ग्राउंड जीरो पर बाल कल्याण क्षेत्र में ‘यूनिसेफ’ की भूमिका बेहतरीन

By डॉ. रमेश ठाकुर | Dec 11, 2024

बाल कल्याण की बात हो या उनके अधिकारों की रक्षा, दोनों में प्रहरी की भूमिका निभाती है ‘यूनिसेफ’। इसलिए यूनिसेफ का नाम सुनते ही मन-मस्तिष्क में बच्चे ईद गिर्द घूमने लगते हैं। साथ ही उनकी समस्याओं और सुधारी प्रयासों का जिक्र भी होने लगता है। आज ‘विश्व यूनिसेफ दिवस’ है। एक ऐसी संस्था जो संसार के 190 देशों के बेहद दुर्गम स्थानों पर पहुंचकर कर बच्चों के अधिकारों की हिमायत के लिए मजबूती से लड़ती है। बाल कल्याण की सुविधाएं विश्व के प्रत्येक जरूरतमंद, कमजोर और वंचित बच्चों तक पहुंचे, इसलिए लिए यूनिसेफ की टीमें चौबीसों घंटों ग्रांउड जीरो पर तैनात रहती हैं। यूनिसेफ़ का मतलब होता है ‘संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष’ जिसका आरंभ 11 दिसंबर, 1946 को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ द्वारा किया गया था। शुरूआती वक्त में संस्थान में मात्र 43 देश शामिल हुए थे, लेकिन कुछ वर्षों बाद ये संख्या 100 पार कर गई। पर, आज इस संस्था में 190 मुल्क जुड़े हैं। संख्या में धीरे-धीरे इजाफा हो रहा है। यूनिसेफ के 5 लाख प्रतिनिधि इस समय पूरे संसार में कार्यरत हैं। वहीं, भारत में 18 हजार के करीब वर्कर दुर्गम स्थानों पर बाल कल्याण के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। बाल तस्करी की रोकथाम में इनकी अगल से टीमें कार्य करती हैं।

 

हिंदुस्तान में रोजाना करीब 69,000 बच्चे पैदा होते हैं। उन सभी नौनिहालों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और बाल संरक्षण में यूनिसेफ इंडिया बेहतरीन कदम उठाने को संकल्पित होता है। मौजूदा समय में यूनिसेफ की टीमें युद्धग्रस्त यूक्रेन-रूस, ईरान-इराक, अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में अधिकांश जुटी हैं। वहां अभावग्रस्त बच्चों की परवरिश करने के अलावा उनकी शिक्षा-स्वास्थ्य में लगे हैं। वैसे देखा जाए तो, विश्व को यूनिसेफ़ की कार्यशैली द्वितीय विश्व युद्व के दौरान तब ज्यादा दिखी, जब इनके योद्वाओं ने बिना अपनी जान की परवाह किए युद्ध से आहत, असहाय, बेघर बच्चों को जरूरती सामानों की आपूर्ति, विभिन्न किस्म की सहायताएं और स्वास्थ्य में सुधार के अभियानों को चलाया। जैसे-जैसे समय बदला, यूनिसेफ़ ने अपनी कार्यशैली में और बदलाव किए। पहले इनका काम सिर्फ बाल अधिकारों की रक्षा के लिए जाना जाता था। लेकिन उसके बाद बच्चों के बेहतर जीवन को बनाने का भी जिम्मा इन्होंने अपने कंधों पर उठा लिया। फिलहाल वक्त में, यूनिसेफ की टीमें माताओं और नवजात शिशुओं के लिए एचआईवी की रोकथाम और उपचार, पर्याप्त पानी, स्वच्छ वातावरण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास, बाल स्वास्थ्य व पोषण जैसे क्षेत्रों में भी कार्यरत हैं।

इसे भी पढ़ें: World Human Rights Day 2024: मानवता के लिए सार्थक बने मानवाधिकार दिवस

भारत के नजरिए से यूनिसेफ़ को देखें, तो वर्ष-1949 में मात्र तीन सदस्यीय स्टाफ़ ने हमारे यहां काम आरंभ किया। लेकिन सन् 1952 में दिल्ली में अपना एक कार्यालय स्थापित किया। वर्तमान में, समूचे भारत में इनके 16 राज्यों में कार्यालय हैं। जहाँ ये बच्चों के अधिकारों की हिमायत करते हैं। भारत में इनका प्रतिनिधित्व सिंथिया मैककैफ्रे करती हैं जिनकी नियुक्ति अक्टूबर 2022 में हुई थी। भारत सरकार अपने बजट से बड़ी रकम इनको सालाना आंवटित करती है। ताकि हमारे यहां दुगर्म क्षेत्रों में रहने वाले वो बच्चे भी इनके जरिए शिक्षा की मुख्य धारा से जुड़ सकें, जो सरकार की नजरों से छूट जाते हैं। यूनिसेफ का मुख्यालय, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित है। संस्था का उदेश्य संसार भर के बच्चों को सुगम जीवन जीने, उन्हें आगे बढ़ाने और अपनी क्षमता का विकास कराने का अधिकार मुहैया कराना होता है। वर्ष 2021 में भारत में यूनिसेफ की सेवाओं के 75 वर्ष पूरे हुए। तब, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यूनिसेफ और भारत के सहयोग के साक्षा प्रयासों की सराहना की।

 

भारतीय हुकूमत भी चाहती है कि प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य चंगा हो, सुरक्षा और खुशहाली मिले, इसके लिए वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती। यूनिसेफ के लोग इस बात को विभिन्न वैश्विक मंचों पर कई मर्तबा कह भी चुके हैं कि उन्हें भारत सरकार से सदैव भरपूर सहयोग मिला। 2018 में यूनिसेफ ने ’एवेरी चाइल्ड अलाइव’ नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान शुरू किया था जिसके अनुसार प्रत्येक मां और नवजात शिशु के लिए सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग और उनकी आपूर्ति करने के लिए प्रयासों का श्रीगणेश करना था। उस अभियान ने जबरदस्त सफलता हासिल की। यूनिसेफ के इस समय 150 देशों में कार्यालय, 34 राष्ट्रीय समितियां हैं जो मेजबान सरकारों के साथ विकसित कार्यक्रमों के माध्यम से अपने मिशन को आगे बढ़ाते हैं।


यूनिसेफ को सार्वजनिक क्षेत्र के तीन सबसे बड़े भागीदार संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और विश्व बैंक अधिकांश पैसा देते हैं।  बीते दो दशकों में, विश्व भर में बच्चों के जीवित रहने के दर में बहुत अधिक वृद्धि देखी गई। 2016 में दुनियाभर में, अपने 5वें जन्मदिन से पहले मर जाने वाले बच्चों की संख्या आधी होकर 56 लाख तक रह गई। इसके बावजूद, नवजात शिशुओं के लिए प्रगति धीमी रही है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु में, जन्म के पहले महीने में ही मर जाने वाले शिशुओं की संख्या 46 प्रतिशत है। जागरूकता के चलते इन आंकड़ों में अब सुधार हुआ है। यूनिसेफ के ऐसे प्रयास निरंतर जारी हैं, इसमें आम जनों को भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकारी-सामाजिक के संयुक्त प्रयासों से अभियान को न सिर्फ संबल मिलेगा, बल्कि और तेज गति भी प्रदान होगी।


- डॉ. रमेश ठाकुर

सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!

प्रमुख खबरें

Prabhasakshi NewsRoom: PM Modi Mauritius Visit क्यों है इतनी खास? ऐसा क्या है जो दुनिया की नजरें इस यात्रा पर लगी हुई हैं?

तलाक के खबरों के बीच गोविंदा ने कहा- मन तो करता है खुद को शीशे में देखकर थप्पड़ मारुं, बॉलीवुड ने मेरे खिलाफ साजिशें रची हैं

PM Modi Mauritius Visit: भारतीय पीएम पहुंचे मॉरीशस, हुआ ग्रांड वेलकम, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने 24 कैबिनेट मंत्रियों के सामने लगाया गले

Dream Astrology: सपने में खुद को झाड़ू लगाते देखना शुभ या अशुभ, जानिए क्या कहता है स्वप्न शास्त्र