उस दिन अखबार पढ़ते समय बटुक जी की पैथोलॉजी लैब का रंगबिरंगा पर्चा गोद में आ गिरा। अमूमन ऐसे पर्चों को बिना पढ़े ही डस्टबिन के हवाले कर देने की अनेक बुद्धिजीवियों की तरह मेरी भी आदत है। चूँकि यह पर्चा बटुक जी का था अतएव बिना देखे नहीं रह सका। बड़े-बड़े अक्षरों में लुभावना ऑफर था- एक हजार रुपए में नेताओं के तीन सौ प्रकार के ब्लड टेस्ट। आलाकमान के कम्पाउण्ड में आकर सेम्पल लेने की सुविधा। विज्ञापन देख कर चौंकना स्वाभाविक था सो इतनी जोर से चौंका कि किचन से श्रीमती जी बाहर निकल आईं और लगीं पीठ सहलाने। मैं अधिक देर तक श्रीमती जी से यह सेवा नहीं ले सकता था सो अब ठीक हूँ कह कर पल्ला झाड़ लिया, पर सोचना फिर भी चालू रहा। जितना आश्चर्य मुझे ब्लड-टेस्ट के प्रकारों की संख्या को लेकर था उससे कहीं अधिक इस ऑफर की परिधि में केवल नेताओं को रखने को लेकर भी था। मेरे आश्चर्य और जिज्ञासा को केवल बटुक जी ही शांत कर सकते थे सो शाम को मैं उनके क्लीनिक पर जा पहुँचा।
सभी टेक्नीशियन बहुत व्यस्त थे, यहाँ तक कि बटुक जी ने भी पंद्रह मिनट बाद मेरी ओर सिर उठा कर देखा, पूछा- "सब खैरियत तो है।"
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मैंने हाँ में सिर हिलाया। कहा- "कुछ जानने आया हूँ।"
"शीघ्र बोलो"- बटुक जी रिपोर्ट्स पर सिग्नेचर करते हुए बोले।
"इतने सारे ब्लड-टेस्ट्स के बारे में पहले कभी नहीं सुना और फिर ये सभी टेस्ट्स केवल नेताओं के लिए-- जबसे आपका पर्चा देखा है दिमाग घूम रहा है"
वह हँसे- "हमने बहुत परिश्रम और शोध करके कुछ नए टेस्ट्स ईजाद किए हैं जो नेताओं के लिए बहुत जरूरी हैं, कुछ दिनों में चुनाव होने वाले हैं तो सभी पार्टियों की ओर से इन टेस्ट्स की भारी डिमांड आ रही है"।
मैं उनकी ओर विस्मय से देखने लगा। बटुक जी मेरी अज्ञानता-मिश्रित मजबूरी को भाँप गए, बोले- "भाई, पचास एम.एल. ब्लड लेकर हम नेताओं के तीन सौ प्रकार के टेस्ट्स करते हैं। सबसे पहले हम पार्टी के प्रति निष्ठा, समर्पण, विश्वसनीयता और पदलोलुपता का टेस्ट करते हैं। इनमें फेल हो जाने पर हम ब्लड का फर्दर एनालिसिस करते हैं। टिकट नहीं मिलने की स्थिति में खून सफेद होने की गति मापते हैं। इससे पार्टी से मोह भंग होने में लगने वाले समय का सही-सही आकलन हो जाता है। पद की लालसा में पार्टी में आने पर लेकिन पद न मिल पाने की स्थिति में कितने खून के घूँट पीने की क्षमता है, हम यह भी अपनी गुप्त रिपोर्ट में हाईकमान को बताते हैं। अपने ही सीनियर नेताओं से गालियाँ खाने और विरोधियों के झूठे आरोपों पर खून खौलने और तापमान बढ़ने का ग्राफिकल-आब्जरवेशन भी हमारे इन टेस्ट्स में शामिल है।"
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बटुक जी थोड़ी देर रुके फिर पानी पीकर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले- "एक अन्य टेस्ट में हम खून सूखने की दर एवं परिस्थिति का पता करते हैं। इस टेस्ट से हमें ज्ञात हो जाता है कि किस नेता का खून ईडी के छापों के भय से और किस नेता का खून सीबीआई या विजिलेंस के नाम से सूखता है। इस टेस्ट के रिजल्ट से पार्टियों को अपने खुद के नेताओं को वश में रखना और विरोधियों के नेताओं को तोड़ना आसान हो जाता है।"
"आप महान हैं बटुक जी"- मैं मन ही मन बुदबुदाया- "मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप राजनीति को साफ बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं या दूषित करने के लिए।
- अरुण अर्णव खरे