2015 का अधूरा सपना, 2020 में होगा अपना, बीजेपी के लिए नीतीश नाम केवलम, चिराग नाम मंगलम!

By अभिनय आकाश | Oct 08, 2020

''कङ्करियां जिनकी सेज सुघर,छाया देता केवल अंबर,विपदाएं दूध पिलाती है,लोरी विधियां सुनाती हैं। जो लाक्षागृह में जलते हैं,वे ही शूरमा निकलते हैं।''

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की अमर रचना रश्मिरथी की यह पंक्तियां महाभारत के परिपेक्ष्य में थी, जिसके छंद आज के संदर्भ में प्रासंगिक हैं। बिहार का चुनावी रण शुरू हो चुका है। अब इसमें जो जीतेगा वही सूरमा कहलायेगा। यूं तो बिहार की भूमि का हमेशा से सियासत के नए दांव-पेज की प्रयोगशाला बनना आम रहा है, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केंद्र और प्रदेश दोनों ही जगह पर विराजमान है। इसलिए जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का ज्यादा फोकस इन्हीं के ऊपर है। तमाम तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, दावा किए जा रहे हैं और पर्दे के पीछे चल रहे दांव-पेंच की सुगबुगाहटें भी चर्चा-ए-आम बनी है। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे बिहार के सियासी रण में बीजेपी और जेडीयू के साथ रहकर भी दूरी की बात कही जा रही है और चिराग पासवान के अलग होकर भी बीजेपी के वजीर के रूप में इस्तेमाल होने के दावे किए जा रहे हैं। 

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इस पूरे खेल को समझने के लिए सबसे पहले आपको हालिया घटित कुछ घटनाक्रम के बारे में बताते हैं। चिराग का हर दिन नीतीश पर हमलावर रहना तो अब आम हो गया है। लेकिन इन सबमें सबसे दिलचस्प पीएम मोदी के पोस्टर का एलजेपी के प्रयोग की बात को लेकर रही। बिहार की सियासत को करीब से जानने वाले एक पत्रकार के अनुसार चिराग को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच खटास यहां तक पहुंच गई कि नीतीश कुमार ने एनडीए की साझा प्रेस वार्ता में जाने से इनकार तक कर दिया था और बीजेपी महासचिव भूपेंद्र यादव को दो टूक कहा भी कि ये सब जो रहा है वो सही नहीं है। डैमेज कंट्रोल में जुटी बीजेपी ने पहले तो प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के माध्यम से साफ संदेश दिलवाया कि कोई भी दल पार्टी के किसी अन्य स्टार प्रचारक या प्रधानमंत्री मोदी के पोस्टर का इस्तेमाल नहीं करेगा। अगर वो ऐसा करता पाया जाएगा तो पार्टी इस मामले में सख्त कार्रवाई करेगी। 

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इस बयान के बाद लगेगा कि बिहार में नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी बहुत प्रोटेक्टिव है और उनको किसी भी सूरत में नाराज नहीं करना चाहती। अब आपको इस घटनाक्रम से थोड़ा आगे लिए चलते हैं। नीतीश के तीर को तोड़ने के लिए चिराग पासवान 'कमल' के बागियों को अपने पाले में कर रहे हैं। फौड़ी तौर पर देखें तो आपको लगेगा कि बीजेपी से नाराज नेताओं ने लोजपा के बंगले की राह पकड़ ली है। चिराग ने 24 घंटे के अंदर बीजेपी के 3 बड़े विकेट गिराए हैं। तीनों बीजेपी के कद्दावर और पुराने नेता रहे हैं। चाहे वो संघ के कार्यकर्ता और पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह हो या पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया और उषा विद्यार्थी। लोजपा ज्वाइन करते वक्त रामेश्वर चौरसिया ने तो यहां तक कह दिया कि ट्रंप भी पीएम मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल कर रहे हैं। हम करेंगे तो क्या गुनाह है? इन सब के बीच अपने घर को उजड़ते देख भी बीजेपी खामोश है। बीजेपी खुल कर चिराग पर बोल क्यों नहीं रही है। सियासी गलियारों में यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है। 

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गांधीजी का एक सुक्ति वाक्य है ''बोलो तभी जब वह मौन से बेहतर हो।'' गांधी जी के सिद्धांत का बीजेपी इन दिनों बखूबी पालन कर रही है। चिराग को लेकर संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में भी किसी बीजेपी नेता ने सीधा जवाब नहीं दिया और इसको लेकर पूछे गए 11 सवालों पर 24 बार कहा कि ''नीतीश ही हमारे नेता है''। कुल मिलाकर देखें तो बीजेपी इन दिनों बिहार को लेकर एक ही काम कर रही है ''नीतीश नाम केवलम... चिराग नाम मंगलम'' क्योंकि चुनाव बाद के गणित में राजनीतिक विश्लेषकों को चिराग में भाजपा के लिए मंगल ही मंगल दिखाई दे रहा है। 

सबसे दिलचस्प है राजेंद्र सिंह का जाना

2015 में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में चर्चित रहे बीजेपी नेता राजेंद्र सिंह ने भी पाला बदलते हुए हाल ही में एनडीए से अलग हुई पार्टी लोजपा का दामन थाम लिया है। बीजेपी छोड़ लोजपा का दामन थामते नेताओं और इस पर बीजेपी की चुप्पी के बीच सबसे दिलचस्प है राजेंद्र सिंह का शामिल होना। पिछले चुनाव में बीजेपी की टिकट पर दिनारा से चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र सिंह इस बार जदयू के मंत्री जय कुमार सिंह के को टक्कर दे सकते हैं। अब जिसको नहीं पता हो तो बता दें कि राजेंद्र सिंह वही चेहरा हैं जनका कि 2015 के चुनाव में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रबलता से लिया जा रहा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे राजेंद्र सिंह को 2014 के झारखंड  विधानसभा चुनाव में झारखंड में बीजेपी की जीत के कथाकार माना जाता है। 2015 में जब राजेंद्र सिंह ने दिनारा विधानसभा सीट से पर्चा भरा था तो उनके लिए झारखंड सरकार के कई आला मंत्री मौजूद थे। उनके चुनाव प्रचार में झारखंड और यूपी के कई आला नेता शामिल थे। राजेंद्र सिंह बिहार 2015 विधानसभा चुनाव के लिए  गठित अमित शाह की चार सदस्यीय टीम के सदस्य भी रह चुके हैं। 

2005 में रामविलास वाली भूमिका में 2020 में चिराग

साल 2005 का बिहार चुनाव तो सभी को याद होगा। जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और रामविलास पासवान की पार्टी उस सरकार का हिस्सा थी। लेकिन बिहार चुनाव के वक्त पासवान ने दांव खेलते हुए कह दिया था कि वो केंद्र में तो यूपीए में हैं लेकिन बिहार में लालू यादव की राजद के साथ कोई चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं करेंगे। उस समय कहा ये भी गया था कि लालू के राजद का प्रभाव कम करने के लिए रामविलास पासवान के इस खेल में कांग्रेस का हाथ था। 2020 के परिपेक्ष्य में देखें तो रामविलास वाली भूमिका में चिराग दिख रहे हैं। 

वेट एंड वॉच की स्थिति में नीतीश

बिहार के लोगों को इमोशनल पत्र लिखकर बिहारी अस्मिता की बात करने वाले नीतीश चिराग के तीखे हमलों पर रामविलास पासवान पर एहसान जताते हुए लोजपा को यह याद दिलाया कि रामविलास पासवान राज्यसभा पहुंचे हैं, उसमें जेडीयू की भूमिका अहम रही है। नीतीश कुमार ने कहा कि एलजेपी बताए, पार्टी को बिहार विधानसभा में कितनी सीटें मिली है। जब विधानसभा में उन्हें दो सीटें ही मिली हैं, ऐसे में जेडीयू और बीजेपी ने ही रामविलास पासवान को टिकट देकर राज्यसभा पहुंचाया। कुल मिलाकर देखें तो बिहार में सारे खेल को समझकर भी नीतीश अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं। 15 साल के शासन के बाद फिर से सत्ता को कायम रखने की चुनौती जबकि एंटी इन्कम्बेंसी जैसी चीज भी होती है। इस सब बातों को ध्यान में रखते हुए नीतीश विधानसभा चुनाव के परिणाम को ही अपने अगले कदम का आधार मानकर चल रहे हैं। 

लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार का चुनाव एक दूसरे को हराने के लिए ही लड़ा जा रहा है। ऐसे में अगर बीजेपी और जेडीयू की सरकार बनती है तो वेल एंड गुड और फिर लोजपा को चुनाव बाद इसमें शामिल होना है तो ठीक है। सुलह कराने की कोशिश बीजेपी की तरफ से की जा सकती है। लेकिन अगर जेडीयू पीछे रहती है तो बीजेपी और लोजपा साथ आएंगे। 

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