जब भी भाजपा के इतिहास का जिक्र होगा उसमें ग्वालियर पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाम जरूर आएगा। विजयराजे सिंधिया भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में उन्हें राजमाता के ही नाम से जाना जाता था। सरलता, सहजता और संवेदनशीलता की वह मिसाल थीं। राजघराने से ताल्लुक रखने के साथ-साथ राजनीति में भी उनकी अच्छी पकड़ रही। विजय राजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को मध्य प्रदेश के सागर में हुआ था। विजय राजे सिंधिया का प्रभाव अपने आप में काफी महत्वपूर्ण था। वह कई दशकों तक जनसंघ की सदस्य रहीं। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी के सह संस्थापक भी रहीं।
विजय राजे सिंधिया अपने आप में भारतीय राजनीति में बेहद ही ताकतवर स्थान रखते थीं। राजनीति की जटिलता को भलीभांति समझती थीं और समय-समय पर इसका प्रदर्शन भी करती थीं। भारतीय राजनीति में उनका नाम उस समय सबसे ज्यादा चर्चा में आ गया था जब उन्होंने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा की सरकार को गिराया था और जनसंघ के विधायकों के समर्थन से स्वर्गीय गोविंद नारायण चौधरी को मुख्यमंत्री बनाया था। वह ऐसा वक्त था जब लोगों को राजमाता की राजनीतिक ताकत का एहसास होने लगा था। इसके साथ ही विजय राजे सिंधिया जनसंघ के साथ हो गईं और उसके बाद से लगातार अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से चर्चा कर पार्टी को आगे बढ़ाने लगीं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कुशाभाऊ ठाकरे से राजमाता सिंधिया का बहुत बड़ा लगाव था। वह उन्हें पुत्रवत मानती थीं।
जनसंघ के नेता के कारण राजमाता सिंधिया ने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया। उस दौरान भारतीय जनसंघ को एक सशक्त महिला के तौर पर बेहद ही दमदार नेत्री के रुप में वह मिली थीं। माना जाता है कि भाजपा के लिए वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करने में राजमाता सिंधिया का बहुत बड़ा योगदान था। जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कराया था। उस दौरान उन्होंने राजमाता को बुलाया था और उनसे 20 सूत्रीय कार्यक्रम का समर्थन करने को कहा था। हालांकि, राजमाता ने अपनी दृढ़ता का परिचय देते हुए इंदिरा के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि मैं जनसंघ की विचारधारा को नहीं छोड़ सकती। उन्होंने यह तक कह दिया कि मैं जेल जाना पसंद करूंगी लेकिन आपातकाल जैसे काले कानून का कभी समर्थन नहीं करूंगी। विचारधारा के प्रति ऐसी प्रतिबद्धता शायद ही किसी में देखने को मिलती है। राजमाता जेल गईं लेकिन इंदिरा के सामने नहीं झुकीं। स्वयं राजमाता के बेटे माधव राज सिंधिया देश छोड़कर चले गए थे लेकिन विजय राजे सिंधिया अपनी हिम्मत पर डटी रहीं।
जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर के आग्रह पर जनता पार्टी की ओर से राजमाता सिंधिया ने इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। भले ही वह हार गईं लेकिन उन्होंने संगठन के निर्णय को किसी विरोध के बिना शिरोधार्य किया। जनता पार्टी की सरकार बनने पर उन्हें तत्कालीन नेताओं की ओर से अनेक प्रकार के सरकारी पद दिए जाने की बात कही गई। लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। वह सदैव संगठन को मजबूत करने की कोशिश करते रहीं। धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़ती चली गईं। राजमाता वात्सल्य की धनि थीं। वह ममतामई थीं और यही कारण था कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को उनका स्नेह सदैव प्राप्त होता रहा। विजया राजे 1957 में पहली बार राजनीति में आई थीं और उन्होंने गुना से चुनाव लड़ा था। विजया राजे सिंधिया 1989 से गुना से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गईं। 1991, 1996 और 1998 में भी वह इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचती रहीं। हालांकि वृद्धावस्था के कारण उन्होंने 1999 में चुनाव नहीं लड़ा।
विजया राजे सिंधिया ने 1980 ने भाजपा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ ही उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष से बनाया गया। जब पार्टी ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तब विजया राजे सिंधिया ने भी इसको बखूबी आगे बढ़ाते रहीं। जनवरी 2001 में उनकी मृत्यु हो गई। विजया राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया पहले जनसंघ में रहे। बाद में वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने। उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी देश की सेवा की है। माधवराव सिंधिया के बेटे और विजयाराजे सिंधिया के पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। विजयाराजे सिंधिया की दो बेटी वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भाजपा की वरिष्ठ नेता हैं। वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं जबकि यशोधरा राजे सिंधिया लोकसभा में भाजपा के टिकट पर जीत कर पहुंची थीं। इसके अलावा वर्तमान में वह मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं।
- अंकित सिंह