छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू त्यौहार है, जो सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए समर्पित है। यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बहुत भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार के दौरान भक्त सख्त अनुष्ठान करते हैं। इन अनुष्ठानों में उपवास करना, नदियों में पवित्र स्नान करना और सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान प्रार्थना करना शामिल है। छठ पूजा के मुख्य तत्वों में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देना शामिल है। ये कृतज्ञता का प्रतीक है और जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सद्भाव के लिए आशीर्वाद मांगता है।
छठ पूजा का त्योहार 5 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू होगा और 7 नवंबर को उषा अर्घ्य के साथ इसका समापन होगा। इन चार दिनों के दौरान लोग विशिष्ट अनुष्ठान करेंगे। आइए आपको इन विशिष्ट अनुष्ठानों, उनकी तिथि और समय के बारे में बताते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठानों की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन भक्त, विशेष रूप से महिलाएं, खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा या आसपास की नदियों में पवित्र डुबकी लगाती हैं। शरीर और आत्मा की शुद्धि भक्तों को कठोर उपवास के लिए तैयार करती है। बता दें, नहाय खाय के दिन छठ पूजा करने वाले लोग केवल शाम में एक बार भोजन करते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठानों के दूसरे दिन खरना में बिना पानी पिए सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक भक्त कठोर व्रत रखते हैं। सूर्यास्त के समय भक्त भगवान सूर्य को चावल की खीर और घी लगी हुई रोटियो का प्रसाद या पारंपरिक भोजन चढ़ाते हैं और फिर अपना व्रत खोलते हैं।
छठ पूजा का तीसरा दिन 'संध्या अर्घ्य' इस पर्व का मुख्य दिन होता है। इस दिन भक्त सूर्योदय से निर्जला उपवास रखना शुरू करते हैं, जो अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है। सूर्यास्त के समय व्रत रखने वाले भक्त नदी में खड़े होकर डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य देते हैं। इस दौरान प्रकृति से उत्पन्न हुई चीजों और ठेकुआ का सूर्य देव को भोग लगाया जाता है। ये छठ पूजा का एक अनूठा पहलू है और एकमात्र ऐसा समय है जब अर्घ्य डूबते सूर्य को समर्पित किया जाता है, जो कृतज्ञता और श्रद्धा का प्रतीक है।
छठ पूजा के अंतिम दिन, जिसे उषा अर्घ्य के रूप में जाना जाता है, में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही 36 घंटे का उपवास समाप्त हो जाता है। सुबह के अर्घ्य के बाद व्रत तोड़ने की रस्म 'पारणा' की जाती है। इसके बाद चार दिनों तक चलने वाला पर्व समाप्त हो जाता है।
छठ पूजा की एक अनूठी विशेषता पर्यावरण जागरूकता और शुद्धता पर जोर देना है। भक्त नदी के किनारे और जल निकायों में इकट्ठा होते हैं, जहां वे प्रकृति के संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देते हुए स्वच्छ और शांत वातावरण में अनुष्ठान करते हैं। अनुष्ठान समुदाय और पारिवारिक बंधन के विषयों को भी उजागर करते हैं, क्योंकि परिवार ठेकुआ (गेहूँ के आटे, गुड़ और घी से बनी मिठाई) और अन्य मौसमी फलों जैसे पारंपरिक प्रसाद तैयार करने के लिए एक साथ आते हैं। यह त्यौहार सामाजिक और आर्थिक सीमाओं को पार करता है, लोगों को आस्था और आध्यात्मिक भक्ति के सामूहिक उत्सव में एक साथ लाता है।