Uttar Pradesh: पूर्वांचल में बीजेपी के सहयोगियों के लिए दोस्ती का इम्तिहान, अनुप्रिया पटेल, राजभर और संजय निषाद पर सबकी नजर

By अंकित सिंह | May 22, 2024

उत्तर प्रदेश में आम चुनाव के अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही राज्य के महत्वपूर्ण पूर्वांचल की राजनीतिक क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने सहयोगियों के साथ एक बड़ी लड़ाई के लिए तैयार है। एनडीए को समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ अग्निपरीक्षा का सामना करना पड़ रहा है। पूर्वांचल, जिसमें 27 लोकसभा सीटें (छठे चरण में 14 और सातवें और अंतिम चरण में 13) शामिल हैं, एक निर्णायक युद्धक्षेत्र के रूप में उभरा है, जो अपने चुनावी महत्व और जटिल राजनीतिक और जातिगत गतिशीलता के कारण ध्यान आकर्षित कर रहा है।

 

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2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए पूर्वांचल की लड़ाई आसान नहीं थी। 2019 में यूपी में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने जो कुल 16 सीटें गंवाईं, उनमें से सात अकेले पूर्वांचल में थीं, उनमें से पांच छठे चरण में थीं। मछलीशहर सीट पर बीजेपी ने महज कुछ सौ वोटों के बेहद कम अंतर से जीत हासिल की। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए पूर्वाचल में जो सीटें नहीं जीत सका, वे थीं आज़मगढ़, अंबेडकर नगर, श्रावस्ती, लालगंज, जौनपुर, घोसी और ग़ाज़ीपुर। जबकि सपा ने आज़मगढ़ जीता, उसके तत्कालीन गठबंधन सहयोगी बसपा ने बाकी छह सीटों पर कब्जा कर लिया था।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रभावशाली कारक बने हुए हैं, जिन्हें क्षेत्र में काफी समर्थन प्राप्त है। क्षेत्र में इन दो सबसे बड़े नेताओं की मौजूदगी से भाजपा को फायदा हो सकता है, जो 2019 में जीती गई सभी सीटों को बरकरार रखने और अपनी हारी हुई सात सीटों को जीतने की कोशिश करके पूर्वांचल की लड़ाई जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पूर्वांचल की ही वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं। 

 

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इसके अलावा पूर्वांचल के चुनाव भाजपा के सहयोगियों के लिए भी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। मतदान के अंतिम चरण के करीब आने के साथ, सभी की निगाहें पूर्वांचल पर हैं, जहां अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) जैसे भाजपा के सहयोगियों पर सबकी नजर है। अंतिम दो चरण बीजेपी के लिए 'दोस्ती के इम्तिहान' है। 2014 से एनडीए की भरोसेमंद साथी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल हों या अपने बयानों से सुर्ख़ियों में रहने वाले ओम प्रकाश राजभर हों, संजय निषाद जैसे सहयोगी हों या फिर उपचुनाव हारने के बाद भी योगी मंत्रिमंडल में मंत्री बनाए गए दारा सिंह चौहान हों, सबकी परीक्षा इन्हीं दो चरणों में ही होनी है। 

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