घर में ही अदा करना नमाज़
शुक्रिया ख़ुदा का मना लेना
बहुत रंजो-ग़म में है दुनिया
ईद तुम सादगी से मना लेना
इसी पैग़ाम को लेकर इस बार ईद आई है। ख़ुशी का ये दिन कोरोना संकट के बीच आया है। लॉकडाउन में रमज़ान का पूरा एक महीना गुज़र गया। यह ऐसी ईद होगी जब आप चाहकर भी खुशी के साथ किसी से गले नहीं मिल सकेंगे। हाथ मिलाने के बारे में भी सौ बार सोचेंगे। ज़ाहिर है कि दो गज की सोशल डिस्टेंसिंग वाली ये ईद फीकी और सादा ही रहने वाली है। इसमें बीते सालों जैसे मेले-ठेले, शोरोगुल और चमक-दमक वाली बात नहीं होगी। यह पहला ऐसा मौका भी होगा जब मस्जिदों के साथ ईदगाहों के बंद होने की वजह से ईद की नमाज़ घरों में ही होगी। ईदी लेने या ईद पर सेवईं खाने लोग एक-दूसरे घर नहीं जा सकेंगे। मॉल और सिनेमाघर बंद रहेंगे। सड़कों से लेकर बाज़ार तक वैसी रौनक नजर नहीं आयेगी, जैसा हम पहले देखते रहे हैं।
ईद पर ख़रीददारी ज़रा संभलकर
उम्मीद है कि ईद 25 मई के दिन होगी। ज़ाहिर है कि इसके लिये कुछ ज़रूरी ख़रीददारी भी होगी। मगर इस मामले में मुस्लिम समाज बेहद सावधानी और समझदारी बरतने की कोशिश में है। इसकी बड़ी वजह जमातियों की वजह से समाज के खिलाफ़ बना वातावरण है। आज श्रमिकों की भारी भीड़ जगह-जगह नज़र आ रही है। सामाजिक और धार्मिक उत्सवों की तस्वीरें भी सामने आ चुकी है। ऐसी तस्वीरें जिनमें सामाजिक दूरी की धज्जियां उड़ती दिखीं। मगर तबलीगी जमात के कोरोना पॉज़िटिव होने को लेकर जिस तरह से मीडिया कवरेज हुई थी। उसको लेकर समाज आहत है, लोगों में गहरा आक्रोश भी है। शुरूआती दिनों में सोशल मीडिया पर भी जमातियों की गलती का ठीकरा पूरे मुस्लिम समाज के सिर फूटा। इस दौरान इंदौर और मुरादाबाद जैसे शहरों में मेडिकल वर्कर्स पर हुए हमलों की घटनाओं ने आग में घी का काम किया। नफ़रत का माहौल बनने लगा। एक समय ऐसा भी आया जब कोरोना संकट का मुद्दा हिंदू-मुस्लिम डिबेट में उलझकर रह गया। इसी दौरान थूक लगाकर सब्ज़ी बेचने जैसे कुछ फेक वीडियो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुये और देश पर गहराये महामारी के संकट को और बिगाड़ने का प्रयास हुआ। नतीजे में मुस्लिम सब्ज़ीवालों से सब्जियां न खरीदने और उनके बहिष्कार की ख़बरें आने लगीं।
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सावधानी बरतने की अपील
यही वजह है कि रमज़ान की शुरूआत से ही मुस्लिम समाज से ईद की ख़रीदारी में बेहद सावधानी बरतने की अपीलें की जा रही हैं। देश के तकरीबन सभी शहरों में ऐसे व्हाट्सएप मैसेज प्रसारित किये गये, जिनमें ईद की ख़रीदारी को टाल देने में ही भलाई जताई गई। कहा गया कि बहुत ज़रूरी होने पर ही बाज़ार का रुख करें। भीड़ का हिस्सा ना बनें। दो गज की दूरी जैसी सावधानियां बरतें। ऐसे संदेशों में डर जताया गया कि कहीं ऐसा ना हो एक बार फिर कोरोना फैलाने को लेकर समाज को निशाना बनाया जाये। मीडिया एक बार फिर ऐसा माहौल बनाये जिसमें कुछ लोगों की ग़लती पूरा समाज भुगते। ज़ाहिर है कि इस सबका 60 दिनों से बंद पड़े बाज़ार पर विपरीत असर पड़ेगा। मुंबई जैसे जो शहर पूरी तौर से रेड ज़ोन में है, वहां ख़रीददारी मुश्किल है। परंतु जिन शहरों में कुछ रियायत मिल रही है, वहां भी वैसी ख़रीदारी नहीं होगी जिसकी उम्मीद आमतौर पर होती है।
सादगी से मनाएं ईद
समाज ये भी मानता है कि दुनिया में आज जिस तरह के हालात है, ऐसे में ईद को सादगी से मनाना ही अच्छा है। आज पूरी दुनिया कोरोना संकट की वजह से रंजों-ग़म में डूबी है। संक्रमितों की संख्या 50 लाख के पार जा रही है। 3 लाख से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं। वैक्सिन की खोज अभी चल रही है। सभी जगह अनिश्चितता का वातावरण है। नौकरी और बिज़नेस दोनों में ही मुश्किल हालात है। ऐसे में तड़क-भड़क से दूर और कोरोना से ज़रूरी शर्तों का पालन करते हुए ईद को औपचारिक तौर पर मनाने में ही भलाई है। आने वाले वक़्त को देखते हुए बहुत संभलकर खर्च करना ज़रूरी है।
इबादत के बदले में ईद का ईनाम
ईद का मतलब खुशी का दिन। खुशी का यह दिन उन नेक बंदों के लिये ख़ुदा की तरफ़ से ईनाम है जिन्होंने पूरे 30 दिन रोज़े रखे। भूख और प्यास के साथ अपनी पांचों इंद्रियों को काबू में रखा, दिल से इबादत की। दान-दक्षिणा (ज़कात आद) देकर मज़लूमों और बेसहारों की सेवा की। इनमें समाज के वो ख़िदमतगार भी है जिन्होंने इबादत के साथ दर-बदर हुए श्रमिकों की सेवा की। भूखों को ख़ाना खिलाया। प्यासों को पानी पिलाया। उनके पैरों के ज़ख्मों पर मरहम लगाया। चप्पल-जूतों जैसी ज़रूरी चीजें दीं। अपने पड़ोसियों को खयाल रखा। कंधे से कंधा मिलाकर समाज और राष्ट्र के प्रति अपना धर्म निभाया। कहना ना होगा, खुदा की नज़र में इंसानियत और नेक आमाल से बढ़कर कुछ नहीं। ख़ुदा के आगे हज़ार सजदे भी कम हैं, अगरचे आपकी सोच में सच्चा अमल नहीं है।
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तालाबंदी में इबादत से राहत
लॉकडाउन 4 के बाद जैसे-जैसे कुछ शहरों में राहत मिल रही है। इसी तरह एक महीने की इबादत के बाद ईद के दिन से रोज़दारों को राहत मिलेगी। पहले की तरह उनकी सामान्य दिनचर्या शुरू हो जायेगी। रमज़ान के दिनों में आम मुस्लिम समाज के लोगों की दिनचर्या ब्रह्म मुहूर्त में तड़के 3 से 4 बजे से शुरू हो जाती है। 14 घंटे लंबे रोज़े के बाद यह दिनचर्या पांच वक्त की नमाज़ों, कुरान पाठ, रात को तरावीह (कुरान पर आधारित नमाज़) आदि के साथ आधी रात को ख़त्म होती है। इसमें भी सबसे ज़्यादा परिवार संभालने वाली महिलाओं की परीक्षा होती है। इतना ही नहीं रमज़ान के अंतिम दस दिनों की 21 वीं से लेकर 23,25,26,27,29 वीं शब का ख़ास महत्व माना जाता है। इन रातों को बहुत से पाबंद मुस्लिम सारी रात ख़ुदा की इबादत करते हैं। इस तरह रमज़ान का महीना विदा होता है।
रमज़ान महीने में आने वाले अंतिम शुक्रवार को जुमातुल बिदा कहा जाता है। इस बार तालाबंदी की वजह से मस्जिदों में जुमातुल विदा का दिन भी घरों तक सीमित रह गया। मगर आम मुस्लिमों के दिल में दुआ यही रही कि रहमतों का यह महीना उन्हें बार-बार नसीब हो। और कोरोना जैसी महामारी कभी ना हो। कोविड 19 के अदृश्य हमले की वजह से ही आज मक्का की पहली मस्जिद से लेकर दुनिया की तमाम मस्जिदें और ईदगाहें बंद पड़ी हैं। वतन के लिये एकसाथ दुआ को हाथ नहीं उठ सके हैं।
शकील अख्तर
(वरिष्ठ टीवी जर्नलिस्ट और लेखक हैं। वे इंडिया टीवी के पूर्व सीनियर एडिटर रहे हैं तथा महात्मा गांधी के बचपन पर आधारित नाटक ‘मोनिया दि ग्रेट’ सहित चार नाटक भी लिख चुके हैं। उनके दो नाटकों का मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में हो चुका है। संसद हमले पर बनी फिल्म ‘13 दिसम्बर’ सहित तीन डॉक्युमेंट्रीज तथा रे कंस्ट्रक्शन्स में काम कर चुके हैं)