By अभिनय आकाश | Sep 26, 2024
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मानवता पर भौतिक विकास के प्रभाव पर चिंता व्यक्त की। महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में शांति और खुशी लाने के सभी प्रयोग विफल हो गए हैं। भागवत ने कहा कि भौतिक प्रगति अपने चरम पर पहुंच गई है, यह मानवता को विनाश की ओर धकेल रही है। उन्होंने कहा कि इसका उत्तर भारतीय परंपराओं में निहित है। आगे बोलते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय दर्शन ने हमेशा विविध दृष्टिकोणों को अपनाया है, जिसमें आस्तिक और नास्तिक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं। भागवत ने भारतीय संस्कृति की समावेशिता का जिक्र करते हुए कहा कि हमने कभी किसी को अस्वीकार नहीं किया, हमारी परंपरा सभी को स्वीकार करती है।
भागवत ने जीवन में संतुलन और समन्वय की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जीवन स्वाभाविक रूप से संघर्षों से भरा है, लेकिन इन संघर्षों में एक छिपा हुआ सामंजस्य है जिसे महसूस किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में विभिन्न वैश्विक प्रयासों के बावजूद, कोई भी प्रणाली स्थायी शांति और खुशी लाने में सक्षम नहीं है। महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि वह बदलाव खुद में कीजिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। आप वह बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में वैश्विक समुदाय के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान देने की क्षमता है। भागवत ने कहा कि हम सभी को दुनिया का मार्गदर्शक बनने का संकल्प लेना चाहिए।