By रेनू तिवारी | Aug 20, 2022
नयी दिल्ली। भारतीय वायु सेना के चार सुखोई -30 एमकेआई लड़ाकू जेट (Sukhoi-30 MKI fighter jets) और दो सी -17 भारी-भरकम चीजें ले जाने में सक्षम विमान (C-17 heavy-lift aircraft) शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया में 17 देशों के हवाई युद्ध अभ्यास में शामिल हुए। ऑस्ट्रेलिया में तीन हफ्तों तक चलने वाला 'पिच ब्लैक' अभ्यास (Pitch Black Exercise) तब हो रही हैं जब चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते कुछ ज्यादा अच्छे नहीं चल रहे हैं वहीं दूसरी ओर रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी हैं इसके अलावा चीन और ताइवान में भी टेंशन काफी ज्यादा बढ़ी हुई है जब से अमेरिकी अधिकारी नैन्सी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा की है। इस यात्रा से चीन इतना तिलमिलाया कि उसने ताइवान के पास युद्धाभ्यास भी शुरूकर दिए।
रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फ़ोर्स (RAAF) द्वारा 'पिच ब्लैक' अभ्यास को आयोजित किया गया है। यह तीन हफ्तों तक चलेगा। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, भारत, जापान, मलेशिया, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, कोरिया गणराज्य, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, थाईलैंड, अमेरिका और ब्रिटेन के 100 से अधिक विमान और 2,500 कर्मचारी भाग ले रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र में यह अभ्यास किया जा रहा है।
भारतीय वायुसेना ने कहा, “भारतीय वायुसेना का एक बेड़ा पिच ब्लैक अभ्यास 2022 में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया पहुंच चुका है। यह अभ्यास डार्विन में 19 अगस्त से आठ सितंबर तक चलेगा।” बयान में कहा गया, “वायुसेना के बेड़े का नेतृत्व ग्रुप कैप्टन वाईपीएस नेगी कर रहे हैं और इसमें सौ से ज्यादा वायुसैनिक शामिल हैं। चार सुखोई-30 एमकेआई युद्धक विमान और दो सी-17 विमान इसमें हिस्सा लेंगे।
पिछला 'पिच ब्लैक' 2018 में आयोजित किया गया था। अभ्यास के 2020 संस्करण को COVID-19 महामारी के कारण रद्द कर दिया गया था। अभ्यास कमांडर एयर कमोडोर टिम अलसॉप ने कहा कि पिच ब्लैक की वापसी साझेदारी को मजबूत करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक उत्कृष्ट अवसर है।
आरएएएफ ने कहा कि यह अभ्यास ऑस्ट्रेलिया के मजबूत संबंधों और क्षेत्रीय सुरक्षा पर रखे गए उच्च मूल्य और पूरे भारत-प्रशांत क्षेत्र में घनिष्ठ संबंधों को बढ़ावा देता है। पिच ब्लैक एक बड़ा बल रोजगार अभ्यास है, जो लड़ाकू युद्ध परिदृश्यों द्वारा संचालित है। इस वर्ष भाग लेने वाले कई देशों के बीच हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं।