प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना भले अभी नहीं पूरा हुआ हो, लेकिन उत्तर प्रदेश विधान परिषद जल्द ही कांग्रेस मुक्त होने जा रही है। जुलाई में उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस की स्थिति शून्य पर आकर रुक जाएगी। क्योंकि इससे नीचे गिराव संभव ही नहीं है। इससे उत्साहित बीजेपी वाले कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री के कांग्रेस मुक्त भारत वाले सपने का यह पहला कदम है। बीजेपी और विपक्ष भले ही कांग्रेस की दुर्गति से खुशी महसूस कर रहे हो, लेकिन कांग्रेस के लिए यह काफी शर्मनाक स्थिति है। कांग्रेस उसी उत्तर प्रदेश में रसातल की ओर चली गई है, जिसके बल पर उसने दशकों तक केंद्र और प्रदेश में राज किया था। कांग्रेस के पुराने दिक्कत नेता भी इस स्थिति से काफी असहज महसूस कर रहे हैं, यह और बात है कि गाँधी परिवार की चाटुकारिता के चलते मुंह खोलने से बच रहे हैं। वैसे स्थिति सपा-बसपा के लिए भी अच्छी नहीं है। इसके उलट भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा में अपना बहुमत पूरा करने का स्वर्णिम इतिहास बनाने जा रही है।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद के इतिहास में कांग्रेस का सबसे बुरा और भाजपा का सबसे अच्छा दौर सात जुलाई से प्रारंभ होगा। जब भाजपा 73 सदस्यों के साथ परिषद की लगभग दो तिहाई सीटों पर काबिज होगी। वहीं समाजवादी पार्टी भी अपने राजनीतिक इतिहास के सफर में सबसे कमजोर स्थिति में पहुंचने वाली है। वही बसपा मात्र एक सीट के साथ सबसे बुरा दौर देखेगी। बात कांग्रेस की की जाए तो कांग्रेस के एक मात्र सदस्य दीपक सिंह का जुलाई में कार्यकाल समाप्त होने के बाद परिषद में कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं रह जाएगा। गौरतलब हो, उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 13 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा के 9 और सपा के चार उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। 13 जून सोमवार को परिणाम घोषित होने के बाद विधान परिषद में भाजपा की सदस्य संख्या 66 से बढ़कर 73 हो गई है। इसमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी पहले से परिषद सदस्य थे। जबकि पांच मंत्रियों सहित भाजपा के सात नए सदस्य चुने गए है। सपा की सदस्य संख्या 11 से घटकर 9 हो गई है। भीमराव आंबेडकर बसपा के एकमात्र सदस्य बचे है, उनका कार्यकाल 5 मई 2024 तक का है। अन्य दलों की विधान परिषद में संख्या बल की बात की जाए तो रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की जनसत्ता दल लोकतांत्रिक से अक्षय प्रताप सिंह, अपना दल के आशीष पटेल, शिक्षक दल (गैर राजनीतिक दल) से सुरेश कुमार त्रिपाठी व ध्रुव कुमार त्रिपाठी और निर्दलीय समूह से राज बहादुर सिंह चंदेल व डॉ. आकाश अग्रवाल जबकि विक्रांत सिंह और अन्नपूर्णा सिंह स्थानीय निकाय क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद में निर्दलीय सदस्य है। परिषद में सात जुलाई से सपा की सदस्य संख्या मात्र 9 पर आकर सिमट जाएगी। इस वजह से समाजवादी पार्टी का विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का पद भी खतरे में पड़ जाएगा। संसदीय नियमावली के अनुसार सत्ता पक्ष के बाद दूसरे सबसे बड़े विरोधी दल की सदस्य संख्या कम से कम दस प्रतिशत होने पर ही नेता प्रतिपक्ष चुना जाता है। जबकि सपा की सदस्य संख्या 9 (नौ प्रतिशत) ही है। ऐसे में सपा से नेता प्रतिपक्ष चुना जाएगा या नहीं, इस पर संशय बरकरार है। विधान परिषद के अध्यक्ष इस पर अंतिम फैसला ले सकते हैं।
यहां यह समझ लेना भी जरूरी है कि विधान परिषद में मनोनीत कोटे की भी छह सीटें रिक्त हैं। सरकार आने वाले दिनों में इन छह सीटों पर भी अपने सदस्यों को मनोनीत करेगी। उनमें सभी सदस्य भाजपा संघ परिवार से जुड़े संगठनों से होंगे। वहीं नेता प्रतिपक्ष अहमद हसन के निधन और पूर्व एमएलसी जयवीर सिंह के विधायक निर्वाचित होने से खाली हुई दो सीटों पर उप चुनाव होना है। उप चुनाव में भी दोनों सीटें भाजपा को मिलना तय है। मनोनीत कोटे की छह और उप चुनाव की दो सीटें मिलने के बाद परिषद में भाजपा की सदस्य संख्या 81 पहुंच जाएगी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में विधान परिषद में भाजपा को करीब दो तिहाई बहुमत मिलने का रिकॉर्ड भी दर्ज होगा। वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और परिषद में नेता सदन स्वतंत्र देव सिंह के नाम भी यह रिकॉर्ड दर्ज होगा। उनके नेता सदन के कार्यकाल में पार्टी को पहली बार 81 सीटों तक पहुंचने का मौका मिलेगा। इससे भाजपा गदगद है। आने वाले समय में भाजपा अपनी स्थिति और मजबूत करना चाहती है।
- अजय कुमार