नकाब हटा तो आइशी घोष का असली चेहरा और मन की बात सामने आई

By नीरज कुमार दुबे | Jan 16, 2020

आइशी घोष। नाम तो सुना ही होगा इनका। जेएनयू में जब हाल ही में हिंसा हुई थी तो कुछ चेहरों पर नकाब लगे हुए थे जिसे सबने देखा लेकिन आइशी के चेहरे पर भी नकाब लगा हुआ था जो अब उतर गया है। साफ हो गया है कि एक बड़ी राजनीतिक साजिश के तहत इतना बड़ा बवाल खड़ा किया गया। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने अब कश्मीर को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने बुधवार को जामिया मिलिया इस्लामिया में आंदोलन कर रहे छात्रों के बीच पहुंच कर कहा कि कश्मीर को अलग करते हुए हम आंदोलन नहीं जीत सकते। आइशी घोष ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जो लड़ाई चल रही है उसमें हम कश्मीर को पीछे नहीं छोड़ सकते। कश्मीर से ही संविधान में छेड़छाड़ शुरू हुई है।

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आइशी घोष यह सही है कि आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन इस स्वतंत्रता का आप खुल्लम खुल्ला दुरुपयोग कर रही हैं। आप कश्मीर को पीछे नहीं छोड़ सकते की बात कह रही हैं...कश्मीर को पीछे छोड़ा किसने है ? कश्मीर का असल विलय तो भारत के साथ 5 अगस्त 2019 को हुआ। आप संविधान से जिस छेड़छाड़ की बात कर रही हैं उसके बारे में आपको कोई समझ ही नहीं है। बच्चा-बच्चा जानता है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के संकल्प को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी मिली और इस पर भारत के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किये थे। इसके बाद ही भारत का संविधान पूरी तरह जम्मू-कश्मीर में लागू हुआ था। आप जिस छेड़छाड़ की बात कर रही हैं तो आपको समझना चाहिए कि छेड़छाड़ यह हुई थी कि जो भारतीय संविधान वहां पूरी तरह लागू नहीं था वह अब वहां पूरी तरह लागू है। आप कश्मीर के लोगों की बात कर रही हैं तो यह जान लीजिये कि 370 हटने के बाद से वहां बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों को रोजगार देने का काम जारी है...यह जान लीजिये कि 370 हटने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में बहुत कमी आई है...यह जान लीजिये कि 370 हटने के बाद से जनजीवन अब पूरी तरह सामान्य है जो थोड़ी बहुत संचार संबंधी पाबंदियां हैं उन्हें भी धीरे-धीरे स्थानीय प्रशासन हटा लेगा। यह भी जान लीजिये कि 370 हटाते समय जो स्थानीय नेता नजरबंद किये गये थे उनमें से कुछ बड़े नामों को छोड़कर अधिकतर रिहा किये जा चुके हैं और वह बाहर आकर सामान्य रूप से राजनीतिक गतिविधियां चला रहे हैं और उन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। आइशी घोष लोगों को समझाने का काम छोड़ आपको खुद समझना चाहिए कि आप जैसे लोग कुछ नेताओं के हाथों का खिलौना बन रहे हैं।

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वाकई लोगों को बड़ी सहानुभूति हुई थी आपसे जब जेएनयू में हाल में हुई हिंसा के दौरान आपको चोटें आई थीं। आपका आक्रोश जायज लग रहा था। जब आप विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई कर रही थीं तो लगा कि भारत को एक और युवा नेत्री मिल गयी है। लेकिन ऐसा सोचने वाले लोगों को तब बड़ा झटका लगा जब आइशी घोष, आपका असली चेहरा सामने आया। दिल्ली पुलिस की जांच में सामने आया कि जेएनयू में हुई हिंसा से आइशी के तार भी जुड़े दिख रहे हैं। यही नहीं दिल्ली पुलिस ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से शिकायत मिलने के बाद दो एफआईआर भी दर्ज कीं। इन एफआईआर में आइशी घोष सहित जेएनयू के 22 छात्र नेताओं के नाम हैं। आइशी घोष ने तब कहा कि दिल्ली पुलिस उनके साथ पक्षपात कर रही है लेकिन आइशी यह सवाल आपसे भी पूछा जाना चाहिए कि आप जैसे कुछ छात्र नेता क्यों जेएनयू के उन शांति पसंद छात्रों के सामान्य रूप से पढ़ाई करने के अधिकार को बाधित कर रहे हैं।

 

आइशी घोष आप लोगों का आंदोलन तो फीस वृद्धि को वापस लेने के लिए था, बाद में आपने वाइस चांसलर को हटाने की मांग भी जोड़ दी अब आप कह रही हैं कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे...आप करना क्या चाहती हैं ? राजनीतिक लड़ाइयां ही लड़नी हैं तो उतर जाइये कन्हैया कुमार की तरह चुनावी मैदान में लेकिन कम से कम जेएनयू को तो बख्श दीजिये जोकि शिक्षा जगत में इस देश की शान है और इस शिक्षा रूपी पौधे को सींचने के लिए देश के करदाता अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करते हैं।

 

-नीरज कुमार दुबे

 

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