वीरमगाम में हार्दिक पटेल ने वादे तो बहुत बड़े-बड़े कर दिये हैं, लेकिन इस क्षेत्र की जनता क्या कह रही है?

By गौतम मोरारका | Nov 21, 2022

पाटीदार आंदोलन के प्रमुख नेता रहे हार्दिक पटेल ने अपना राजनीतिक सफर भाजपा की खिलाफत के साथ शुरू किया था लेकिन परिस्थितियों ने करवट ली और आज वह भाजपा उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के गुजरात प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष पद तथा पार्टी से इस्तीफा देकर इस साल अपने दल बल सहित भाजपा में प्रवेश करने वाले हार्दिक पटेल को उनकी पसंदीदा सीट वीरमगाम से चुनाव मैदान में उतारा गया है। हार्दिक पटेल यदि अहमदाबाद में पड़ने वाली इस सीट को भाजपा की झोली में डाल सके तो यकीनन उनका कद बढ़ेगा। वीरमगाम नगर पालिका और तालुका पंचायत दोनों पर ही वर्तमान में भाजपा काबिज है हालांकि विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है।


जहां तक वीरमगाम सीट के राजनीतिक समीकरणों की बात है तो आपको बता दें कि इस सीट को जाति की राजनीति से मुक्त माना जाता है क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय समेत विभिन्न जातियों व धर्मों के नेता इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 29 साल के हार्दिक पटेल वीरमगाम तालुका के चंद्रनगर गांव के रहने वाले हैं और उनका पालन पोषण भी इसी क्षेत्र में हुआ है। वीरमगाम विधानसभा क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों से कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर 92 अन्य सीटों के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत पांच दिसंबर को मतदान होगा। वीरमगाम में लगभग तीन लाख मतदाता हैं, जिनमें 65,000 ठाकोर (ओबीसी) मतदाता, 50,000 पाटीदार या पटेल मतदाता, लगभग 35,000 दलित, 20,000 भारवाड़ और रबारी समुदाय के मतदाता, 20,000 मुस्लिम, 18,000 कोली सदस्य और 10,000 कराडिया (ओबीसी) राजपूत शामिल हैं। इस सीट ने हालांकि अब तक विभिन्न जातियों के विधायक दिए हैं, जिनमें तेजश्री पटेल (पाटीदार), 1980 में दाउदभाई पटेल (मुस्लिम), 2007 में कामाभाई राठौड़ (कराडिया राजपूत) और लाखाभाई भारवाड़ (ओबीसी) शामिल हैं।

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वीरमगाम सीट पर हार्दिक पटेल का मुख्य मुकाबला यहां के वर्तमान विधायक लाखाभाई भारवाड़ से होगा। लाखाभाई भारवाड़ ने साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तेजश्री पटेल को 6500 से अधिक मतों के अंतर से हराया था। लाखाभाई भारवाड़ अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं। क्षेत्र में उनके बारे में मतदाताओं का क्या सोचना है यदि इसके बारे में बात करें तो आपको बता दें कि लाखाभाई भारवाड़ सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं। वहीं क्षेत्र के कुछ मतदाताओं का यह भी कहना है कि वह एक विधायक के रूप में सक्रिय रहे हैं और स्थानीय मुद्दों के समाधान के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है। इसलिए हार्दिक पटेल के लिए उन्हें हराना आसान नहीं होगा। भारवाड़ भी हार्दिक पटेल को चुनौती के रूप में नहीं देखते इसलिए वह कह रहे हैं कि वीरमगाम के लोग कभी भी जाति के आधार पर वोट नहीं देते। यही कारण है कि दशकों से विभिन्न जातियों के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। उनका कहना है कि इस सीट के मतदाता केवल लोगों और पार्टी के प्रति प्रदर्शन और प्रतिबद्धता देखते हैं। इसलिए मुझे इस सीट को बरकरार रखने का भरोसा है। भारवाड़ चुनाव प्रचार के दौरान अपने पिछले प्रदर्शन और लोगों के लिए किए गए कार्यों को याद दिला कर वोट मांग रहे हैं।


इस विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी भी मैदान में है, जिसने शुरुआत में कुंवरजी ठाकोर को टिकट दिया था, लेकिन अचानक उनकी जगह अमरसिंह ठाकोर को मैदान में उतार दिया। कुंवरजी इससे खुश नहीं हैं। इसलिए उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। 2017 में उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था और 10,800 मतों के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। इसके अलावा वीरमगाम के जाने माने दलित कार्यकर्ता किरीट राठौड़ भी निर्दलीय के रूप में मैदान में हैं। कई लोगों का मानना है कि यह तिकड़ी, अगर मैदान में रहती है तो मतदान समीकरणों को गड़बड़ा सकती हैं और अप्रत्याशित परिणाम दे सकती है।


दूसरी ओर, हार्दिक पटेल के चुनाव प्रचार की बात करें तो आपको बता दें कि पाटीदार जाति को ओबीसी का दर्जा दिलाने के लिए पाटीदार आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व करने के बाद सुर्खियों में आए हार्दिक क्षेत्र के गांवों का लगातार दौरा कर रहे हैं। उनके द्वारा जारी “वादों की सूची” में, पहले वादे में कहा गया है कि वह यह सुनिश्चित करेंगे कि वीरमगाम को एक जिले का दर्जा मिले और ग्रामीण लोग पहले से ही इस मुद्दे को उठाने के लिए पटेल को धन्यवाद दे रहे हैं। हार्दिक पटेल के अन्य प्रमुख वादों में एक आधुनिक खेल परिसर, स्कूल, मंडल तालुका, देतरोज तालुका और नल सरोवर के पास 50-शैय्या का अस्पताल, वीरमगाम शहर में 1,000 सरकारी घर, औद्योगिक एस्टेट, उद्यान आदि शामिल हैं।


हम आपको यह भी बता दें कि हार्दिक पटेल की ओर से जारी चार पन्नों वाली वादों की फेहरिस्त में “पाटीदार” शब्द का उल्लेख नहीं है। उनके संक्षिप्त परिचय में, यह उल्लेख किया गया है कि उनका जन्म गुजरात में एक “हिंदू परिवार” में हुआ था और उनके दिवंगत पिता भरतभाई इस क्षेत्र के एक सक्रिय भाजपा कार्यकर्ता थे। आरक्षण के लिए उनके आंदोलन के बाद गुजरात में शुरू किए गए ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) कोटे की ओर इशारा करते हुए इसमें कहा गया है कि हार्दिक के “ऐतिहासिक आंदोलन” ने न केवल एक बल्कि कई समुदायों को कई लाभ प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।


बहरहाल, देखना होगा कि हार्दिक पटेल को जनता सर आंखों पर बैठा कर विधानसभा पहुँचाती है या कांग्रेस उम्मीदवार पर ही दोबारा भरोसा जताती है। वैसे हार्दिक पटेल की लोकप्रियता को देखते हुए वह कांग्रेस उम्मीदवार पर भारी पड़ते दिख रहे हैं।


-गौतम मोरारका

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