प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थिति है फूलों की घाटी करती है सैलानियों का आकर्षित

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Sep 30, 2020

फूलों का सदियों से भारतीय समाज में विशेष महत्व रहा हैं। पुष्प की अभिलाषा नामक कविता में कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने जिस सुंदरता से वर्णित किया है वह फूलों के प्रति हमारे अनुराग की भावनाओं को ही व्यक्त करता हैं। देवताओं के शीश पर चढ़कर उनका श्रृंगार करते हैं और हमारी धार्मिक अभिव्यक्ति बनते हैं। गुलाब के फूल अपने रंगों से प्रेम, प्यार, दोस्ती के प्रतीक बनते हैं। फूल माला में गूंथ कर अतिथि का स्वागत करते हैं। मोगरे की लड़ी नारी की चोटी से लिपट कर श्रृंगारित करता हैं। अवसर चाहे सामाजिक हो, धार्मिक या कोई और सजावट में फूलों की सज्जा के बिना बात बनती नहीं। फूलों का महत्व, रंग-रूप, सुंदरता ही हैं कि सज्जा के लिए इन्हें विदेशों से मंगवाया जाता हैं। हाल ही में अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास कार्यकम ताजा सबूत है जब सजाने के लिए फूल विदेश से मंगवाये गये। रंगबिरंगे विभिन किस्मों के सुंदर फूल हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। फूलों की चर्चा के दौरान हम सैर करते हैं एक ऐसे स्थल की जिसे फूलों की घाटी कहा जाता है।

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भारत के अनेक खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों में फूलों की घाटी नामक स्थल अपनी भौगोलिक स्थिति, हरे भरे लंबे-चौड़े अल्पाइन घास के सुंदर मैदान, कई प्रजातियों एवं किस्मों के रंगबिरंगे फूलों से महकती हैं, जो इन दिनों सैलानियों के आकर्षण के केंद्र बनी हुई हैं। यहां लहराते, महकते, शोभा बिखरते अनेक रंगों, किस्मों, प्रकार के फूलों की यह घाटी किसी दूसरी दुनिया की सैर कराने के आभासी सम्मोहन से भरपूर हैं। यह बात अलग है कि कोरोना के माहौल में सैलानियों की आवक बहुत कम हैं। 


फूलों की नयाभिराम घाटी तीन किलोमीटर लंबी एवं आधा किलोमीटर चौड़ी है। यह उद्यान 87.50 किलोमीटर क्षेत्रफल में है। यह रमणीक घाटी नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक हिस्सा है जिसे यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने 1982 में प्राकृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर घोषित किया। हिमालय क्षेत्र पिंडर घाटी या पिंडर वेली के नाम से भी जाना जाता है। इसे देवी-देवताओं का निवास मन जाता है। पिंडर घाटी में शिवगण और देवताओं के वंशजों का आज भी यहाँ निवास मना जाता हैं। हर वर्ष माता पार्वती नन्दा देवी को हिमालय भगवान शिव के तपस्वी स्थान तक पहुँचने के लिये आते हैं जिसे नन्दा देवी यात्रा के नाम से पुकारा जाता है, प्रसिद्ध हैं।

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हर वर्ष मई माह से लेकर नवम्बर के मध्य तक हिमाच्छादित रहती है। जुलाई से अगस्त के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुड़ियों में छिपे रंग अपनी आभा बिखेरते हैं। फूलों की घाटी में प्रमुखतः पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम एवं तारक आदि किस्मों के फूल पाये जाते हैं।


प्रकृति एवं फूलों से प्रेम करने वाले एवं बागवानी में रुचि रखने वालों के लिये बता दें यहाँ करीब 500 प्रकार की प्रजातियों के फूल पाये जाते हैं। फूलों के साथ-साथ यहाँ 250 प्रजाति के पक्षी एवं 70 प्रजाति की तितलियां एवं अन्य प्राणी पाये जाते हैं।


इस खूबसूरत घाटी का सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ एवं उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने 1931 में उस समय लगाया था जब वे अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी खूबसूरती से स्मिथ इतने प्रभावित हुए कि वे 1937 में इस घाटी में वापस आये और उन्होंने “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब लिखी जिसे उन्होंने 1938 में प्रकाशित करवायी।

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घाटी का श्रृंगार करते विभिन्न किस्मों के फूलों के जादुई नज़ारे का लुफ्त उठाते सैलानी ट्रेकिंग का भरपूर आनन्द उठाते हैं। कुदरत की बेमिसाल प्राकृतिक सुंदरता का यह संसार उत्तराखंड में चमोली जिले के अंतिम बस अड्डे गोविंदघाट से करीब 275 किलोमीटर की दूरी पर है। जोशीमठ से गोविंदघाट की दूरी 19 किलोमीटर की दूरी पर है एवं यहाँ से फूलों की घाटी का प्रवेश स्थल 13 किलोमीटर दूर है। 


- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

(लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार पूर्व जॉइंट डायरेक्टर, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, राजस्थान)

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