पक्षधर और समर्थक रहे थे। वह प्रत्येक बच्चे को देश का आने वाला भविष्य कहते थे, बच्चा बेशक कितना भी नटखट क्यों न हो, वह उनकी भी भरपूर सराहना करते थे। फूलपुर की चुनावी सभा में नेहरू ने अपने प्रसिद्ध भाषणों में एक बार कहा था कि बच्चे बगीचे में कलियों की तरह होते हैं और उनका सावधानीपूर्वक और प्यार से पालन-पोषण करना चाहिए, क्योंकि वे देश का भविष्य और कल के नागरिक हैं। मौजूदा वक्त में जिस बेहिसाब से समूचे देश के नौनिहालों के प्रति अत्याचार, विभिन्न किस्म की समस्याएं, और अपराध बढ़े हैं, वो अगर जिंदा होते तो बहुत दुखी होते। एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट बच्चों के गायब होने के जो आंकड़े प्रस्तुत करती है, वो निश्चित रूप से डरावने होते हैं। तमाम हुकूमती कोशिशों के बावजूद भी बाल समस्याएं रुकने का नाम नहीं लेती।

  

आज बाल दिवस के मौके पर देशभर के स्कूलों में गायन, निबंध, वाद-विवाद, खेलकूद जैसी विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी। अधिकांश जगहों पर नेहरू की जीवनी पर लेख-लेखन कम्पटीशन आयोजित होंगी। दरअसल, ‘नेशनल बाल दिवस’ पं. नेहरू को सच्ची श्रद्धांजलि देने का भी दिन कहा जाता है, जो उसके हकदार भी हैं। नेहरू बच्चों को राष्ट्र की संपत्ति मानते थे। साथ ही वह अक्सर नौनिहालों को मुल्क का सबसे कीमती संसाधन के रूप में भी संदर्भित करते थे। इसलिए, अपने युवा नागरिकों के जीवन की बेहतरी के प्रति राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज इस दिवस के जरिए बच्चों में खुशियां, उनके अधिकारों और उनके उज्ज्वल भविष्य को संवारने के लिए जागरूकता भी फैलाई जाती है। बच्चों के प्रति जागरूकता को बढ़ाना और उन्हें एक सुरक्षित, खुशहाल और शिक्षा से भरपूर जीवन देने के लिए आज सभी को संकल्पित भी होना चाहिए।

  

सन् 1954 में, संयुक्त राष्ट्र की ओर से 20 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस घोषित किया गया था। पर, भारत ने इस दिवस को 14 नवंबर यानी पंडित नेहरू के जन्मदिन पर मनाने का निर्णय लिया। हिंदुस्तान में ये दिन को बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना, उन्हें सुरक्षित वातावरण देना और उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर ध्यान देने पर केंद्रित होता है। बच्चों के प्रति बढ़ते अत्याचार, बाल श्रम, और शिक्षा की कमी जैसी समस्याओं पर जागरूकता निरंती फैलती रहनी चाहिए। बच्चों को बचपन में सही मार्गदर्शन और प्यार दिया जाना चाहिए। सभी के बच्चे बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्र रूप से सीखने और बढ़ने का अधिकार रखते हैं। पंडित नेहरू हमेशा बच्चों के बीच जाकर उनके साथ समय बिताना पसंद करते थे और उनका मानना था कि बच्चों में मासूमियत, सच्चाई, और निष्ठा होती है, जो बड़ों को भी प्रेरणा देती हैं। शिक्षा का अधिकार, बाल श्रम से सुरक्षा और एक सुरक्षित व प्यार भरे वातावरण में बढ़ने का अधिकार हम सभी को मिलकर दिलवाना चाहिए। हालांकि, भारत में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण कानून और विभिन्न सरकारी-गैरसरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं, जिनका उद्देश्य बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाना है। इनका आम जनों को भी मिलकर सहयोग करना चाहिए।


- डॉ. रमेश ठाकुर

सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!

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