By अनन्या मिश्रा | Nov 18, 2024
मध्य प्रदेश और देश की राजनीति में अहम किरदार रखने वाले कमलनाथ आज यानी की 17 नवंबर को अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं। सियासी समझ और मेहनत के दम पर कमलनाथ ने सियासत की ऊंचाइयों को छुआ। कांग्रेस के वनवास को खत्म कर मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने सत्ता स्थापित कर लंबे समय तक छिंदवाड़ा को कांग्रेस का गढ़ बनाया। उस दौर में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कानपुर से निकला यह शख्स एक दिन एमपी की सत्ता पर काबिज होगा।
जन्म और परिवार
कानपुर के खलासी लाइन में 18 नवंबर 1946 को कमलनाथ का जन्म हुआ था। उनकी शुरूआती शिक्षा कानपुर से पूरी हुई। दरअसल, उनके पिता महेंद्र नाथ और लीला नाथ उनको वकील बनाना चाहते थे। लेकिन कमलनाथ के मन में कुछ और ही चल रहा था। कमलनाथ का बचपन कानपुर में बीता और युवावस्था पश्चिम बंगाल के कोलकाता में बिताया।
राजनीतिक सफर
साल 1976 में वह राजनीति में उतरे और उनको उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का प्रभार मिला। फिर साल 1979 में कमलनाथ पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए। फिर साल 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वह लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद साल 2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़वाया। इस दौरान नकुलनाथ ने चुनाव जीता और संसद में भेजा। हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ को हार मिली।
कांग्रेस का तीसरा बेटा बने कमलनाथ
बता दें कि 34 साल की उम्र में सांसद बनने वाले कमलनाथ अब तक 9 बार सांसद रह चुके हैं। उन्होंने अलग-अलग पड़ाव पर कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया। आप कांग्रेस में कमलनाथ के कद का अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि उनको पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का तीसरा बेटा माना गया। 80 के दशक में नारा लगता था कि 'इंदिरा गांधी के दो हाथ संजय गांधी और कमलनाथ।'
कमलनाथ बने मुख्यमंत्री
गांधी परिवार के प्रति कमलनाथ की वफादारी उनको सियासत की ऊंचाइयों पर ले गई। लेकिन सत्ता मोह के कारण कमलनाथ ने कांग्रेस को मध्यप्रदेश में डुबो दिया। कांग्रेस ने कमलनाथ को जिस प्रदेश का सर्वेसर्वा बनाया, उसी इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे यानी की कमलनाथ ने राज्य में कांग्रेस को गर्त में पहुंचा दिया। 13 साल की लंबी तपस्या के बाद कांग्रेस ने सामूहिक प्रयास से मध्यप्रदेश में सत्ता हासिल की थी। इस दौरान कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का इसमें अहम रोल रहा। चुनाव में जीत मिलने के बाद सीएम पद को लेकर कमलनाथ में ठन गई और कांग्रेस से मजबूत संबंधों के चलते कमलनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे।
सत्ता के मोह ने गंवाई कुर्सी
मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनका सत्तामोह नहीं गया। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी बने रहे और राज्य में पावर सेंटर बन गए। लेकिन यह ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं भाया और उन्होंने अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। जिसके कारण राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई और सिंधिया की सहायता से शिवराज एमपी के सीएम बन गए। राज्य में सत्ता जाते ही कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस पतन की ओर बढ़ती गई।
विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार
साल 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ के भरोसे कांग्रेस मध्यप्रदेश में उतरी थी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कांग्रेस सियासी मुद्दों को नहीं भुना पाई। वहीं साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को ज्यादा नहीं लेकिन कम से कम एक सीट छिंदवाड़ा से उम्मीद थी। लेकिन कांग्रेस की रही सही उम्मीद चली गई और कमलनाथ का गढ़ रही छिंदवाड़ा सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई और इस तरह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथ जीरो बटा सन्नाटा आया।