Nitish Kumar की यूज एंड थ्रो की नीति का शिकार, या केसी त्यागी को किसी बड़े मिशन में लगा दिया इस बार?

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By अभिनय आकाश | Sep 02, 2024

Nitish Kumar की यूज एंड थ्रो की नीति का शिकार, या केसी त्यागी को किसी बड़े मिशन में लगा दिया इस बार?

"एक बार मैं और प्रमोद महाजन चुनाव के दौरान यात्रा कर रहे थे। तभी हमारा हेलीकॉप्टर अचानक बिजली के तार से टकरा गया और हम डर गए कि कहीं हम मर न जाएं। लेकिन पायलट ने हमें चिंता न करने के लिए कहां क्योंकि वहां बिजली ही नहीं थी। आज बिहार में 100 प्रतिशत घरेलु विद्युतिकरण हो गया है।" साल 2020 में केसी त्यागी ने नीतीश कुमार के विकास की कहानी का बखान करते हुए एक इंटर्व्यू में इसका उल्लेख किया था। 48 सालों के साथ पर अब आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। रविवार के दिन एक खबर ने दिल्ली से लेकर पटना तक का सियासी पारा बढ़ा कर रख दिया। जनता दल यूनाइटेड के सीनियर नेता केसी त्यागी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया। जैसे ही ये खबर आई तमाम राजनीतिक दलों में हलचल तेज हो गई। जदयू ने उनकी जगह राजीव रंजन को राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी है। समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे केसी त्यागी जेडीयू और नीतीश कुमार के लिए अहम माने जाते रहे हैं। शरद यादव से लेकर ललन सिंह तक जेडीयू का अध्यक्ष कोई भी रहा हो केसी त्यागी को हमेशा से ही कोर टीम में शामिल किया जाता रहा है। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि केसी त्यागी को राष्ट्रीय प्रवक्ता पद छोड़ना पड़ा। 

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चंद्रशेखर के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया 

केसी त्यागी किसी दौर में नीतीश कुमार से भी बड़े नेता हुआ करते थे। जनता दल यूनाइटेड से केसी त्यागी ने समाजवाद के विचारधारा को आगे बढ़ाया था। 1974 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल में ऊंचे पद पर वो रहे। साल 1989 में लोकसभा के सांसद रहे। लेकिन 16 महीने बाद इसे भंग कर दिया गया। इससे पहले उन्होंने जार्ज फर्नांडीस के साथ इमरजेंसी का विरोध किया। 1977 में इमरजेंसी घटी और केसी त्यागी का कद काफी बढ़ने लगा। किसी दौर में त्यागी और शरद यादव एक कद के ही नेता हुआ करते थे। लेकिन अचानक उनका ग्राफ नीचे गिरने लगा। मंडल कमीशन के लागू होने के बाद उस दौर में शरद यादव का ग्राफ ऊपर गया और अगड़ी जाति से आने वाले केसी त्यागी राजनीति में वो पद हासिल नहीं कर सके जिसके वो हकदार थे। किसी दौर में मुलायम सिंह के कार्यकाल में केसी त्यागी बेहद ताकतवर थे। वो सपा में नहीं थे फिर भी राजधानी में उनकी तूती बोलती थी। बताया जाता है कि केसी त्यागी का राजनीतिक कद और बढ़ सकता था। लेकिन वो बैकवार्ड कार्ड की राजनीति में अनफिट बैठे। वीपी सिंह को समर्थन करने का वादा करने वाले केसी त्यागी ने किसी दौर में चंद्रशेखर के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था। प्रमोद महाजन की तरफ से 2004 में उन्हें मेरठ से चुनाव लड़ने का ऑफर तक दिया था। लेकिन हमेशा समाजवादी बने रहने की चाह में इससे भी केसी त्यागी ने किनारा कर लिया। केसी त्यागी दो बार सदन में पहुंच सके। पहली बार 1989 में लोकसभा और फिर साल 2013 में उन्हें तीन साल के लिए राज्यसभा भेजा गया। सरकार में उनके पास कभी बड़े पद नहीं रहे लेकिन संगठन में उनकी जगह हमेशा बनी रही। 

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क्यों छोडा प्रवक्ता पद

राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि केसी त्यागी ने कई मुद्दों पर पार्टी लाइन से हटकर राजनीतिक बयानबाजी की थी। फिर चाहे केंद्र सरकार की विदेश नीति, लेटरल एंट्री, एससीएसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो। उन्होंने अपने निजी विचारों को पार्टी के विचारों की तरह पेश किया। जिससे पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा। माना जा रहा है दिल्ली में हर मुद्दे पर बैठकर टिप्पणी करना केसी त्यागी को भारी पड़ गया। माना जा रहा है कि वो हर मुद्दे पर अपनी राय बेबाकी से रखते थे और पटना में बैठी जेडीयू की लीडरशिप ये बर्दाश्त न कर सकी। पार्टी की तरफ से कहा गया है कि उन्होंने निजी वजहों से जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया है। केसी त्यागी बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में इजरायल को हथियारों की आपूर्ति रोकने पर केसी त्यागी ने विपक्षी दलों का साथ दिया था। उन्होंने विपक्षी दलों के साथ एक साझा बयान पर हस्ताक्षर किए थे। इस बयान में कहा गया था कि केंद्र सरकार को इजरायल को हथियारों और गोला बारूद की आपूर्ति पर रोक लगानी चाहिए। 

पहले भी उठा चुके हैं ऐसा कदम

मार्च  2023 में सिरे से बने जदयू के सांगठनिक ढांचे में केसी त्यागी ओल्ड मेन आउट की तरह दिखे थे। जेडीयू ने केसी त्यागी को पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता पद से हटा दिया था। यह कहते हुए कि उन्होंने खुद जिम्मेदारी से मुक्ति मांगी थी।  तब यह चर्चा भी हुई कि जदयू के बनने से ले कर यह पहला मौका था जब केसी त्यागी को राष्ट्रीय पदाधिकारियों की टीम से बाहर कर दिया गया था। यहां तक कि वो प्रवक्ताओं तक की सूची से भी बाहर थे। लेकिन दो महीने बाद ही मई के महीने में विपक्षी एकता की मुहिम में केसी त्यागी के अनुभव का लाभ उठाने की चाह में नीतीश कुमार ने भरोसा दिखाया। जदयू नेता केसी त्यागी की समाजवादी पृष्टभूमि भी एक वजह बनी। चुंकि त्यागी समाजवादी धारा के काफी पुराने और अनुभवी नेता हैं इसलिए उनका उपयोग कर समाजवादियों को एक मंच पर लाने में मदद मिल सकती थी, विशेषतौर पर उत्तरप्रदेश और हरियाणा में। नीतीश कुमार के दिल्ली आवास पर दोनों की मुलाकात हुई थी, और वही हुआ भी। जेडीयू ने केसी त्यागी को पार्टी में विशेष सलाहकार और मुख्य प्रवक्ता का पद दे कर उनके अनुभव का सम्मान भी किया। 

नीतीश ने किसी बड़े मिशन में तो नहीं लगा दिया? 

राजनीतिक जानकारों की माने तो केसी त्यागी नीतीश की सोच को ही दिल्ली में  बढ़ाते रहे हैं। क्या कोई भी नेता पार्टी लाइन से आगे जाकर कोई बात कर सकता है और अगर करे भी तो पार्टी वाले तुरंत की इसका खंडन भी कर देते हैं और कहते हैं कि ये पार्टी लाइन से परे हटकर है। इस बयान से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। लेकिन केसी त्यागी के जिन बयानों का संदर्भ देकर मीडिया में उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता पद छोड़ने को लेकर दावा किया जा रहा है ऐसा कुछ भी जेडीयू की तरफ से देखने को नहीं मिला। सबसे बड़ा सवाल कि क्या बीजेपी त्यागी के हटने से खुश है? गौर करने वाली बात ये है कि केसी त्यागी के इस्तीफे के बाद बीजेपी के किसी बड़े नेता ने कोई बयान नहीं दिया है। ऐसे में क्या बीजेपी भी जदयू की राजनीति और नीतीश के पैंतरे पर नजर बनाए रखी है। बीजेपी को लग रहा है कि अब नीतीश कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। संभव है कि वह एनडीए से बाहर निकल सकते हैं। नीतीश कुमार आगे क्या कुछ करते हैं इसको लेकर इंडिया के लोग भी सतर्क हैं। गौर करने वाली बात ये है कि अभी चार राज्यों में चुनाव होने हैं। हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इसी महीने के अंत में यहां चुनाव होने हैं। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में भी चुनाव होने हैं। हो सकता है कि इसी साल बिहार और दिल्ली का चुनाव भी हो जाए। नीतीश कुमार ऐसा चाहते भी हैं। अटकलों का बाजार ये भी कहता है कि हो सकता है कि त्यागी को नीतीश ने कोई बड़े मिशन पर लगा दिया हो। इंडिया गठबंधन के साथ मेल-जोल करने के लिए त्यागी की भूमिका अब बढ़ गई हो? 

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