कविता में इलाज (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Nov 16, 2024

हम तो पंजीकृत विश्वगुरु हैं। पूरा विश्व आज हमसे प्रेरणा ले रहा है। हमारी ओर देखता रहता है कि यह अब नया क्या करने वाले हैं जिसकी नकल हो सके। लेकिन अंग्रेज़ भी कम नहीं हैं, क्या क्या करते हैं, वाकई गुरु हैं। हमारे यहां तो हर अंतराल पर हो रही परीक्षा में दर्जनों दवाईयां फेल हो जाती हैं। प्रतिबंधित दवाइयां आराम से मिल जाती है। कई बार आराम से लेटे लेटे सोचता हूं, क्या उनके यहां भी दवाईयां फेल होती होंगी। दवाईयां फेल न भी हों मगर लगता है वहां मिल रही दवाइयों का असर कम हो रहा है और कविताएं अपना असर दिखा रही हैं। 


अंग्रेज़ी कवियों की कालजयी रचनाएं तो हिंदी अध्यापकों के बच्चों ने भी खूब पढी हैं। वैसे भी वे लोग पढ़ने के दीवाने माने जाते हैं शायद तभी कविताओं में इलाज ढूंढा जा रहा है और किया जा रहा है। उदासी, अकेलेपन और व्यग्रता जैसी बीमारियों का इलाज कविताएं कर रही हैं। वैसे तो हम भी कह सकते हैं कि हमारे यहां तो ऐसा सदियों से होता आया है। कुछ भी कहोजी आज की तारीख में हमारे यहां बीस करोड़ चालीस लाख चार सौ बीस कवि हैं जिनमें से अधिकांश सामाजिक मंच पर सक्रिय हैं। जहां दूसरों की बढ़िया कविताएं अपने नाम से चेपी जा रही हैं। कविता विश्वविद्यालय सा खुल गया है। कवि और महाकवि बढ़ते जा रहे हैं। कविताजी गुम होती जा रही हैं।

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अंग्रेजों ने ऐसा दवाखाना बनाया है जहां आकर लोग शांत माहौल में बैठकर कविता संग्रह पढ़ते हैं। एक दूसरे को कविताएं सुनाते हैं और समझते हैं। उनमें व्यक्त विचारों और विषयों बारे, बातें और टिप्पणियां करते हैं। कविता तो है ही प्रेम, विरह, खुशी, उदासी और दुःख के एहसासों से लबरेज़। कविता सदमे से बाहर निकालने की क्षमता रखती है। दवाखाने में रखी दवाइयों की शीशियों पर भी कविताएं लिखी हैं। बुज़ुर्ग नागरिक इसका ज़्यादा फायदा उठा रहे हैं। दूर से भी लोग आ रहे हैं। उन्हें देखकर युवा भी आ रहे हैं और प्रेरित होकर कविताएं भी लिख रहे हैं जिनमें अपनी परेशानियां बयान कर रहे हैं। हल्का महसूस कर रहे हैं। उनमें पढने का शौक पैदा हो रहा है।

   

कविता बीमारियों की शुरुआती अवस्था में कारगर है। मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र की किताबें भी उपलब्ध हैं। हमारे यहां अधिकाँश कविताओं में अब वह असर नहीं रहा तभी सुनने वाले भी नदारद हैं। वैसे भी हमारे यहां परेशानियां, गुस्सा, ईर्ष्या द्वेष निकालने के लिए बहुतेरे मंच हैं। यहां दवाखानों में दवाएं नहीं मिलती, कविता कौन सुनेगा। हमारे यहां ज़्यादा विकसित योजनाएं हैं। जानवरों को भी संगीत सुनाया जा रहा है। वातानुकूलित कक्षों में रखा जाता है ताकि उनकी उत्पादकता बढ़े। हमारे यहाँ इंसानों को कविता से ज़्यादा रोटी की ज़रूरत है।


- संतोष उत्सुक

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