नई दिल्ली।(इंडिया साइंस वायर): किसी उबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी का टायर अचानक पंक्चर हो जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। भारतीय शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से निजात पाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसी तकनीक विकसित की है, जो टायरों की परफार्मेंस बढ़ाने में उपयोगी साबित हो सकती है।
केरल स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर लाइनरों को मजबूती प्रदान करने में किया जा सकता है।
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नैनो-क्ले और क्रियाशील नैनो-क्ले तंत्र के उपयोग से इनर लाइनर बनाने के लिए विकसित फॉर्मूले को गैस अवरोधी गुणों से लैस किया गया है। इससे टायरों के इनर लाइनर की मजबूती बढ़ायी जा सकती है। इंटरनेशनल ऐंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी (आईआईयूसीएनएन) ने टायर निर्माता कंपनी अपोलो टायर्स के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराया है। कंपनी जल्द ही इस तकनीक का उपयोग हाई-परफार्मेंस टायर बनाने में कर सकती है।
ट्यूब वाले टायरों ग्रिप अच्छी होती है, पर ये टायर जल्दी पंक्चर हो जाते हैं और पंक्चर होने के बाद कुछ क्षणों में सपाट होकर सतह से चिपक जाते हैं। इसके विपरीत, ट्यूबलेस टायरों में अलग से कोई ट्यूब नहीं होती, बल्कि यह टायर के अंदर ही टायर से जुड़ी रहती है, जिसे इनर लाइनर कहा जाता है। ट्यूबलेस टायरों की एक खासियत यह है कि पंक्चर होने के बाद इनमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है। हालांकि, बार-बार पंक्चर होने की परेशानी इन टायरों के साथ भी जुड़ी हुई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नैनो तकनीक की मदद से टायर को अधिक मजबूत एवं टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
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गाड़ियों के टायर को अधिक टिकाऊ बनाने से जुड़ी तकनीक को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के उप-कुलपति डॉ साबू थॉमस ने बताया कि "पॉलिमर नैनो-कम्पोजिट विकसित करते हुए कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और नैनो-क्ले जैसे नैनोफिलर्स के प्रसार से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे अत्याधुनिक उपकरण मददगार साबित हुए हैं।"
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन द्वारा समर्थित आईआईयूसीएनएन नैनो-उपकरणों के तकनीकी विकास और निर्माण से जुड़े अनुसंधान कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है। इस तरह के अनुसंधान कार्यक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोग शामिल हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से इस केंद्र को ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे परिष्कृत उपकरणों से सुसज्जित किया गया है, जिसकी मदद से नैनो स्तर के नमूनों की आंतरिक संरचना को भी देखा जा सकता है।
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आईआईयूसीएनएन कई प्रमुख नैनो तकनीकों पर काम कर रहा है। आंतरिक अनुप्रयोगों और अत्यधिक तापमान एवं आर्द्रता वाले वातावरण में उपयोग होने वाले उच्च क्षमताओं की नैनो-संरचनाओं से बने एपोक्सी मिश्रण से जुड़ी तकनीकें इनमें शामिल हैं। इन तकनीकों का उपयोग आमतौर पर एयरोस्पेस, जल शुद्धिकरण फिल्टर्स, तापीय स्थिरता, नैनो-फिलर्स और वियरेबल डिवाइसेज इत्यादि में उपयोग हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से भविष्य में उन्नत प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिसकी मदद से अग्रणी किस्म के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। डॉ साबू थॉमस के अलावा शोधकर्ताओं में आईआईयूसीएनएन के निदेशक प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)