1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाले सैम मानेकशॉ की अनसुनी कहानी

By अभिनय आकाश | Jun 27, 2022

रौबिली मूंछ, हर बात में तपाक से स्मार्ट सा जवाब देने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जिन्हें आप सैम मानेकशॉ के नाम से जानते हैं। जिन्होंने पाकिस्तान को इतनी करारी शिकस्त दी थी कि डेढ़ दशक तक वो चूं भी नहीं कर पाया था। जनरल मानेकशॉ जैसा सेना प्रमुख हिन्दुस्तान तो क्या दुनिया में कहीं नहीं है।  देश की आजादी के बाद अभी तक शौर्य और साहस की जितनी कहानियां सुनी और सुनाई जाती हैं, उनमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की वीरगाथा सबसे अलग है।


सैम मानेकशाॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा। अमृतसर में पला-बढ़ा एक पारसी बच्चा पापा की तरह एक डॉक्टर बनना चाहता था। इसलिए वो लंदन जाना चाहता था क्योंकि उसके दो भाई पहले से वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। पापा ने कहा कि तुम अभी छोटे हो इस बात से गुस्सा होकर सैम ने इंडियन मिलिट्री में शामिल होने के लिए फॉर्म भर दिया। उसका चयन भी हो गया, मेरिट लिस्ट में छठे नंबर पर। यहां से शुरू हुआ सैम का करियर दूसरे वर्ल्ड वॉर से लेकर भारत की आजादी, बंटवारा, भारत चीन युद्ध के बाद भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद खत्म हुआ।

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1942 में बर्मा में जापानियों के खिलाफ सितांग ब्रिज की लड़ाई में सैम मानेकशॉ को नौ गोली लगी थी। सैम की मृत्यु हो जाती यदि उसके वफादार सिख अर्दली सिपाही शेर सिंह ने उन्हें उठाकर डॉक्टर के पास ले जाकर उसे इलाज के लिए मजबूर न किया होता। ऑस्ट्रेलियाई सर्जन ने शुरू में सैम का ऑपरेशन करने से मना कर दिया था, क्योंकि उसके बचने की संभावना बहुत कम थी। ये देख एक सैनिक ने डॉक्टर पर रायफल तान दी और कहा, 'मेरे साब का हुक्म है जब तक जान बाकी है तब तक लड़ो। यदि तुमने इनका इलाज नहीं किया तो मैं तुम्हे गोली मार दूंगा।' जान जाती देख डॉक्टर ने इलाज शुरू किया। जब सैम को होश आ गया, सर्जन ने पूछा कि उन्हें क्या हुआ था, तो सैम ने उत्तर दिया, एक खूनी खच्चर ने मुझे लात मार दी थी।


फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ या 'सैम बहादुर एक बेजोड़ व्यक्तित्व थे और उनकी वीरता हर किसी को प्रभावित करती है। 40 साल से अधिक के करियर में मानेकशॉ ने पांच युद्ध देखे। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने कई लड़ाईंयां लड़ीं लेकिन केवल एक ही निर्णायक था जो पाकिस्तान के खिलाफ 1971 का युद्ध था। अंजाम ये रहा कि 16 दिसंबर 1971 पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा और पाकिस्तान का नक्शा ही बदल गया। मानेकशॉ के व्यक्तित्व में आत्मविश्वास और वीरता का मेल था। वे स्वतंत्र भारत के बेहतरीन सैन्य अफसर में से एक थे।


- अभिनय आकाश

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