Gyan Ganga: बातचीत की शुरुआत में ही विभीषण समझ गये थे कि हनुमानजी महान संत हैं

By सुखी भारती | Jan 06, 2022

श्रीरामचरित मानस में सुंदर काण्ड की यही तो सुंदरता है कि जब दो भक्तों का मिलन गोस्वामी जी कलमबद्ध कर रहे हैं, तो दोनों भक्त इस बात पर बल नहीं दे रहे, कि उनमें से कौन बड़ा व श्रेष्ठ है। अपितु दोनों का यही बल व प्रयास है, कि उनमें से कौन अधिक अधम व निम्न है। प्रश्न उठता है कि सर्वगुण संपन्न होना तो संसार में निःसंदेह उपलब्धि माना जाता है। लेकिन क्या, सब और से गुणहीन, लाचार व असक्षम होना भी उपलब्धि है? सांसारिक दृष्टि से तो इसका उत्तर ‘न’ में ही है। लेकिन जब बात ईश्वर के दरबार की हो, तो प्रभु के दरबार में तो जीव जितना अपने स्वयंभु गुणों के मिथ्या भार से हलका होगा, उतना ही अच्छा होगा। हृदय रूपी गागर अगर पहले से ही किनारों तक भरी होगी, तो प्रभु भला उसमें कहाँ से कुछ डाल पा पायेंगे। सदैव स्मरण रखें कि प्रभु के दरबार में अगर कोई कुछ बनना चाहता है, तो उसे पता भी नहीं चलेगा, कि वह कब मिट कर माटी हो गया। और वहीं, अगर कोई भक्ति भाव में स्वयं को मिटाता है, तो यह सर्वविदित सत्य प्रमाणित है, कि उसे सर्वश्रेष्ठ बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। और दोनों भक्तों में मानों यही रस्सा-कस्सी चल रही है, कि उन दोनों भक्तों में अधिक अधम कौन है। इसी प्रवाह में बहते श्रीहनुमान जी बड़ी सुंदर बात कहते हैं-

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: सीता मैय्या से पहले विभीषण से क्यों मिले थे श्रीरामभक्त हनुमान ?

‘कहहु कवन मैं परम कुलीना।

कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।।

प्रात लेइ जो नाम हमारा।

तेहि दिन ताहि न मिले अहारा।।’


इससे बड़ा तर्क व उदाहरण भला और क्या हो सकता है कि स्वयं को नीच सिद्ध करने के लिए, कोई अपने आप को बंदर कहलाना ही स्वीकार कर ले। श्रीहनुमान जी कहते हैं, कि हे विभीषण जी! अब आप ही बताईये न, कि मेरी तो कुल भी कोई उत्तम नहीं। जाति का बंदर हूँ। और सब प्रकार से नीच भी हूँ। बात यहीं तक हो, तो फिर भी ठीक है। हमारी एक हीनता तो आपको पता ही नहीं होगी। वह हीनता यह, कि भूले से भी, अगर कोई सुबह-सुबह हम बंदरों का नाम भी उच्चारण कर ले, तो उसका दुखद व भयंकर परिणाम यह है, कि दिन भर उसे भोजन तक प्राप्त नहीं होता।


‘अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।।

कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।’


इसलिए हे सखा! सुनिए, मैं ऐसा अधम हूँ, पर श्रीरामचन्द्र जी ने तो मुझ पर भी इतनी कृपा की है, तो आप भला प्रभु को क्योंकर स्वीकार नहीं होंगे। प्रभु के गुणों का स्मरण करते-करते श्रीहनुमान के पावन नेत्रों में जल भर आया। श्रीहनुमान का हृदय है ही ऐसा, कि वे प्रभु श्रीराम जी को याद करते ही नयनों से सजल हो उठते हैं। वैसे अगर ध्यान से श्रीहनुमान जी के वचनों को हम मंथन करेंगे, तो पायेंगे, कि वे केवल श्रीविभीषण जी को ही प्रभु की भक्ति के प्रति उत्साहित नहीं कर रहे, अपितु उनके माध्यम से संपूर्ण जगत को यह आ श्भासन दे रहे हैं, कि आप कभी भी अपने मन में यह हीन भावना मत लाना कि प्रभु को मिलने के लिए, आपका कोई गुणी ज्ञानी होना आवश्यक है। अब बंदर को ही ले लीजिए न। उसकी तो कुल का भी काई ठोर ठिकाना नहीं। नीच कहा तो क्या कहा। बंदर तो बेचारा इतना नीच गिना जाता है, कि अगर किसी को उपहासवश कुछ कहना है, तो भरी सभा में उसे बंदर कह दीजिए। बस! फिर देखिए, उसकी मुखाकृति क्या करवट लेती है। बंदर शब्द ही ऐसा है, कि कुरुप से कुरुप व्यक्ति भी स्वयं को बंदर कहलाने पर उग्र प्रतिक्रिया करता है। और श्रीहनुमान जी तो ऐसे हैं, कि स्वयं को बंदर कहलाने में भी सम्मान का भाव ले रहे हैं। कारण कि उन्हें लग रहा है, कि एक कुशल वैद्य की महानता तभी तो है, जब वह उस स्तर के रोगी को ठीक कर देता है, जिसे सब ओर से असाध्य मान लिया गया था। श्रीराम जी ऐसे ही तो वैद्य हैं, जिनकी प्रभुता तो है ही इसमें, कि वे अधम से भी अधम जीवों का कल्याण कर सकते हैं। और सौभाग्य से अगर मैं, इस धरा का सबसे निम्न व अधम जीव न होता, तो भला वे क्यों मुझे अपनी शरण प्रदान करते। श्रीहनुमान जी के श्रीमुख से बह रही ज्ञान गंगा में मानो श्रीविभीषण जी नख से सिर तक भीगे जा रहे हैं। उन्हें यह तो नहीं लगा, कि हाँ, श्रीराम जी मेरे किसी न किसी गुण अथवा अवगुण के सहारे मुझे अपना ही लेंगे। लेकिन हाँ, उन्हें यह अवश्य विश्वास हो गया था, कि प्रभु और मेरे बीच में अगर श्रीहनुमान जी जैसे महान संत हैं, तो निश्चित ही प्रभु के पावन श्रीचरणों में हमारा रहना संभव हो ही जायेगा। श्रीहनुमान जी श्रीविभीषण जी की भाव तरंगों से निकल अब माता जानकी जी के संबंध में भी, श्रीविभीषण जी से सुधि लेना चाह रहे थे। श्रीविभीषण जी से श्रीहनुमान जी कहते हैं-

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: धन वैभव से भरी लंका में क्यों खुद को अकेला महसूस कर रहे थे विभीषण?

‘तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता।

देखी चहउँ जानकी माता।।’


श्रीहनुमान जी के इन शब्दों में भी गहन रहस्य व संदेश हैं। क्या हैं वे गोपनीय भाव, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।


- सुखी भारती

प्रमुख खबरें

Sports Recap 2024: इस साल खेल जगत में हुए कई विवाद, सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट से ईशान हटना तो राहुल-गोयनका कंट्रोवर्सी

कांग्रेस को अपना इतिहास याद रखना जरूरी... JP Nadda का राहुल गांधी का वार

Russian President Vladimir Putin ने अजरबैजान के विमान दुर्घटना पर मांगी माफी, बोले- दुखद था हादसा

Haryana: सेना और CRPF के शहीद जवानों के परिवारों को सीएम सैनी ने दी बड़ी राहत, अनुग्रह राशि में की बढ़ोत्तरी