महज 17 साल की उम्र में हॉकी टीम में शामिल हुए Vivek Sagar को मिली ओलंपिक टीम में जगह

By Anoop Prajapati | Jul 08, 2024

दुनिया भर में अपनी शोहरत क़ायम करने के लिए ज़्यादातर खिलाड़ियों को सालों तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। हालांकि, भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मिडफ़ील्डर विवेक सागर प्रसाद की कहानी कुछ अलग है और उन्हें काफ़ी जल्दी सफलता हासिल हो गई। विवेक सागर प्रसाद ने जनवरी 2018 में 17 साल, 10 महीने और 22 दिन की उम्र में भारतीय टीम के लिए खेलना शुरू किया। वे अपने देश का प्रतिनिधित्व करने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए हैं। तब से लेकर अब तक उन्होंने भारत की ओर से 90 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबले खेले हैं। मिडफ़ील्डर के रूप में खेलते हुए, प्रसाद ने टोक्यो 2020 में भारत के कांस्य पदक जीत में अहम योगदान दिया था।


विवेक सागर प्रसाद का जन्म 25 फ़रवरी 2000 को मध्य प्रदेश के इटारसी शहर के पास शिवनगर चंदन गांव में हुआ था। बचपन में, विवेक सागर प्रसाद को शतरंज, बैडमिंटन और क्रिकेट खेलना पसंद था और हॉकी से उनका परिचय महज़ एक इत्तेफ़ाक़ था। पहली बार हॉकी से उनका परिचय साल 2010-11 में हुआ। दरअसल, विवेक जिस स्कूल में पढ़ते थे, उस स्कूल में हॉकी कोच ने उन छात्रों को इस खेल का प्रशिक्षण देने की पेशकश की, जो इस खेल को खेलना चाहते हैं। हॉकी का जादू जल्द ही युवा विवेक हावी हो गया। वे अपने खाली समय में भी, अपने घर के पास की एक छोटी सी जगह में अभ्यास किया करते थे और कुछ ही महीनों में ये खिलाड़ी स्कूल के स्तर से आगे खेलने लगा। 


साल 2013 में अकोला में एक स्थानीय सीनियर-लेवल के टूर्नामेंट में खेलते हुए, विवेक सागर प्रसाद पर अशोक कुमार की नज़र पड़ी, जिन्होंने 1975 के हॉकी विश्व कप फ़ाइनल में विजयी गोल किया था। मैच के बाद, विवेक सागर प्रसाद को भोपाल में अशोक कुमार की एमपी हॉकी अकादमी में प्लेसमेंट की पेशकश की गई। प्रतिभाशाली मिडफ़ील्डर ने इस अवसर को हाथों-हाथ लिया और आने वाले कुछ सालों तक अशोक कुमार की संस्थान में अपनी प्रतिभा को निखारने का काम जारी रखा। साल 2016 में, यह लगभग तय माना जा रहा था कि विवेक सागर प्रसाद को जूनियर हॉकी विश्व कप के लिए भारतीय टीम में जगह मिल जाएगी। लेकिन, इससे ठीक पहले वे भयंकर रूप से चोटिल हो गए जिससे उनके करियर पर भी खतरा मंडराने लगा। इस चोट ने उनकी महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर दिया। 


एक अभ्यास मैच के दौरान मिडफ़ील्डर का कॉलरबोन (कंधे से छाती की हडि्‌डयों को जोड़ने वाली हड्‌डी) चोटिल हो गया और इसके बाद उन्हें महीनों तक मैदान से बाहर रहना पड़ा। इस वजह से वे डिप्रेशन का भी शिकार हुए। विवेक प्रसाद को प्रबंधन के सामने यह बात साबित करने में थोड़ा समय लगा कि वे सीनियर टीम में जगह बनाने के लायक़ हैं। इसके बाद उन्होंने 2018 गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स टीम में भारत के पूर्व कप्तान और दिग्गज सरदार सिंह की जगह ली। उसी साल बाद में, उन्होंने जकार्ता में एशियाई खेलों में चार गोल कर भारत को कांस्य पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। प्रसाद ने नीदरलैंड में 2018 चैंपियंस ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ गोल कर स्कोर को बराबर भी किया था। हालांकि, भारत को शूटआउट के ज़रिए ऑस्ट्रेलिया से हारकर रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा था। 


प्रसाद ने 2018 में युवा ओलंपिक खेलों में भारतीय जूनियर टीम का नेतृत्व किया था। उन्होंने न केवल मिडफ़ील्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि वह टूर्नामेंट में भारत के लिए संयुक्त रूप से सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी भी थे। उन्हें साल 2019 में FIH मेंस सीरीज़ फ़ाइनल में टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी चुना गया। प्रसाद ने उसी साल FIH मेंस राइज़िंग स्टार ऑफ़ द ईयर का ख़िताब भी हासिल किया। विवेक ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में भारत के लिए सभी आठ मुक़ाबले खेले। उन्होंने अर्जेंटीना के ख़िलाफ़ मैच के अंतिम मिनटों में एक महत्वपूर्ण गोल कर भारत को 2-1 से आगे कर दिया। भारत ने 3-1 से जीत दर्ज करते हुए नॉकआउट के लिए क्वालीफ़ाई किया। हालांकि प्रसाद के लिए यह टूर्नामेंट का एकमात्र गोल था लेकिन भारतीय टीम के लिए यह पल 41 साल बाद आया था जब उन्होंने ओलंपिक में कोई पदक जीता हो। इस ऐतिहासिक कांस्य पदक जीत में प्रसाद का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था। साल 2021 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया जो खिलाड़ियों के लिए भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान है।

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