By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 16, 2022
पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव ने यह भी जानना चाहा कि क्या इस कलाकृति के लिए दिल्ली शहरी कला आयोग और विरासत संरक्षण समिति की मंजूरी ली गई थी, जो कि संसद की नयी इमारत के संदर्भ में ‘‘छह जनवरी 2021 को उच्चतम न्यायालय के आए फैसले के अनुसार अनिवार्य है।’’ इससे पहले राष्ट्रीय प्रतीक में छेड़छाड़ संबंधी विवाद होने पर जवाहर सरकार ने ट्विटर पर राष्ट्रीय प्रतीक की मूल तस्वीर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए राष्ट्रीय प्रतीक की तस्वीरें साझा की थीं। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य ने दावा किया कि मूल अशोक स्तंभ पर मौजूद शेर ‘‘ सुदंर और शान से आत्मविश्वासी’’ प्रतीत होते हैं जबकि नयी प्रतिमा के शेर ‘‘गुर्राते हुए, अनावश्यक रूप से आक्रामक और बेमेल’ दिखते हैं। विशेषज्ञों और विपक्षी नेताओं की आलोचना पर पुरी ने कहा था कि जो लोग संसद की इमारत पर लगे राष्ट्रीय प्रतीक की आलोचन कर रहे हैं, उन्हें ‘‘दोनों ढांचों की तुलना करने के साथ-साथ उनके कोण, ऊंचाई और विशालता’’ पर भी ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने दावा किया था कि नये संसद भवन की छत पर लगाई गई राष्ट्रीय प्रतीक की प्रतिमा सारनाथ स्थित वास्तविक चिह्न का ‘‘विस्तृत’’ स्वरूप है। इन तर्कों को खारिज करते हुए जवाहर सरकार ने अपने पत्र में कहा कि ‘‘ बेंगलुरु के विधान सौध के ऊपर पिछले 65 साल से लगे विशाल राष्ट्रीय चिह्न पर कोई विवाद नहीं है और आपके अधिकारी उनका परीक्षण कर सकते हैं कि वह क्यों और कैसे सफल है।’’ जवाहर सरकार ने कहा कि सरकार और विपक्षी पार्टियों के बीच नयी प्रतिमा, मूल स्वरूप की नकल है या नहीं? इसको लेकर एकदम अलग राय है। सारनाथ की मूल प्रतिमा और नयी प्रतिमा में कई अंतर हैं और इसकी पहचान आसानी से व सटीक तरीके से त्रिआयामी तस्वीरों से हो सकती है।