United Nations महासभा ने यूक्रेन को लेकर गैर बाध्यकारी प्रस्ताव पारित किया, भारत मतदान से दूर रहा

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 24, 2023

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रूस से यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने और अपनी सेना को वापस बुलाने की मांग करने वाला गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव बृहस्पतिवार को पारित कर दिया और भारत ने इस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया। इस प्रस्ताव में ‘‘व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति’’ तक पहुंचने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। भारत ने सवाल किया कि क्या युद्ध के एक साल बाद भी दुनिया ऐसे ‘‘संभावित समाधान के थोड़ा भी करीब’’ पहुंची जो रूस और यूक्रेन दोनों को स्वीकार्य होता। भारत उन 32 देशों में शामिल रहा, जिन्होंने 193 सदस्यीय महासभा में प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया। महासभा ने बृहस्पतिवार को यूक्रेन और उसके समर्थकों द्वारा पेश किए गए ‘यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति को रेखांकित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांत’ प्रस्ताव को अपनाया। प्रस्ताव के पक्ष में 141 और विरोध में सात मत पड़े।

प्रस्ताव में ‘‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों के अनुरूप यूक्रेन में जल्द से जल्द, एक व्यापक, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति तक पहुंचने की आवश्यकता’’ को रेखांकित किया गया। प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद वोट की व्याख्या के दौरान संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि महासभा यूक्रेन संघर्ष के एक वर्ष को रेखांकित करती है, तो ‘‘यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम खुद से कुछ प्रासंगिक प्रश्न पूछें।’’ कंबोज ने कहा, ‘‘क्या हम दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य संभावित समाधान के करीब हैं? क्या कोई भी ऐसी प्रक्रिया जिसमें दोनों पक्षों में से कोई भी शामिल नहीं है, हमें एक विश्वसनीय और सार्थक समाधान की ओर ले जाती है? क्या संयुक्त राष्ट्र प्रणाली और विशेष रूप से इसका प्रमुख अंग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में अप्रभावी नहीं हो गया है?’’

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत यूक्रेन की स्थिति पर चिंतित है। उन्होंने कहा कि संघर्ष के परिणामस्वरूप अनगिनत लोगों की जान गई है, लाखों लोग बेघर हो गए हैं और वे पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं। कंबोज ने कहा कि आम नागरिकों और असैन्य बुनियादी ढांचे पर हमलों की खबरें भी बहुत चिंताजनक हैं। प्रस्ताव में सदस्य राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से चार्टर के अनुरूप यूक्रेन में एक व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति प्राप्त करने के लिए राजनयिक प्रयासों के लिए समर्थन को दोगुना करने का आह्वान किया गया। कंबोज ने दोहराया कि भारत बहुपक्षवाद के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को मानता है। उन्होंने कहा, ‘‘हम एकमात्र व्यवहार्य तरीके के रूप में हमेशा बातचीत और कूटनीति का आह्वान करेंगे।

आज के प्रस्ताव के घोषित उद्देश्यों पर गौर करते हुए स्थायी शांति हासिल करने के अपने वांछित लक्ष्य तक पहुंचने में इसकी अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए हम इससे दूरी बनाए रहने पर विवश हैं।’’ महासभा के प्रस्ताव सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के विपरीत बाध्यकारी नहीं हैं और संयुक्त राष्ट्र में मुख्य रूप से प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं। रूस के 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से महासभा, सुरक्षा परिषद और मानवाधिकार परिषद में संयुक्त राष्ट्र के कई प्रस्तावों में आक्रमण की निंदा की गई है और यूक्रेन की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया है। यूक्रेन पर आपातकालीन विशेष सत्र में महासभा पिछले एक साल में छह बार बैठक कर चुकी है। भारत के रूस के साथ अच्छे संबंध हैं और वह यूक्रेन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से दूर रहा है लेकिन उसने लगातार संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और राष्ट्रों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

भारत ने यह भी आग्रह किया है कि शत्रुता को तत्काल समाप्त करने और बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर तत्काल वापसी के लिए सभी प्रयास किए जाएं। कंबोज ने कहा कि भारत ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि मानव जीवन की कीमत पर कभी भी कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता। उन्होंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान को दोहराया जिसमें उन्होंने कहा था कि यह युद्ध की ‘‘पुनरावृत्ति’’ का समय नहीं हो सकता। उन्होंने रेखांकित किया कि शत्रुता और हिंसा का बढ़ना किसी के हित में नहीं है। भारतीय दूत ने कहा, ‘‘इसके बजाय बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर तत्काल वापसी आगे का रास्ता है।’’ मसौदा प्रस्ताव को मतदान के लिए रखे जाने से पहले महासभा ने बेलारूस द्वारा प्रस्तावित दो संशोधनों पर भी विचार किया। भारत इन दोनों संशोधनों पर चर्चा से भी दूर रहा।

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