हर वर्ष की भांति मंगलमूर्ति गणेश एक बार फिर गणेशोत्सव अर्थात् गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर-घर पधार रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश का जन्म हुआ था। इसी चतुर्थी से आरंभ होकर गणेशोत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है और विध्नहर्ता भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी के अवसर पर घरों में छोटी-बड़ी प्रतिमाओं के अलावा कई प्रमुख स्थानों पर भी भगवान गणेश की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं, जिनका लगातार नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। दस दिन पश्चात् अनंत चतुर्दशी के दिन पूरे जोश के साथ गणेश प्रतिमा को तालाब इत्यादि किसी जलस्रोत में विसर्जित कर दिया जाता है। गणपति विसर्जन को लेकर मान्यता है कि हमारा शरीर पंचतत्व से बना है और एक दिन उसी में विलीन हो जाएगा। इसी आधार पर अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन किया जाता है। इस वर्ष कोरोना के चलते अधिकांश लोग ऐसे पंडालों या सार्वजनिक स्थलों के बजाय अपने-अपने घरों में ही गणपति की पूजा करेंगे और अधिकांश जगहों पर मूर्तियों का जलस्रोतों में विसर्जन भी नहीं होगा।
गणेशोत्सव हालांकि वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है और लोग अपने घरों में गणपति बप्पा की पूजा करते हैं लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व की विशेष धूम दिखाई देती है। जगह-जगह बड़े-बड़े आकर्षक पंडाल सजाए जाते हैं, जहां लोग एकजुट होकर भक्ति रस में सराबोर होकर भगवान गणेश की पूजा करते हैं। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की परम्परा की शुरूआत के संबंध में कहा जाता है कि यह शुरूआत पेशवाओं द्वारा की गई थी और तब पुणे के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। सार्वजनिक रूप से महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को बड़े पैमाने पर मनाए जाने की शुरूआत 1893 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बालगंगाधर तिलक द्वारा आजादी की लड़ाई में लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से की गई थी।
गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता हैं और मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा की पूजा करने से वे भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं। सच्चे मन से उनकी पूजा करने से शुभ-लाभ की प्राप्ति तथा समृद्धि के साथ धन-धान्य की वृद्धि होती है। श्रीगणेश के अनेक प्रचलित नामों में से गजानन. लम्बोदर, विघ्ननाशक, विनायक, गणाध्यक्ष, एकदन्त, चतुर्बाहु, गजकर्णक, भालचन्द्र, कपिल, विकट, धूम्रकेतु, सुमुख इत्यादि काफी प्रसिद्ध हैं। बुद्धि, विवेक, धन-धान्य और रिद्धि-सिद्धि के कारक भगवान गणेश की पूजा गणेश चतुर्थी के दिन प्रायः दोपहर के समय ही की जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि विध्नहर्ता गणेश का जन्म मध्यान्ह के समय हुआ था, इसीलिए गणेश चतुर्थी पर उनकी पूजा के लिए यही समय सर्वोत्तम माना गया है। माना जाता है उनकी पूजा करने से शनि की वक्रदृष्टि तथा ग्रहदोष से भी मुक्ति मिलती है। गणेश जी की कृपा से समस्त कार्य बगैर किसी बाधा के पूर्ण होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी भगवान गणेश की पूजा सभी देवी-देवताओं में सबसे सरल मानी जाती है। वैसे तो देश में 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा की जाती है लेकिन हिन्दू धर्म में गणेश जी को सभी देवों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त है और प्रत्येक पूजा या कोई भी शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा करने का विधान है। दरअसल उन्हें उनके पिता भगवान शिव ने ही यह विशेष वरदान दिया था कि हर पूजा या शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होगी।
शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने मैल से एक बालक उत्पन्न कर उसे अपना द्वारपाल बना दिया। जब पार्वती जी स्नान करने लगी, तब अचानक भगवान शिव वहां आए लेकिन द्वारपाल बने बालक ने उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोक दिया। उसके बाद शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया लेकिन कोई भी उसे पराजित नहीं कर सका तो क्रोधित शिव ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब पार्वती को यह पता चला तो आग-बबूला हो उन्होंने प्रलय करने का निश्चय कर लिया। इससे देवलोक भयाक्रांत हो उठा और देवताओं ने उनकी स्तुति कर उन्हें शांत किया। भगवान शिव ने निर्देश दिया कि उत्तर दिशा में सबसे पहले जो भी प्राणी मिले, उसका सिर काटकर ले आएं। विष्णु उत्तर दिशा की ओर गए तो उन्हें सबसे पहले एक हाथी दिखाई दिया। वे उसी का सिर काटकर ले आए और शिव ने उसे बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती उसे पुनः जीवित देख बहुत खुश हुई और तब समस्त देवताओं ने बालक गणेश को अनेकानेक आशीर्वाद दिए। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कोई भी शुभ कार्य यदि गणेश की पूजा करके शुरू किया जाएगा तो वह निर्विघ्न सफल होगा। उन्होंने गणेश को अपने समस्त गणों का अध्यक्ष घोषित करते हुए आशीर्वाद दिया कि विघ्न नाश करने में गणेश का नाम सर्वोपरि होगा। इसीलिए भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। एक प्रचलित लोककथा के अनुसार भगवान शिव का एक बार त्रिपुरासुर से भीषण युद्ध हुआ। युद्ध शुरू करने से पहले उन्होंने गणेश को स्मरण नहीं किया, इसलिए वे त्रिपुरासुर से जीत नहीं पा रहे थे। उन्हें जैसे ही इसका अहसास हुआ, उन्होंने गणेश जी को स्मरण किया और उसके बाद आसानी से त्रिपुरासुर का वध करने में सफल हुए।
देवों के देव भगवान गणेश के देशभर में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें सबसे लोकप्रिय मुम्बई के प्रभादेवी में श्री सिद्धिविनायक मंदिर है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। वर्ष 2014 में गुजरात के मेहमदाबाद में छह लाख वर्गफुट में बना सिद्धिविनायक मंदिर भगवान गणेश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। जमीन, अचल सम्पति और चढ़ावे के आधार पर इन्दौर स्थित खजराना गणेश मंदिर सबसे धनी गणपति मंदिर है। हालांकि संचित धन के हिसाब से पुणे का दगडुशेठ गणपति मंदिर देश का सबसे धनी गणपति मंदिर है। वैसे प्रतिदिन चढ़ावे के हिसाब से मुम्बई का सिद्धिविनायक मंदिर सबसे आगे है।
- योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)