सपा को मिले मुस्लिमों के समर्थन से परेशान मायावती ने चला बड़ा दांव

By अजय कुमार | Apr 01, 2022

विधानसभा चुनाव में चारों खाने चित हो जाने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के होश ठिकाने आ गए हैं। वह एक बार फिर बसपा में जान फूंकने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। विधानसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी द्वारा मुसलमानों के बीच बसपा को लेकर जो भ्रम पैदा किया गया था उसकी वजह से बसपा की तरफ से मुसलमानों ने मुंह मोड़ लिया था। सपा ने बसपा को बीजेपी की बी टीम बता कर उस पर कुठाराघात किया था। सपा के इसी भ्रम जाल को तोड़ने और बसपा का दलित-मुस्लिम गठजोड़ मजबूत करने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने आजमगढ़ को अपनी नई प्रयोगशाला बनाया है। आजमगढ़ से अखिलेश यादव सांसद थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा को मजबूती प्रदान करने के लिए अखिलेश ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और विधायक बनकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं ताकि योगी सरकार को कायदे से घेरा जा सके।

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अखिलेश की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी है लेकिन बसपा उसके सामने नई चुनौतियां खड़ी करना चाह रही है। इसीलिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने आजमगढ़ लोकसभा सीट के लिए एक मुस्लिम प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाकर समाजवादी पार्टी के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। मायावती के इस प्रयोग ने असर दिखाया तो एक बार फिर से पूर्वांचल की सियासी तस्वीर बदल सकती है। गौरतलब हो कि पूर्वांचल की  कई लोकसभा सीटों पर दलित और मुस्लिम निर्णायक भूमिका में रहते हैं।


बहरहाल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से इस्तीफा देने के बाद यहां उपचुनाव होना है। वहां उम्मीदवार स्थानीय होगा या सैफई परिवार का, इस पर चर्चा चल रही है। कयास यह भी लग रहे हैं कि डिंपल यादव यहां से चुनाव लड़ सकती हैं। इसी सियासी दांवपेच के बीच बसपा ने न सिर्फ मुबारकपुर से विधायक रहे गुड्डू जमाली की पार्टी में वापसी कराई है बल्कि उन्हें लोकसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। इसे बसपा की भविष्य की सियासी रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।


आजमगढ़ उप-चुनाव में यदि बसपा प्रत्याशी अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी बसपा इसी रणनीति को आगे बढ़ाएगी, जिससे सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्योंकि सपा का मूल वोटबैंक भी मुस्लिम है। मायावती इधर लगातार मुसलमानों से कह भी रही हैं कि उन्होंने सपा को वोट देकर गलत फैसला किया है। बसपा की ओर से एक बार फिर मुस्लिम कार्ड खेलने से समाजवादी पार्टी परेशानी में नजर आ रही है। बात आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र की कि जाए तो क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता हैं। इसमें करीब साढ़े तीन लाख यादव और मुस्लिम व दलित तीन-तीन लाख हैं। इसीलिए मुसलमान वोटर जिस पार्टी की तरफ झुक जाते हैं, उसका पलड़ा भारी हो जाता है। आजमगढ़ में दलितों में बसपा का मूल वोट बैंक माने जाने वाले जाटवों की संख्या अधिक है। ऐसे में बसपा की रणनीति है कि मुस्लिम व दलित एकजुट होकर सपा के सियासी रथ को रोक दें। इसके लिए गुड्डू जमाली फिट बैठते हैं। गुड्डू जमाली बसपा के टिकट पर वर्ष 2012 व 2017 में विधायक रहे हैं।


पर, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह बसपा से नाता तोड़कर सपा में चले गए थे लेकिन सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। ऐसे में वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव में उतरे और 37 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे। बसपा ने जमाली की वापसी कर मुस्लिमों का हमदर्द होने का संदेश दिया है। बसपा ने कहा कि जब भी मुस्लिम सपा की ओर से रुख करते हैं तो भाजपा को जीत मिलती है। इसलिए बसपा उपचुनाव से ही सपा खेमे में किसी न किसी कारण क्षुब्ध रह रहे नेताओं को अपने पाले में करने में जुटी है।

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बताते चलें कि गुड्डू जमाली 2014 में आजमगढ़ से बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इससे सपा के मुलायम सिंह यादव और भाजपा के रमाकांत के साथ त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। मुलायम को 3.30 लाख, रमाकांत को 2.77 लाख और गुड्डू को 2.66 लाख वोट मिले। इस तरह गुड्डू तीसरे स्थान पर रहे। इससे पूर्व वर्ष 2009 में यहां बसपा के अकबर अहमद डम्पी को 1.99 लाख वोट मिला था और भाजपा के रमाकांत 2.47 लाख वोट पाकर विजयी हुए थे। इस तरह देखा जाए तो वर्ष 2014 में गुड्डू बसपा का वोटबैंक बढ़ाने में कामयाब रहे थे। वर्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में अखिलेश यादव को 6.21 लाख और भाजपा के दिनेश लाल यादव को 3.61 लाख वोट मिले थे। मगर बदली परिस्थितियों में रमाकांत यादव अब सपा में हैं और फूलपुर पवई से विधायक हैं। राजनीति की सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का कहना है कि बदली परिस्थितियों में आजमगढ़ उपचुनाव काफी रोचक हो गया है। बसपा ने गुड्डू जमाली की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया है। भाजपा से यादव बिरादरी का उम्मीदवार उतरा तो सपा के लिए यह सीट चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। यहां के उपचुनाव का असर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है।


बहुजन समाज पार्टी की करें तो बसपा हमेशा से दलित-मुस्लिम गठजोड़ की हिमायती रही है। बीच में उसने दलित-ब्राह्मण कार्ड चला, जिसका नतीजा रहा कि मुस्लिम धीरे-धीरे शिफ्ट होते गए। अब एक बार फिर वह 2007 जैसी तैयारी की दुहाई दे रही है। इसका असर पूरे पूर्वांचल में दिख सकता है। वर्तमान में पार्टी के 10 सांसदों में तीन मुस्लिम हैं। पूर्वांचल में आजमगढ़ ही नहीं जौनपुर, गाजीपुर, घोसी, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, बहराइच सहित कई सीटों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं।


उक्त जिलों में आबादी की स्थिति देखें तो जौनपुर के करीब 15 लाख मतदाता में से 2.20 लाख मुस्लिम और यादव व दलित 2.50-2.50 लाख हैं। गाजीपुर जिले में 41.94 लाख में चार लाख यादव, 3.50 लाख दलित और दो लाख मुस्लिम हैं। घोसी में 16 लाख में से 4.30 लाख दलित, 2.72 लाख चौहान और 2.42 लाख मुस्लिम हैं। वाराणसी में करीब 15 लाख में से तीन लाख मुस्लिम, 1.50 लाख यादव व एक लाख दलित मतदाता हैं। बहराइच के करीब 24 लाख मतदाताओं में से आठ लाख मुस्लिम और चार लाख दलित हैं। इसलिए दलित वोटबैंक के साथ मुस्लिमों की एकजुटता सियासी गणित को उलझाती रही है। इसीलिए बसपा यहां अपने आप को मजबूत करना चाह रही है। बसपा की पूरी कोशिश यह है उसके ऊपर से बीजेपी की बी टीम होने का ठप्पा पूरी तरह से धुल जाए तभी उसकी आगे की राजनीति चमक सकती है।


-अजय कुमार

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