VV Giri Birth Anniversary: मजदूरों के बड़े नेता थे वीवी गिरि, इंदिरा गांधी के समर्थन से बने थे देश के चौथे राष्ट्रपति

By अनन्या मिश्रा | Aug 10, 2024

आज ही के दिन यानी की 10 अगस्त को देश के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरि का जन्म हुआ था। बता दें कि वी वी गिरि का राष्ट्रपति बनना एक ऐसी राजनीतिक घटना थी, जिसके बाद देश में सियासत के एक नए दौर की शुरूआत हुई थी। उन्होंने देश के मजदूर वर्ग को एक नई आवाज देने का और मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने का काम किया था। तो आइए जानते हैं देश के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरि के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

उड़ीसा (अब ओडिशा) के ब्रह्मपुर में 10 अगस्त 1894 को वी वी गिरि का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम वीवी जोगय्या पंतुलु था, जोकि वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्‍य थे। गिरि ने अपनी शुरूआती शिक्षा ब्रह्मपुर से पूरी की और फिर साल 1913 में वकालत की पढ़ाई के लिए आयरलैंड चले गए। जहां पर उन्होंने साल 1913-16 तक पढ़ाई की। बाद में वीवी गिरि ने वकालत की और ब्रह्मपुर बार काउंसिल के नेता बने। बता दें कि वी वी गिरि का पूरा नाम वराहगिरि वेंकट गिरि था। वह देश के पहले और अभी तक के आखिरी निर्दलीय राष्ट्रपति रहे हैं।

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आयरलैंड से देश निकाला गया

वीवी गिरि की माता भी आजादी की लड़ाई के आंदोलन में जेल यात्रा कर चुकी थीं। आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन में पढ़ाई के दौरान साल 1913-1916 में वह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए और गिरफ्तार भी हुए। जिसके बाद उनको उनको आयरलैंड से निकाल दिया गया था। जिसके कारण उनको भारत वापस लौटना पड़ा था। फिर साल 1920 में गांधी जी के अपील पर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।


मजदूरों के बड़े नेता थे वीवी गिरि

आपको बता दें कि वीवी गिरि शुरूआत से ही मजदूरों के बड़े नेता रहे। साल 1928 में गिरि के नेतृत्व में रेलवे कामगारों की अहिंसक हड़ताल हुई। ऐसे में ब्रिटिश राज और रेलवे प्रबंधन को कामगारों की मांग माननी पड़ी थी। ट्रेड यूनियनों को आजादी के आंदोलन का भागीदार बनाने का बड़ा श्रेय गिरि को दिया जाता है। वीवी गिरि ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में कामगारों का प्रतिनिधित्‍व किया। वहीं देश की आजादी के बाद साल नेहरू सरकार में उन्हें श्रम मंत्रालय का जिम्मा मिला। वीवी गिरि की सोच थी औद्योगिक विवाद में प्रबंधन मजदूरों से बातचीत के जरिये समाधान निकाला। इसको गिरि-अप्रोच कहा जाता है।


जब इंदिरा गांधी और कांग्रेस में हुई तनातनी

दरअसल, देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की 13 मई 1969 को मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया था। इसके बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के नाम से मशहूर कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच गहमागहमी का माहौल बन गया था। फिर इंदिरा गांधी के विरोध को दरकिनार करते हुए ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन देने का फैसला किया।


देश के तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने सिंडिकेट से नाराज होकर वीवी गिरि को समर्थन देने का फैसला किया। पीएम इंदिरा गांधी ने कांग्रेस विधायकों और सांसदों से अपने मन की आवाज पर वोट करने की अपील की। 16 अगस्त 1969 को राष्‍ट्रपति चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी, वीवी गिरि और विपक्ष के उम्मीदवार सीडी देशमुख के बीच मुकाबला हुआ था। इसमें वीवी गिरि की जीत हुई और उनको पहली वरीयता में 48 फीसदी अधिक वोट मिले थे। वहीं दूसरी वरीयता में विवि गिरि को बहुमत मिल गया। इस तरह से वीवी गिरि न सिर्फ देश के पहले निर्दलीय राष्टपति बनें। बल्कि वह इकलौते कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हैं। जोकि बाद में राष्ट्रपति बने थे।


जिसके बाद वीवी गिरि के चुनाव की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई। इस याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसे में इस मामले की सुनवाई के लिए राष्ट्रपति गिरि कोर्ट में पेश हुए और गवाह के तौर पर उनसे सवाल किए गए। शीर्ष अदालत ने आखिर में याचिका खारिज कर दी गई और गिरि के चुनाव को बरकरार रखा गया। 


मृत्यु

बता दें कि 24 अगस्त 1969 से लेकर 24 अगस्त 1974 तक राष्ट्रपति पद पर रहे। वहीं 24 जून 1980 को 85 साल की उम्र में वीवी गिरि का निधन हो गया था।

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