लगातार ऑफिस के काम से थकान हो रही थी। दिल्ली में दिल भी नहीं लग रहा था। वीकेंड पर कहीं जाने की सोची तो बाहर की धूप देख कर हिम्मत ने जवाब दे दिया। दिल्ली का ये मौसम काफी अजीब है। घर से बाहर निकलने के लिए भी हजार बार सोचना पड़ता हैं। लेकिन ऑफिस से ज्यादा छुट्टियां भी नहीं मिलती कि कहीं शिमला- मनाली जाया जाए। फिर गूगल देवता की मदद ली और टाइप किया Best hill Station Near Delhi … तमाम खोजबीन के बाद एक मतलब की जगह दिखाई दी ‘मोहान’। मोहान उत्तराखंड में एक छोटी सी पहाड़ी है। जो बेहद ही खूबसूरत है। चारों तरफ घने जंगलों से घिरी हैं। रोड के किनारों पर पेड़ो के सूखे पर जब हवा लगती है औऱ वो पत्ते सरसराकर उड़ते हैं तो घने जंगल के सन्नाटे में एक अलग सा शोर मच जाता हैं। लाल पहाड़ों की चट्टानें उसपर हरे घने पड़ो की छाव में बैठने का एक अलग ही सुकून है।
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मोहान दिल्ली के बेहद नजदीक है इस लिए यहां जाने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ेगा। शुक्रवार की रात बस थोड़े से कपड़े पैक किए और अपनी धन्नों (गाड़ी) को उठाया और निकल गये। अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं तो शाम 4 बजे पुरानी दिल्ली से उत्तराखंड संपर्क क्रांति एक्सप्रेस जाती हैं वो रात 8.30 पर आपको रामनगर जिम कॉरबेट उतार देगी। रामनगर स्टेशन से मोहान की दूरी 10 से 12 किलोमीटर की है, जहां आसानी से जा सकते हैं स्टेशन के बाहर ही आपको जिप्सी और टैक्सी मिल जाएगी।
हमने अपना सफर गाड़ी से 6 घंटे में तय किया। वहां जाकर हमने एक घने जंगल में बने रिजॉर्ट को बुक किया और रात वहीं गुजारी। मोहान में दिल्ली से एक अगल बात ये थी कि जब आप आसमान की ओर देखेंगे तो आपको पूरे तारामंडल की तरह नजारा नजर आयेगा जो दिल्ली में प्रदूषण की वजह से कहीं छुप सा गया है। चमकता पूर्णिमा का चांद घने जंगल में बने रिजॉर्ट में रोशनी भर रहा था। ये रात काफी खूबसूरत थी। खुशनुमा मौसम और ये जंगल का सन्नाटा हमें दिल्ली के शोरगुल से कोसो दूर ले आया था। लग ही नहीं रहा था कि हम दिल्ली के पास भी है।
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रात बीती सुबह मोहान की खूबसूरत वादियों में हमने अंगडाई ली। सुबह चेहरे पर बारिश की बौछारें पड़ी तो अचानक आंख खुली और देखा आसमान गरज रहा था मौसम ने हमारे सफर में चार चांद लगा दिए। पहाड़ों की खास बात ये है कि यहां कभी भी बारिश हो सकती हैं। नाश्ता करने के बाद हमने जंगल में सफारी की। टाइगर का दीदार किया। दोपहर का लंच करने के बाद हम मोहन के पास बहने वाली कोसी नदी पर हमने एंजोय किया और सूरज ढलते ही हम कोसी के पास से निकल गये क्योंकि उस समय जानवर पानी पीने नदी के पास आते हैं। जो कि खतरनाक भी साबित हो सकता है। रात रिसॉर्ट लौटे और मेडिटेशन किया। यह जगह वाकई बेहद सुकून भरी और एंजोय करने वाली थी। यहां से जाने का मन नहीं था लेकिन फिर लौटने का वादा करके वापस आना पड़ा दिल्ली।
- सुषमा तिवारी