By नीरज कुमार दुबे | Mar 11, 2024
उच्चतम न्यायालय से मोदी सरकार को झटके पर झटके लगते जा रहे हैं। हम आपको बता दें कि एक ही दिन में सर्वोच्च न्यायालय से मोदी सरकार को दो बड़े झटके लगे हैं। एक तो न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड मामले में डाटा देने के लिए समय बढ़ाने की मांग वाली एसबीआई की याचिका खारिज कर दी। दूसरा न्यायालय उस याचिका पर तत्काल सुनवाई के लिए तैयार हो गया है जिसमें मांग की गयी है कि केंद्र सरकार को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति नये कानून के तहत करने से रोका जाये। इस तरह अब एक तो चुनावी बॉण्ड योजना के तहत किसने किस पार्टी को कितना चंदा कब-कब दिया यह बात 15 मार्च तक उजागर हो जायेगी और साथ ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति नए निर्वाचन आयुक्तों के नामों को तय करने के लिए 15 मार्च को जो बैठक करने वाली है उस पर अब संशय के बादल मंडराने लगे हैं।
जहां तक चुनावी बॉण्ड योजना की बात है तो आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनावी बॉण्ड संबंधी जानकारी का खुलासा करने के लिए समयसीमा बढ़ाए जाने का अनुरोध करने वाली भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की याचिका खारिज करते हुए उसे 12 मार्च को कामकाजी घंटे समाप्त होने तक निर्वाचन आयोग को चुनावी बॉण्ड संबंधी विवरण उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने निर्वाचन आयोग को भी एसबीआई द्वारा साझा की गई जानकारी 15 मार्च को शाम पांच बजे तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया है। हम आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय की इस पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहे।
सुनवाई के दौरान, पीठ ने एसबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों पर गौर किया कि विवरण एकत्र करने और उनका मिलान करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता है क्योंकि जानकारी इसकी शाखाओं में दो अलग-अलग कक्षों में रखी गई थी। उन्होंने कहा कि अगर मिलान प्रक्रिया नहीं करनी हो तो एसबीआई तीन सप्ताह के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा कर सकता है। पीठ ने कहा कि उसने एसबीआई को चंदा देने वालों और चंदा प्राप्त करने वालों के विवरण का अन्य जानकारी से मिलान करने का निर्देश नहीं दिया है। पीठ ने कहा कि एसबीआई को सिर्फ सीलबंद लिफाफा खोलना है, विवरण एकत्र करना है और निर्वाचन आयोग को जानकारी देनी है। पीठ ने बैंक से यह भी पूछा कि उसने शीर्ष अदालत के 15 फरवरी के फैसले में दिए गए निर्देशों के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए हैं। पीठ ने कहा, ‘‘पिछले 26 दिन में आपने क्या कदम उठाए हैं? आपकी अर्जी में इस बारे में कुछ नहीं बताया गया।’’
हम आपको याद दिला दें कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था। न्यायालय ने अब एसबीआई की उस याचिका पर सुनवाई की थी जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक चुनावी बॉण्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए समय-सीमा 30 जून तक बढ़ाए जाने का अनुरोध किया गया था। इसके अलावा, पीठ ने एक अलग याचिका पर भी सुनवाई की जिसमें एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है। उधर, अदालत के फैसले के बाद याचिकाकर्ता जया ठाकुर और वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह ऐतिहासिक फैसला है जोकि लोकतंत्र को मजबूत करेगा।
विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरा
दूसरी ओर, अदालत के फैसले के बाद विपक्ष ने भी मोदी सरकार को घेर लिया है। कांग्रेस ने चुनावी बॉण्ड का विवरण देने के लिए समय बढ़ाने की भारतीय स्टेट बैंक की मांग को हास्यास्पद करार देते हुए दावा किया कि सरकार को इस बात का डर है कि उसके सारे राज खुल जाएंगे। कांग्रेस ने कहा कि उच्चतम न्यायालय एक बार फिर से भारतीय लोकतंत्र को सरकार की "साजिशों'' से बचाने के लिए सामने आया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मामला बड़े भ्रष्टाचार का है तथा यह सरकार एवं उसके कॉरपोरेट मित्रों के बीच की सांठगांठ को भी उजागर करता है। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने भी कहा है कि जो सत्ता में आए थे स्विस बैंकों के खातों को सार्वजनिक करने की बातें करके वो आज एसबीआई तक के आंकड़ों को सार्वजनिक करने में थर-थर कांप रहे हैं। अदालत के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड प्रकाशित करने के लिए SBI द्वारा साढ़े चार महीने माँगने के बाद साफ़ हो गया था कि मोदी सरकार अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने की हर संभव कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के भ्रष्टाचार, घपलों और लेन-देन की कलई खुलने की ये पहली सीढ़ी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पारदर्शिता, जवाबदेही, और लोकतंत्र में बराबरी के मौक़े की जीत है।
निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति का मामला
जहां तक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति वाली बात है तो आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह केंद्र सरकार को 2023 के एक कानून के अनुसार नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करने से रोकने का अनुरोध करने वाली यचिका को सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा। इस कानून के प्रावधानों को पहले ही न्यायालय में चुनौती दी गयी है। उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे और अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति के बाद निर्वाचन आयुक्तों के दो पद खाली हो गए हैं। भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘‘एक ईमेल भेजिए। हम देखेंगे।’’ कांग्रेस नेता जया ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह और अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया। स्थानीय कांग्रेस नेता ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 के प्रावधानों को चुनौती दी है। ठाकुर ने अपनी याचिका में न्यायालय को बताया कि उनकी याचिका पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान ‘निर्वाचन आयोग के एक सदस्य अरुण गोयल ने नौ मार्च 2024 को इस्तीफा दे दिया, जिसे राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है।’ उन्होंने कहा कि उनकी याचिका पर 12 जनवरी को एक नोटिस जारी किया गया था।
हम आपको बता दें कि निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल ने 2024 के लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से कुछ दिन पहले शुक्रवार सुबह पद से इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया और केंद्रीय विधि मंत्रालय ने इसकी घोषणा करते हुए एक अधिसूचना जारी की। इससे निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार इकलौते सदस्य रह गए हैं। इसके चलते प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति नए निर्वाचन आयुक्तों के नामों को तय करने के लिए 15 मार्च को बैठक करेगी।