मोदी के भरोसे आखिर कब तक आगे बढ़ेगी भाजपा? हर चुनाव क्या मोदी ही जितवाएंगे?

By रमेश सर्राफ धमोरा | Apr 06, 2022

हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारतीय जनता पार्टी सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रभाव से ही आगे बढ़ रही है। चुनावी नतीजों से पता चलता है कि भाजपा में आज भी किसी भी क्षेत्रीय नेता का कद इतना बड़ा नहीं है कि वह अपने बूते पार्टी को जिता कर भाजपा की सरकार बनवा सके। उत्तर प्रदेश में कई दशकों बाद लगातार दूसरी बार भाजपा की सरकार बनने पर बहुत से लोग इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चमत्कार बता रहे हैं। लोगों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ के प्रभाव के चलते ही उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 37 वर्षों बाद किसी पार्टी की लगातार दूसरी बार सरकार बन पाई है। मगर ऐसा सोचने वाले लोग सही तरीके से राजनीति का विश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर जैसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पूर्व पंजाब को छोड़कर चारों प्रांतों में भाजपा की सरकार थी। लगातार पांच साल सत्ता में रहने के कारण भाजपा को सत्ता विरोधी लहर से नुकसान होने के कयास लगाए जा रहे थे। ऐसे में सभी प्रदेशों में फिर से एक बार सरकार बनाना भाजपा के समक्ष एक बड़ी चुनौती थी। उत्तर प्रदेश को लेकर तो सभी राजनीतिक समीक्षकों का मानना था कि इस चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत से दूर रहेगी। अधिकांश विश्लेषकों व पत्रकारों का भी मानना था कि वहां पर अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी गठबंधन की सरकार बनेगी। ऐसा होता दिख भी रहा था क्योंकि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ब्राह्मण समाज में खासी नाराजगी व्याप्त हो रही थी। किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाता भी भाजपा से बहुत नाराज हो रहे थे।


किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश होने के कारण नरेश टिकैत जैसे किसान नेता जाटों को लगातार भाजपा के खिलाफ भड़का रहे थे। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी संवैधानिक पद पर होने के उपरान्त भी लगातार भाजपा पर हमलावर हो रहे थे। जिससे भाजपा बचाव की मुद्रा में थी। विरोधी दलों के नेताओं द्वारा योगी पर जातिवाद की राजनीति करने का आरोप लगाने के कारण मुख्यमंत्री की छवि भी खराब हो रही थी। यदि उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य में भाजपा की हार हो जाती तो उसका असर आगे कई प्रदेशों के विधानसभा चुनाव व 2024 के लोकसभा चुनाव में भी निश्चित ही पड़ता। 

परिस्थितियों को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता विरोधी लहर को समाप्त करने के लिए खुद मैदान में उतरे और पूरे चुनाव की कमान अपने हाथ में ले ली। मोदी के साथ गृह मंत्री अमित शाह पूरी तरह से सक्रिय हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां सभी चुनावी राज्यों में ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां कीं वहीं अमित शाह ग्राउंड लेवल पर पार्टी को एकजुट करने में लग गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई गांव में तो मतदाताओं की नाराजगी दूर करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर वोट मांगकर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने की अपील की। प्रधानमंत्री मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की मेहनत रंग लाने लगी व पार्टी से नाराज मतदाता धीरे-धीरे फिर से भाजपा खेमे में नजर आने लगे थे।


चुनावी नतीजे आने पर भाजपा एक बार फिर अपने चारों प्रदेशों में सरकार बनाने में सफल रही। हालांकि उत्तराखंड में भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए थे। मगर भाजपा वहां फिर से बहुमत में आ गई। पूर्वोत्तर के मणिपुर जैसे प्रदेश में भी पहली बार भाजपा ने 32 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बना ली। गोवा में भी पार्टी ने पहली बार सबसे अधिक 20 सीटें जीतीं और आराम से अपनी सरकार बना ली। भाजपा ने चारों ही प्रदेशों में अपने मुख्यमंत्रियों को बरकरार रखा।


उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के खटीमा से चुनाव हार जाने के बाद भी उन्हीं को मुख्यमंत्री बनाया गया। क्योंकि पार्टी का मानना था कि कम समय में ही मुख्यमंत्री धामी ने पार्टी की गुटबाजी को दूर कर पूरी एकजुटता से चुनाव लड़ा था। जिसके फलस्वरूप लगातार दूसरी बार भाजपा उत्तराखंड में सरकार बनाने में सफल रही। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुष्कर सिंह धामी जैसे युवा चेहरों को आगे बढ़ाना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में भी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव हार जाने के बावजूद दूसरी बार उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। हालांकि मौर्य अभी विधान परिषद के सदस्य हैं।


मणिपुर में भाजपा को पहली बार पूरा बहुमत दिलाने पर मुख्यमंत्री एन वीरेंद्र सिंह को इनाम स्वरूप दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया गया। वहीं गोवा में भी युवा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत को ही दूसरी बार कमान सौंपी गई। हालांकि अपनी विधानसभा सीट पर प्रमोद सावंत महज 666 वोटों से ही जीत पाए थे। मगर उन्होंने चुनाव के दौरान पूरी मेहनत की थी। जिसका फल उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री बना कर दिया गया।

 

भारतीय जनता पार्टी लगातार चुनाव दर चुनाव जीतती जा रही है। पिछले 8 वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में भाजपा की सरकार चला रहे हैं। सदस्यता के मामले में भी भाजपा देश की सबसे अधिक सदस्यों वाली पार्टी बन चुकी है। इतना सब कुछ होने के बाद भी भाजपा में आज भी प्रादेशिक क्षत्रपों की कमी है। आज भी पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द परिक्रमा करती नजर आ रही है। कोई भी चुनाव हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह को उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है जितनी 2014 के लोकसभा चुनाव में की थी। मोदी व शाह के अलावा भाजपा में ऐसे प्रभावशाली नेताओं की कमी है जो जनता में लोकप्रिय हों।

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कहने को तो भाजपा में बहुत से केंद्रीय मंत्री, प्रदेशों के मुख्यमंत्री व संगठन से जुड़े बड़े नेता हैं। मगर शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो इस बात का दावा कर सके कि वह अपने बूते चुनाव जिता सकता है। भारतीय जनता पार्टी में काम करने वाले प्रादेशिक नेताओं को धरातल पर काम करना चाहिए ताकि जनता में उनकी पैठ बने और वो मतदाताओं को आकर्षित कर सकें। भाजपा में आज भी बहुत से हवाई नेता बड़े पदों पर काम कर रहे हैं।


पार्टी विद डिफरेंस की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर भी ग्लैमर हावी हो चुका है। कभी जमीन पर सोकर संगठन में काम करने वाले बहुत से नेता आज प्रभावशाली होते ही बड़ी-बड़ी महंगी गाड़ियों में घूमने लगे हैं। आम कार्यकर्ताओं से उनका जुड़ाव कम होने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा राजनीति में ईमानदारी की बात करते हैं और स्वयं भी अपने जीवन में पूरी तरह ईमानदारी रखते हैं। मगर उन्हीं की पार्टी के कई नेताओं का दामन दागदार होने लगा है। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कई लोगों को सत्ता व संगठन से हटाया भी गया है। मगर आज भी बहुत से ऐसे लोग बड़े पदों पर काबिज हैं। ऐसे में पार्टी आलाकमान को चाहिए कि समय-समय पर पार्टी नेताओं की गोपनीय रिपोर्ट बनवा कर उनके क्रियाकलापों का आकलन करे ताकि पार्टी की विचारधारा के खिलाफ जाने वाले लोगों पर समय रहते लगाम लगाई जा सके। अब भाजपा को नई पीढ़ी के जनाधार वाले लोगों को आगे बढ़ाना चाहिये। जिससे आगे चलकर पार्टी को नए लोगों का नेतृत्व भी मिल सके। हर चुनाव मोदी के भरोसे लड़ने की प्रवृत्ति में बदलाव हो सके।


-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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