उत्तर प्रदेश सरकार को घेरने के लिए मुद्दे तो कई हैं, लेकिन विपक्ष जैसे सोया हुआ है

By अजय कुमार | Jun 03, 2019

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों दो बड़ी घटनाएं हुईं। एक राजधानी लखनऊ से लगे जिला बाराबंकी में जहरीली शराब पीने से करीब दो दर्जन लोगों की मौत तो दूसरी घटना यूपी लोक सेवा आयोग द्वारा कराई जाने वाले भर्ती परीक्षाओं में सेंधमारी से जुड़ी थी। जिसके चलते आयोग की परीक्षा नियंत्रक को गिरफ्तार करके भले जेल भेज दिया गया, लेकिन न जाने कितने छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया होगा। उधर, जहरीली शराब पीने से हुई मौतों के बाद इस काण्ड के मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। वहीं आबकारी और पुलिस विभाग के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई भी हुई, लेकिन समझने वाली बात यह है कि प्रदेश में जहरीली शराब पीने से कोई पहली बार लोग मौत के मुंह में नहीं गए हैं। सरकारें बदलती रही हैं लेकिन जहरीली शराब का कहर जारी रहता है। इसी साल फरवरी के महीने में ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जहरीली शराब से 72 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश यादव की सरकार थी तब भी लखनऊ से सटे मलीहाबाद और उन्नाव में भी 30 से ज्यादा लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हो गई थी।

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बात सपा सरकार के समय दर्जनों भर्तियों में धांधली की कि जाए तो यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का दामन कभी भी साफ नहीं हो सका था। इस बीच पेपर लीक के नए मामले ने इसकी छवि को और धूमिल कर दिया है। लगातार पेपर लीक होने से जहां आयोग कटघरे में है, वहीं प्रतियोगी छात्रों में भी गुस्सा लगातार बढ़ा रहा है। परीक्षाओं में धांधली और पेपर लीक के बाद भी कड़ी कार्रवाई न होने से प्रतियोगी छात्रों का मनोबल टूट रहा है। अपने भविष्य को लेकर सशंकित प्रतियोगी छात्र अब वर्तमान सचिव और परीक्षा नियंत्रक के कार्यकाल में हुई सभी भर्तियों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही पेपर लीक से जुड़े सभी मामलों की जांच सीबीआई से चाहते हैं।

 

गौरतलब है कि 2015 में पीसीएस जैसी परीक्षा का पेपर परीक्षा के कुछ घंटे पहले ही लीक हो गया था। आयोग ने 10 मई को प्रथम प्रश्न पत्र की परीक्षा दोबारा कराई। यह आयोग की सबसे विवादित परीक्षाओं में एक मानी जाती है। पेपर लीक मामले की एफआईआर लखनऊ के कृष्णानगर थाने में दर्ज करवाई गई थी। 27 नवम्बर 2016 को आरओ−एआरओ का पेपर परीक्षा से पहले ही वॉट्सऐप पर लीक हो गया था। आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने साक्ष्य सहित हजरतगंज थाने में एफआईआर के लिए तहरीर दी, हालांकि रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। बाद में 7 जनवरी 2017 को कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई।

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इसी प्रकार पीसीएस 2017 मेंस का पेपर भी प्रयागराज के जीआईसी सेंटर पर लीक हो गया था। परीक्षा केंद्र पर गलत प्रश्न पत्र पहुंचने के मामले में आयोग ने बाद में कालेज को अगले 3 साल के लिए आयोग की सभी परीक्षाओं के लिए केंद्र न बनाने का फैसला लिया। केंद्र पर तैनात रहे करीब 36 कक्ष निरीक्षकों और केंद्र व्यवस्थापक को भी 3 साल के लिए आयोग की सभी परीक्षाओं से डिबार कर दिया गया। आयोग ने पीसीएस मेंस 2017 परीक्षा के प्रश्न पत्र छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस को 2 वर्ष के लिए प्रतिबंधित कर दिया।

 

उक्त दो घटनाओं का एक दुखद पहलू यह है कि दोनों ही मामलों में सियासतदार मौन साधे रहे। सपा हो या बसपा अथवा कांग्रेस सभी दलों के नेताओं ने बयान देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली, अगर कहीं कोई विरोध हुआ भी तो वह ऐसा नहीं था जो सुर्खियां बटोर पाता, जबकि इस लापरवाही के लिए योगी सरकार को वह मजबूती के साथ कटघरे में खड़ा कर सकते थे। शायद मौसम चुनावी होता तो यह 'आग' सुलग जाती, लेकिन अभी तीन साल बाद यूपी में चुनाव होने हैं। इसीलिए विरोधियों ने इसके लिए पसीना बहाना उचित नहीं समझा।

 

कांग्रेस महासचिव तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर ट्वीट करके परीक्षा का पेपर लीक होने पर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा है। यूपीपीएससी की एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती में पेपर लीक होने के मामले के बाद परीक्षा नियंत्रक की गिरफ्तारी को लेकर प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि युवा ठगे जा रहे हैं, लेकिन बीजेपी सरकार कमीशनखोरों के हित साधने में मस्त है।

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कांग्रेस महासचिव ने ट्वीट किया कि यूपीपीएससी के पेपर छापने का ठेका एक डिफाल्टर को दिया गया। आयोग के कुछ अधिकारियों ने डिफाल्टर के साथ सांठ−गांठ करके पूरी परीक्षा को कमीशन−घूसखोरी की भेंट चढ़ा दिया। योगी आदित्यनाथ सरकार की नाक के नीचे युवा ठगा जा रहा है, लेकिन यूपी सरकार डिफाल्टर और कमीशनखोरों का हित देखने में मस्त है। वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बयान जारी करके आरोप लगाया है कि लोकसभा चुनाव खत्म होते ही राज्य अराजकता की भेंट चढ़ गया, जहरीली शराब से मौत का सिलसिला जारी है। वहीं कानून व्यवस्था के हालात बद से बदत्तर हैं। योगी जी ने दावा किया था कि अपराधी प्रदेश छोड़कर चले जाएंगे, ऐसा हो नहीं रहा है। लब्बोलुआब यह है कि तमाम दलों के नेता बिना सिर−पैर के मुद्दों को तो हवा देते रहते हैं, लेकिन जब जमीनी स्तर से जुड़े मसले सामने आते हैं तो वह इसके खिलाफ पूरी ताकत से खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।

 

-अजय कुमार

 

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