देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोये रहना, बीड़ी−सिगरेट, तम्बाकू, चाय−कॉफी तथा फास्टफूड का बेहिसाब सेवन आधुनिक जीवन शैली के अंग हैं, जिस कारण हम कई रोगों के शिकार हो जाते हैं। हाइपर एसिडिटी या अम्लपित्त वर्तमान समय में सबसे अधिक पाए जाने वाले रोगों में से एक है, जो दोषपूर्ण जीवन शैली की उपज होता है। आज के दौर में लगभग 70 प्रतिशत लोग इसी रोग से पीड़ित हैं। हमारे शरीर में उपस्थित पित्त में अम्लता का गुण आने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, पित्त में अम्लता नहीं होती परन्तु अपथ्य सेवन तथा दोषपूर्ण दिनचर्या से पित्त में उष्णता आती है जिससे अम्लता पैदा होने लगती है आगे चलकर यही समस्या अम्लपित्त या हाइपर एसिडिटी का रूप लेती है।
खट्टी डकारें आना तथा छाती में जलन होना इस रोग के सामान्य लक्षण हैं जिनकी सहायता से इस रोग की पहचान की जा सकती है। परन्तु इन दो लक्षणों के अलावा अन्य लक्षण भी हैं जिनसे इस रोग को पहचाना जा सकता है, जैसे− पेट में भारीपन, खाली पेट भी गैस बनना, एक महीने में चार−पांच बार सिर दर्द होना, जी मिचलाना पर शायद ही उल्टी होना, पैरों के तलवों में जलन, ठंडे स्थान पर पैर रखने से अच्छा लगना, दिन में दो या तीन बार शौच के लिए जाना आदि। इसके अतिरिक्त अच्छी नींद लेने के बावजूद भी रोगी को थकावट महसूस देती है। उसका मन किसी काम में नहीं लगता उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है तथा उसमें कोई उत्साह नहीं रहता। ऐसे में स्नान करने के एक−दो घंटे बाद तक तो रोगी को चुस्ती−फुर्ती महसूस होती है लेकिन बाद में उसे सुस्ती व थकान होती है। रोगी को बवासीर तथा खूनी दस्त होने के साथ−साथ पैरों व पिण्डलियों में दर्द की शिकायत भी होती है।
आयुर्वेद के अनुसार, अपनी जीवनशैली को नियमित करके इस रोग से बचा जा सकता है। आहार निद्रा तथा ब्रह्मचर्य किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के आधार होते हैं। जहां तक आहार का संबंध है हमें पौष्टिक, सादा तथा आसानी से पचने वाला भोजन ही ठीक समय तथा ठीक प्रकार से करना चाहिए। विपरीत प्रकृति वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध तथा मछली का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए। ठीक समय पर गहरी नींद सोना भी जरूरी होने के साथ−साथ संयम तथा शुद्ध आचार−विचार का पालन भी करना चाहिए। आयुर्वेद के इन तीनों आधारों को दैनिक जीवन में शामिल कर हम केवल हाइपर एसिडिटी ही नहीं अनेक दूसरे रोगों से भी बच सकते हैं।
अम्लपित्त की चिकित्सा के लिए लीला विलास रस, अरोग्यवर्द्धिनी वटी तथा मुक्ताजेम की एक−एक गोली सुबह शाम खाली पेट सादे पानी के साथ ली जा सकती है। घर में जमाए दही में थोड़ा पानी मिलाकर फेंटे और इसमें एक चम्मच लवण भास्कर चूर्ण मिला लें। इस छाछ को भोजन करते समय घूंट−घूंट करके पीते रहें और भोजन के साथ ही छाछ खत्म करें। सुबह−शाम एक−एक गोली लेने के लगभग एक घंटे बाद दो−दो रत्ती स्वर्णमाक्षिक भस्म तथा कामसुधा रस का गुलकंद के साथ सेवन करें।
जहां तक अच्छी दिनचर्या का प्रश्न है उसके लिए जहां तक संभव हो सूर्योदय से लगभग आधा घंटा पहले उठे। हल्का व्यायाम तथा योगासन भी जरूरी है। दिन भर के कार्यों को प्रसन्नतापूर्वक करना जरूरी है, क्रोध न करें। खाने की आदतों में परिवर्तन करना भी बहुत जरूरी है। भोजन में गारिष्ठ, खटाई युक्त, तले हुए मिर्च−मसालेदार खाद्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करें। लाल मिर्च के सेवन से भी बचना चाहिए। बहुत खट्टे तथा बासी खाद्य−पदार्थों के सेवन से भी बचना चाहिए। रोग होने की अवस्था में रोगी को हरा धनिया, पुदीना, मुनक्का, सूखा धनिया, मुलहठी चूर्ण, मीठे फलों का रस, ताजी छाछ आदि देने से रोग का निदान होने में सहायता मिलती है।
नियमित दिनचर्या तथा आहार पर पैनी नजर आयुर्वेद के दो हथियार हैं जिनकी सहायता से आप हाइपर एसिडिटी से बच सकते हैं।
वर्षा शर्मा