भागा भागा भागा अमेरिका दुम दबा कर काबुल से भागा

By अशोक मधुप | Aug 31, 2021

बच्चों का एक गाना है- भागा भागा भागा, वह दुम दबाकर भागा। अब यह गाना कुछ ऐसे गाया जायगा। भागा भागा भागा अमेरिका। काबुल से दुम दबाकर भागा। हेलीकॉप्टर छोड़ गया, तोप भी छोड़ गया। दोस्तों को मरने को दुश्मन को सौंप गया। भागा भागा भागा अमेरिका। काबुल से दुम दबाकर भागा।

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अमेरिकी राष्ट्रपति कितनी ही शेखी बघारें किंतु उनका अफगानिस्तान में अपने भारी हथियार, हेलीकॉप्टर गोला-बारूद छोड़कर भागना सबसे बड़ी कायरता कहीं जाएगी। यह घटना विश्व इतिहास के काले पन्नों में दर्ज होगी। आमतौर पर जवान अपना शस्त्र नहीं छोड़ते। उन्हें शस्त्र जान से प्यारा होता है। यदि उन्हें कभी शस्त्र छोड़ना पड़ता है तो वह उसका बोल्ट और मैगजीन निकाल कर इधर-उधर छुपा देते हैं ताकि दुश्मन उसका इस्तमाल ना कर सके। अमेरिका और उसके सैनिकों ने तो ये भी करना गंवारा नहीं किया। अपने हथियार आराम से दुश्मनों को सौंप दिए। दुनिया के सबसे आधुनिक हथियार उन आतंकवादियों के हाथ में दे दिए जो मानवता के सबसे बड़े दुश्मन हैं। जिनके लिए इंसान की जान की कोई कीमत नहीं। महिला की अस्मत के सम्मान से उन्हें कोई वास्ता नहीं।


अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान सेना को दिए हथियार तो तालिबान को मिले ही काबुल एयरपोर्ट पर बनाया गया सुरक्षा कवच और आधुनिक सुरक्षा प्रणाली भी मानवता के दुश्मनों के हवाले कर दी। जबकि चलने से पूर्व उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए था। रूस और अमेरिका दुनिया की सबसे बड़े ताकतवर देश माने जाते हैं। किंतु रूस यहां से 20 साल पहले अपने शस्त्र छोड़कर भागा था और अमेरिका 20 साल बाद। विश्व की सबसे बड़ी ताकत रूस और अमेरिका के तालिबान के सामने से भागने से यह साबित हो गया कि ये भले ही बड़ी ताकत हों, इन पर आधुनिक शस्त्र हों, पर लड़ने के हौसला नहीं है।


युद्ध में जवान का हौसला लड़ता है। हथियार तो बस सहायक होते हैं। हथियार वह भी अत्याधुनिक हथियार तो रूस, अमेरिका और अफगान सेना पर भी थे। रूस और अमेरिका युद्ध के मैदान से दुम दबाकर भाग गए। अफगान सेना ने बिना लड़े दुश्मन को अपने शस्त्र सौंप दिए। अमेरिका के काबुल छोड़ने के समय ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने कहा है कि अफगानिस्तान को आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने दिया जाएगा। यूएनएससी में पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे देश पर हमला करने, धमकाने या आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह देने के लिए नहीं किया जाएगा। ये प्रस्ताव तो होते रहते हैं, तालिबान इनको कब मानते हैं।

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पाकिस्तान को ही लें। वह तो संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है। वह कब उसके नियम मानता है। वह धड़ल्ले से आतंकवादियों को मदद कर रहा है। उन्हें प्रशिक्षण देने में लगा है। अब उसने पूरी दुनिया को नई चुनौती दी है। अफगानिस्तान में अभी पूरी तरह से सरकार का गठन भी नहीं हुआ कि पाकिस्तान खुलकर तालिबान के समर्थन में आ गया। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोहम्मद यूसुफ ने तो पूरी दुनिया को खुली धमकी देकर अपने को अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का पक्का हमदर्द साबित कर दिया है। एक इंटरव्यू में युसूफ ने कहा है पाकिस्तान चाहता है कि दुनिया के देश जल्द से जल्द अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता दें। अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे सामने 9/ 11 का खतरा है। ज्ञातव्य है कि अमेरिका में 2001 में 11 सितंबर को आतंकवादियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर उसे तहस नहस कर दिया था। ओसामा बिन लादेन को इस घटना का मास्टरमाइंड बताया गया था। पाकिस्तान के बयान से साफ जाहिर होता है कि वह तालिबान को बता रहा है जो देश उनकी सरकार को मान्यता नहीं दे, उनके खिलाफ वह अमेरिका के ट्रेड सेंटर पर हुए हमले जैसी घटनाओं को अंजाम दे। उसे ऐसा करने को उकसा रहा है।


उधर सरकार बनी नहीं कि तालिबान ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। कई प्रांतों में महिलाओं और बच्चों पर जुल्म किए जा रहे हैं। अब दयाकुंडी प्रांत के खादिर जिले में हजारा समुदाय के 14 लोगों को गोली मारकर हत्या कर दी गई। मारे गए लोगों में 12 सैनिक शामिल हैं, जिन्होंने कथित तौर पर आत्मसमर्पण किया था। इनमें से दो नागरिक भी हैं। मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि एक महीने बाद तालिबान ने हजारा अल्पसंख्यक के नौ लोगों को प्रताड़ित किया और मार डाला और गजनी प्रांत में उनके घरों को लूट लिया। जो भी हो तालिबान ने भारत से सम्बंध रखने में अपनी इच्छा जताई है। पाकिस्तान या चीन उन्हें कितना ही भड़कायें, वह जानते हैं कि भारत ने अफगानिस्तान के विकास के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किये हैं। भारत प्रतिवर्ष हजारों अफगानी युवाओं को डॉक्टर, इंजीनियर बना रहा है तो सेना की ट्रेनिंग भी दे रहा है। जितनी भारत को अफ़ग़ानिस्तान की जरूरत है, उतनी ही अफगानिस्तान को भारत की। पाकिस्तान खुद भूखा नँगा है आज। उसके पास उसे देने को कुछ नहीं है। चीन का भरोसा नहीं किया जा सकता।


-अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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